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________________ .२६ भनेकान्त [पारिवन, बीर निर्वाण सं०२४१५ करणकी की सेवा के लिये नियुक्त हुई जो कि अपने स्थित करण कोको अपने ऊपर कहान संकटके पति-सहित उस पायरपाडोमें प्रतिष्ठित मेहमान सूचक अनेक अपशकुन दिखाई पड़े। जब गड़रियन थी। कष्टों तथा क्षतियोंके कारण दुःखी होता हुआ माधरी वैगई नदीमें स्नान करने गई तव नगरसे कौवलन अपनी लोकेपाससे विदा होकर चरण भूष. लौट कर आन वाली एक गड़रियनस कोवलनका णोंमेंसे एकको बेचनेके लिए नगरी लौटा । जब वह हाल विदित हुमा, जो रानीके चरण भूषण चुरानं प्रधान बाजारकी सड़क पर पहुंचा, तब उसे एक के अपराध राजाज्ञाके अनुसार मार डाला गया स्वर्णकार मिला। उसने अपने आपको राजाके द्वारा था। जब यह समाचार करणकीने सुना तब वह संरक्षित स्वर्णकार बतलाया और उससे कहा कि ऋद्ध हुई अपने हाथमें दूसरा चरण भूषण लेकर मेरे पास रानीके पहनने योग्य एक चरण भूषण नगरमें घुसी ताकि वह राजाके समक्ष अपने पति के है। उसने उससे उसका मूल्य जाँचनेको कहा। निर्दोषपनेको सिद्ध करे । राजमहलमें पहुंच कर वह सुनार उसका मूल्य जांचना चाहता था, अतः करणकीन द्वारपालकं द्वारा यह समाचार पहुँचवाया स्वामीने उस भूषणको उसे दे दिया। उस दुष्ट कि मैं राजासे मिलना चाहती हूँ ताकि अपने पतिकी स्वर्णकारने अपने मनमें कोवलनको ठगनकी बात निर्दोषताको सिद्ध कर सकूँ, जो उचित जांचके सोची और उससे पासके परमें ठहरने को कहा बिना ही फांसी पर टांग दिया गया है। उसने और यह बचन दिया कि मैं राजासे इस विषयमें राजाको बतलाया कि मेरे पतिकं पाससं गृहीत सौदा काँगा, कारण वह चरण-भूषण इतना चोरीकं ममझे गये मेरे चरण भूषणके भीतर मूल्यवान है कि केवल महारानी ही उसका मूल्य जवाहरात थे, किन्तु महारानीके चरण-भूषणमें दे सकेगी। इस प्रकार बेचारे कोवलिनको अकेला भीतरकी ओर मोती थे । जब कण्णकीके चरण छोड़ कर वह उस चरण-भूषणको लेकर राजाके भूषणको तोड़ कर राजाको यह बात दिखाई गई, पास पहुंचा और उसनं बात बदल कर यह कहा तब राजानं वैश्योंक एक कुलीन वंशके निर्दोष कि कोवलन एक चोर है, उसके पास रानीकंपासका व्यक्तिका कठोरता पूर्वक प्राणहरण करनेकी भयंकर एक चरण-भूषण है, जो कुछ दिन पूर्व राजमहलस भूलको पहचाना। वह चिल्ला उठाकि दुष्ट सुनारने चोरी गया था। कोई विशेष जांच किए बिना ही मुझसे मूर्खता पूर्ण यह भयंकर भूल कराई है और राजाने माझा देदी कि चोरको फांसी देदी जाय वह राज्यासनमे गिरकर मूर्छित हो गया एवं तथा तत्काल ही चरण-भूषण ले लिया जाय । दुष्ट तत्काल ही प्राण-हीन हो गया। अपने पतिकी स्वर्णकार राजाके कर्मचारियोंके साथ लौटा, निर्दोषताको सिद्ध करनेके अनन्तर अत्यन्त क्षोभ जिन्होंने मूर्ख राजाकी माझाका अक्षरशः पालन तथा क्रोधमें करणकीने सम्पूर्ण मदुरा नगरको शाप किया, और इस तरह विदेशमें अपना जीवन दिया कि वह भग्निसे भस्म हो जाय और उसने भारम्भ करने के उद्योगों कोवलनको अपने प्राणोंसे अपना बाम स्तन काट कर अपने शापके साथ हाथ धोना पड़ा । इस भर्सेमें गड़रियेको खोके घरमें नगरकी भोर फेंक दिया शापने अपना काम किया
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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