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________________ वर्ष , वि .] तामिल भाषाका नसाहित्य सम्मिलित होने के लिये समुद्र तट पर गया। जबकि राजधानीको छोड़कर मदुराके लिये रवाना हो बे एक कोने में बैठे थे, कोवलनने माधवीके हाथमे गया। मार्गमें वह कावेरीके उत्तरतटकी भोर स्थित वीणा ले ली और वह प्रेमकी कुछ मधुर गीति- जैन साधुमोंके एक पाश्रममें पहुँचा। उस पाश्रममें काएँ बजाने लगा। माधवीको तनिक शंका हुई कि उनको कौडा नामकी साध्वी मिली, जो उन दोनोंके उसके प्रति कोवलनका प्रेम कम हो रहा है। साथ चलनेको इसलिए बिल्कुज राजी थी, कि उसे किन्तु जब उसके हाथमे माधवीने वीणा लेकर पांड्यन राजधानी मदुरामें स्थित महान् जैनअपना गीत प्रारंभ किया, तो कोवलनको इम आचार्यों से मिलनेका सौभाग्य प्राप्त होगा। ये तीनों बातका संदेह होने लगा कि माधवीका गुम रूपमे मदुराकी ओर रवाना होगये । कावरी नदीको पार किसी अन्य व्यक्तिके साथ सम्बन्ध है । इस पार- करने के उपरांत जब कौलवन् और उसकी सी एक स्परिक संदेहसे उनमें जुदाई हो गई, और तलाबके तटपर बैठे, तब अपनी दुष्टा प्रेयसीके साथ कोवलन एक सम्माननीय गृहस्थके रूपमें फिरमे वहां भ्रमण करने वाले एक दुर्जनने कोवलन और जीवन प्रारम्भ करनेके पवित्र संकल्पको लेकर उसकी पत्नीका बहुत तिरस्कार किया । इससे पूर्ण गरीबीकी अवस्था में घर लौटा । उसको शोल- उनकी साध्वी मित्र कौडो उत्तेजित हो उठी और वती पत्नीन, उसकी अतात उच्छं खलवृत्ति पर उसने इनको शृगाल बननका शाप दिया । परन्तु क्षोभ व्यक्त करनेके स्थानमें उम स्नेहके साथ कोवलन एवं करणकीकी हार्दिक प्रार्थनामों पर धीरज बँधाया, जो शीलवती महिलाके अनुरूप उस शापमें यह परिवर्तन किया गया कि वे अपने था, और उसके निजके व्यवसायको पुनः पूर्वरूपको एक वर्षमें प्राप्त कर लेंगे। प्रारंभ करके जीवन प्रारंभ करने सम्बन्धी निश्चय इम लम्बी यात्राके कष्टोंको भोगते हुए वे मदुरा को प्रोत्साहित किया। उसके पास तो दमड़ी भी के समीप पहुँचे, जो पांड्यन राजधानी थी। अपनी नहीं बची थी कारण जब वह अपनी प्रेयसी माधवी पत्नी करणकीको कौण्डीके पास और उसकी में आसक्त था, तब वह अपना सर्वस्व स्वाहा कर जिम्मेदारी पर सौंपकर कौवलनने नगरमें प्रवेश चुका था। किन्तु उसकी पत्नीके पास दो चार किया, ताकि वह उह उचित स्थानका निश्चय करे, भूषण विद्यमान थे । वह स्त्री उनको देनेको तैयार जहाँ पर व्यवसाय प्रारम्भ करेगा। जब कौवान थी, यदि वह उनको बेचकर प्राप्तकर द्रव्यसे अपना अपने मित्र मादलनके साथ नगरमें अपना समय व्यवसाय प्रारम्भ करनेमें पूंजी लगानेकी सावधानी व्यतीत कर रहा था, तब कौण्डीकरणकीको माधरी करे । किन्तु वह अपनी राजधानीमें अब बिल्कुल नामकी साघस्वभाव वाली वहाँकी भेड़ पराने भी नहीं ठहरना चाहता था। इससे उसने इन चरण वाली के यहां छोड़ना चाहती थी। जब कौवलन भूषणोंको पाड्यन राजधानी मदुरामें जाकर बेचने नगरसे वापिस भाया, तब वह और उसकी सी का निर्णय किया । किसीको भी परिज्ञान हुए अयरवाड़ी लाए गए और वे उस गड़रियेकी बीके पिना वह उसी रातको अपनी पत्नीके साथ पोज यहां ठहराए गए। उस गड़रिया सीसी सड़की
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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