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मो० कर्मकाण्डकी त्रुटि-पूर्तिके विचार पर प्रकाश
[लेखक--पं० परमानन्द जैन शात्री]
मैंने 'गोम्मटसार कर्मकारतकी त्रुटि-पूर्ति' नामका विद्वानोंने स्पट शब्दों में कर्मकाण्डके प्रथम अधिकारका
- एक लेख लिखा था, जो अनेकान्तकी गत- त्रुटि-पूर्ण होना तथा कर्मकावरका अधूरापन स्वीकार संयुक्त किरण नं. १ में प्रकाशित हुआ है। इस लेख भी किया । उदाहरण के तौर पर पं० साशचन्द्रजी में मुद्रित कर्मकाबडके पहले अधिकार प्रकृतिसमुत्को-शानी प्रधानाध्यापक स्पाहाद महाविद्यालय काशी तन' को त्रुटिपूर्ण बतलाते हुए, 'कर्मप्रकृति' नामक एक लिखते है कि--"इसमें तो कोई शक ही नहीं कि कर्म दूसरे अन्धके माधारपर जो गोम्मटसारके कर्ता नेमि- काण्डका प्रथम अधिकार त्रुटि-पूर्ण "। और उक्त चन्द्राचाय का ही बनाया हुमा मालूम हुआ था, मैंने विद्यालय के न्यायाध्यापक न्यायाचार्य पं. महेन्द्र उक्त अधिकारकी त्रुटि-पूर्ति करनेका प्रथम किया था, कुमारजी शास्त्री लिखते हैं कि- "यदि यह प्रयत्न
और यह दिखवाया था कि ७५ गाथाएँ जो कर्मप्रकृतिमें सौलह पाने ठीक रहा और कर्मकाण्डकी किसी प्राचीन कर्मकाण्डके वर्तमान अधिकारसे अधिक हैं और किसी प्रतिमें भी ये गाधाएं मिल गई तब कर्मकाण्डका समय कर्मकाण्डसे छूट गई अथवा जुवा पड़ गई है, अधुरापन सचमुच दूर हो जायगा"। उन्हें कर्मकाण्डमें यथास्थान जोर देनेसे सहन ही में परन्तु प्रो. हीराबालजी अमरावतीको मेरा उक्त उसकी त्रुटि-पूर्ति हो जाती है और वह सुसंगत तथा लेख नहीं जंचा' और उन्होंने उसपर भापत्ति करते हुए सुसंबद्ध बन जाता है क्योंकि यह संभव नहीं है कि अपना विचार एक स्वतन्त्र लेख द्वारा प्रकट किया है, एक ही अन्धकार अपने एक अन्य अथवा उसके एक जो अनेकान्तकी गत 1वी किरण में मुद्रित हो चुका भागको तो सुसंगत और सुसम्बद बनाए और उसी है। इस लेख में पापने यह सिद्ध करनेकी चेष्टाकी है कि विषयके दूसरे ग्रन्थ तथा दूसरे भागको असंगत और (१) धर्मकारसे ७५ गाथाभोंका छूट जाना या बुवा असम्बद्ध रहने दे। साथ ही, यह भी व्यक्त किया था पर जाना संभव नहीं, (३) कर्मकाण्ड अधूरा न होकर कि कर्मकाण्डके इस प्रथम अधिकारके त्रुटिपूर्ण होनेको पूरा और सुसम्बद है; और (६) कर्मप्रकृति ग्रंथका दूसरे भी अनेक विद्वान् परसे अनुभव करते भारहे हैं गोम्मटसारके कर्ता द्वारा रचित होनेका कोई प्रमाण और उनमेंसे पं० अर्जुनखान सेठीका नाम खास तौर नहीं, वह किसी दूसरे नेमिचन्द्र की रचना हो सकती से उनके कथनके साथ उल्लेखित किया था । मेरे इस है। चुनाँचे इन सब बातोंका विवेचन करते हुए, मापने लेखको पड़कर अनेक विद्वानोंने उसका अभिनन्दन अपने का जो सार मन्तिम पैरेग्राफमें दिया है वह किया तथा अपनी हार्दिक प्रसनता पक्ष की, और कई इस प्रकार है:--