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उस विश्ववंद्यविभूतिका धुंधला चित्रण
[ले-श्री देवेन्द्रजी जैन]
सगवान् महावीरका जीवन संसारके उन इनेगिने हुमा देखकर उनके साथी राजकुमार तथा सामन्त-पुत्र " जीवन रस्लोंमेंसे है जिनकी दमकती हुई प्रकाश- भाग खड़े हुए, पर वीरने निर्भयतापूर्वक सर्पके कनको रेखाने भूले-भटके विश्वको सुपथ पर लगाया था। रोध गमा, अन्तमें वीरके चरणोंकी चोटसे पाहत हुए
महावीर-जन्मके पूर्वमें संसारकी हालत विखकुल उस महानागरूपधारक मापाची देवने पीरके चरणोंको गिर चुकी थी । मानवोंके दिमाग प्रायः गुलाम थे। चूमकर मा मांगी तथा उनका नाम 'महावीर' रखा। पंडितों और पुरोहितोंकी भाशा पालन करना ही उनका न जाने ऐसी कितनी घटनाएँ वीरके दिव्य जीवनमें घटी धर्म बन गया था। उस समय धर्मकी वेदीपर जितने होंगी, जिनं वे बीला ही समझते रहे । अस्तु । प्राणियोंका बलिदान किया गया था उतना शायद समय दिन-रातके पंख लगाकर उड़ता गया। बीर विश्वके इतिहासमें कभी भी न हुआ होगा । बखिवेदियों के सुन्दर शरीरसे यौवनकी मदमाती रेखाएँ फूट पड़ीं। पर चढे प्राणियोंके छिन्न-भिन्न रुएड मुण्डोंके संग्रहसे हि- पिताने विवाह के लिए प्रस्ताव किया । परन्तु वीरने मालय जैसी गगनचुम्बी चोटियाँ चिनी जासकती थीं और ढ़तापूर्वक किन्तु नन्नता भरे शब्दोंमें कहा-पिताजी ! रक-प्रपातसे गंगा-यमुना-सी नदियाँ बहाई जा सकती मेरे जीवनका ध्येय गुमराह विश्वको सम्मार्ग दिखलाना थीं । विश्वकी उस बेबसी और बेकसीके दिनों में वीरका और ऊँचे उठाना है। अतः मैं शादीका सेहरा बंधानेके जन्म इन्द्रपुरीसे इठखाते और नन्दनवन-से विकसित, लिये अपनेको असमर्थ पाता हूँ। यह मेरी तपस्याका कुण्डलपुर नगरमें हुआ था । उनके पिताका नाम था सबल बाधक है।' सिद्धार्थ और माताका नाम था त्रिशला देवी। पथेष्ट माताने ममता भरी-धाणामें कहा-बेटा ! तेरे वैभव-सम्पन्न माता-पिताका अपने इकलौते माल पर बिना मैं जीवित न रह सकुंगी । मो मेरी माँखोंके तारे! अधिक प्यार था; अतः इनका खाखन-पालन भी निराली मेरे जाने वाल ! तेरी यह किशोरावस्था, उठता हुमा शानसे दुमा था।
यौवन, गुवाबी बदन, खम्बी लम्बी भुजाएँ, विशाल . बालकपनसे ही वीर एक चतुर एवं निर सिवादी स्थन और यह सुहावना सुकुमार शरीर या तपस्वामें थे। श्री एवं कोमल किशोरावस्था में ही वे ऐसे भगार मुखसा देने के लिये है? प्रसकों का सामना सहन ही में कर चुके थे जिनकी प्रत्युत्तरमें बीरने कहा-मां ! यह भापका केवल कल्पना भी मौजूदा नवयुवकों का दिख रहवा सकती व्यामोह है । या कोई भी दयानु दिन पह बात है। एक दिनकी घटना इस प्रकार है-पव-कीलाके गवारा कर सकता है कि जब दर्दभरे नारोंसे नमके भी समय सीमासे एक विशालकाय कृय सर्पको लिपटा मौन-प्रदेश गंबरठे हों, त्राहिमाम् नाविमाएकी