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________________ २८ भनेकान्त [पारिवन, वीर निव सं०२१॥ पश्चात कालीन दूसरा टीकाकार इस टीकाकारका चाहिये । इस बात पर सभी एक मत नहीं है, किंतु सोख करता है इससे हम इतना ही कह सकते हैं जो इस विषयमें भिन्न मत हैं, वे महावंशमें वर्जित कि वह नविनारम्किनियरसे पूर्ववर्ती होना चाहिये। गजवाहु द्वितीयके अनेक शताब्दी पीछेके कालमें इस ग्रन्थको महत्व पूर्ण टीकासे यह स्पष्ट है कि वह इसे खेंचते हैं। मिस्टर लोगन (Logan) अपनी टीकाकार एक महान विद्वान हुआ होगा। वह मलावार डिस्ट्रिक्ट मेनुअलम अनेक महत्वकी बातें गायन, नृत्यकला, तथा नाचशास्त्रके सिद्धान्तोंमें बताते हैं जिनसे कि हिन्दू धमके प्रवेशसे पहले अत्यन्त निपुण था, यह बात इन विषयोंको स्पष्ट मलावारमे जैनियों का प्रभाव व्यक्त होता है कि करने वाली टीकासे स्पष्ट विदित होती है इस नपुर इस समय काल निर्णयकी बातमें हमारी साक्षात रुचि (चरण भूषण ) वाले महाकाव्यमें दक्षिण भारतके नहीं है अतः हम इस बातको इतिहासके विद्वानोंके इतिहासमें दिलचस्पी रखने वाले विद्वानों के लिये लिए छोड़ते हैं। हमारी रायमें इस प्रन्थका द्वितीय बहुत कुछ ऐतिहासिक सामग्री विद्यमान है। शताब्दी वाले गजवाहुमं सम्बन्ध स्थापित करनेकी कनकास भाई पिल्लेके ससयसे जिन्होंने १८०० वर्ष बात सर्वथा असम्भव नहीं है। किन्तु हम एक पूर्वके सामिलजन" नामका ग्रंथ लिखा अब तक महत्वपूर्ण बात पर जोर देना चाहते हैं । सम्पूर्ण यही प्रन्य तामिल देशके अनुसंधानक छात्रोंके प्रन्थमें हम अहिंसा सम्बन्धी सिद्धान्तोंका स्पष्टीपरिज्ञान एवं पथप्रदर्शनके लिए कारण रहा है। किरण एवं उस पर विशेष जोरसे वर्णन पाते हैं सोलौनके नरेश गजवाहु बंजी राजधानीमें राजकीय तथा कहीं २ इस सिद्धान्तके अनुसार मन्दिर अतिथियों में से एक थे, यह बात प्रन्यके कालनिर्णय पूजाका भी उल्लेख पाया जाता है। इस समयके के लिए मुख्य बताई गई है। बौद्ध प्रन्थ महावंशके लमभग सम्पूर्ण तामिल देशमें पुष्पोंसे पूजा प्रचलित अनुसार ये गजबाहु ईसाकी दूसरी शताब्दीके कहे थी। इसे "पुष्पकी" अर्थात् पुष्पोंमे बलि कहते हैं। जाते हैं। इस बातके आधार पर आलोचकोंका यह 'बलि' शब्द तो यझोंमें होने वाले बलिदानको अभिमत है कि चेर-नरेश सेनगुट्टवन और उनके बताता है और पुष्प बलिका अर्थ टीकाकार पुष्पोंसे भाई लंगोबडिगल ईसाके लग भग १५० वर्ष पश्चात् ईश्वरकी पूजा करना बताते हैं। हुए होंगे, पतः यह मन्थ उसी कालका समझा जाना
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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