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________________ वर्ष किरण ] गोकर्मकांडकी त्रुटि पर्तिके विचार पर प्रकाश की टीकाओं में मूल गाथानों की संख्या एक नहीं है। 'चिरकालं' पदके आगे पीछे भाशीर्वादात्मक कोई अमृतचन्द्राचार्यको समय-सार टीकासे जयसेनाचार्यकी पद भी नहीं है। संभव है कि इसका मूलरूप कुछ समय-सार टीका में २८ गाथाएँ अधिक है, और अमृत- दूमरा ही रहा हो और यह अन्तमें किसी चन्द्राचार्य की प्रवचनसार टीकासे जयसेनकी प्रवचन-सार प्रकारसे प्रक्षिप्त होकर कर्मकाण्डमें रक्खी गई हो। टीकामें २२ गाथाएँ अधिक है। अब प्रश्न होता है कि चामुण्डरायकी बनाई हुई वैमी कोई टीका इमसमय यदि वे गाथाएँ जो जयसेनाचार्य की टोकामें अधिक उपलब्ध नहीं है और न उक्त गाथाके आधारके पाई जाती हैं मून ग्रन्थकी गाथाएँ है तो क्या फिर अतिरिक्त दूसरा कोई स्पष्ट प्रमाण ही उसके प्राचार्य अमतचन्दने उन्हें जान बूझकर छोड़ दिया है ? रचे जानेका देखने में आता है। थोड़ी देरके लिये और यदि जान बूझकर नहीं छोड़ा तो उन्हें अपनी यदि यह मान भी लिया जाय कि चामुंडरायने. टीकामे क्यों नहीं दिया ? और यदि वे गाथाएँ लिपि- उसी समय गोम्मटसार कम काण्ड पर कोई टीका कारोंसे छूट गई थीं तो क्यों उनकी पूर्ति नहीं की? लिखी.थी तो भी यह कैसे कहा जा सकता है कि. और यदि वे मूल ग्रंथको गाथाएं नहीं हैं तो जयसेना- ३००-४०० वर्षके पीछे बनो हुई केशववर्णीकी चार्यने उन्हें क्यों मूलग्रंथ की गाथा प्रकट किया ? इन कनडीटीका बिल्कुल उमीके आधार पर बनी हैप्रश्नोंके उत्तर परमे ही प्रोफेसर साहब के उक्त कथनका उन्हें वह देशी टीका प्राप्त थी और उसमें उस वक्त सहज-समाधान हो जाता है। तक कोई अंश त्रुटित नहीं हुआ था ? अथवा इस ___ कर्मकाण्डसे गाथाभोंके न छूटने की एक युक्ति लम्बे चौड़े समयकं भीतर उस देशी टीकाकी प्रति प्रोफेसर साहबन यह भी दी है कि-गोम्मटसार और सरी मूल प्रतियोंमें, जो केशववर्णीको की टोकाकी परम्परा उसके कर्ताक जीवनकाल में अपनी टीका के लिये प्राप्त हुई थी, मूल पाठ अविही, ग्रन्थकी रचनाके साथ साथ ही प्रारम्भ हो कल रूपमे चला पाया था और उसमें किसी भी गई थी अर्थात् चामुण्डरायने उसकी देशी (टीका) कारणवश कोई गाथा त्रुटिन नहीं हुई थी ? प्रस्तुत कर डाली थी, उममं कोई ३०० वर्ष पश्चात् केशव- संस्कृत टीका तो कंशववर्णीकी टीकासे कोई१५०वर्ष वर्णीन कनड़ी टीका लिखी और फिर कनड़ी टीका बाद बनी है। क्योंकि इसके कर्ता नमिचन्द्र भट्टारक के पाधार परमे वह 'जोवतत्त्वप्रबोवनी' टीका ज्ञानभूषण के शिष्य थे और ज्ञानभूषणका अस्तिलिखी गई, जिम टीकाकी प्रशस्तिकं कुछ वाक्य त्व वि० सं० १५७५ तक पाया जाता है * । तथा आपने उद्धृत किये हैं। चामुण्डराय द्वारा देशीके कंशववर्णीकी टीका.शक सं० १२८१ (वि० सं० लिखे जानेको एक गाथा भी मापन उद्धृत --- की है, जो कर्मकाण्ड में अंतिम गाथाके रूपसं सं० ११.५ में ज्ञानभूषण भट्टारकको ज्ञाना. दर्ज है, और जो अपनी स्थिति परमे बहुत कुछ विकी एक प्रति ब्रह्म तेजपानने लाकर मेंट की थी, ऐसा संदिग्ध जान पड़ती है। क्योंकि उसमे प्रयुक्त हुए मुख्तारसाहबके ऐतिहासिक खातोंके रजिष्टरपरसे मालूम 'बा' पदका कोई सम्बन्ध व्यक नहीं होता और होता है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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