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अनेकान्त
[भारिवन, वीर निर्वाण सं०२४१५
किया, जिम उनन देखा था और जो करणको मुख्य बंदरगाह था और वह चोलनरेश करिकालकी नामकी नायिकासे मम्बन्धिन था । उनने पर्वत पर राजधानी था । व्यापारका मुख्य केन्द्र होने के कारण एक नाका, जिमका एक स्तन नष्ट हो गया था, राजधानीमें बहुनमे विशाल व्यापारिक भवन थे। किम प्रकार देग्य ; किम तरह उसके समक्ष इन्द्र इनमें मासत्तवन नामका एक प्रख्यात व्यापार भाया और क्रिम भात कोवलन नामक उमका था जो व्यापारियों के शिरोमणियोंके उज्ज्वल परि. पति देवक रूपमें उमम मिला और अन्तमें किम वारका था। उसका पुत्र कोवलन था, जो कि इम प्रकार इन्द्र उन दोनों को विमानमें बैठाल कर ले कथाका नायक है । वह उमी नगरकं मनायकन
याः यसब बातें चम्के यवराजके ममक्ष उसके नाम दसरे महान व्यापारीकी कन्या कएणकीके मित्र और मणि ने कलैके प्रख्यात लेखक कुलवाणि- साथ विवाहा गया था । कोवलन और उसकी गन् शान नाम कवको मौजूदगामें कही गई। पत्नी करणको एक बड़े पैमाने पर निर्मित स्वतंत्र इम मित्रन नायक नया नायिका का पूर्ण कथा कहा भवनमे अपनी मामाजिक प्रतिष्ठा के अनुमार कुछ और वह राजषिके द्वारा बड़ो रुचिसे सुनी गई। काल तक बड़े ठाठ-बाट तथा अानन्दकं माथ
शाट्टनके द्वारा कथित इस कथामें नोन मुख्य रहने थे, गृहस्थों के नियम तथा श्राचार के अनुसार वथा मूल्यवान सत्य हैं जिनमें रानपिन बढ़त उनकी प्रवृत्ति थी और उनका आनन्द पात्रभूत दिलचस्पी ली। पहला, अगर एक नरेश मत्यके गृहस्थों तथा मुनियों का अत्यधिक आदर-सत्कार मार्गसे तनिक भाविवनित होता है तो वह अपनी करने में था। बनीतिमत्ताके प्रमाणवरूप अपन तथा अपन जब कि वे अपने जीवनको इस प्रकार सुखसे राज्यके ऊपर मंकट लाएगा; दूसरा, शीक मार्ग बिता रहे थे, तब कोवलनको एक अत्यन्त सुन्दरी पर चलने वाली महिला नवं वल मनुष्योंक द्वारा तथा प्रवीण माधवी नामको नर्तकी मिली, वह प्रशंमित एवं पूजित होती है किन्तु देवों तथा उम पर श्रामक्त होगया और उसके अनुकूल मुनियों के द्वारा भी; और नीमरे कोकी गनि बर्तन लगा, और इसीलिये वह अपना अधिकांश इस प्रकारकी है कि उसका फल अवश्यंभावी . , समय माधवीक साथ व्यतीत करता था, जिससे जिमम काई भी नहीं बच सकना और व्यक्तिकं उसकी धर्मपत्नी करणकीको महान् दुःख होना पूर्व कर्मोका फल अागामीकालम अवश्य भोगना था। इस बिलामता पूर्ण जीवन में उमने प्रायः पड़ेगा। इन तीन अविनाशा मत्योंका उदाहरण सब संपत्ति स्वाहा कर दी,किन्तु करणक'ने अपना देनेके लिये राजर्षिने मनुष्यजानिक कल्याणकं दुःख कभी भी प्रकट नहीं किया और वह उसके लिये इस कथाकी रचना करने का कार्य किया। प्रति उसी प्रकार भक्त बनी रही जिस प्रकार कि इस शिलप्पदिकारम अथवा न पुर (चरणभूषण) वह अपने वैवाहिक जीवनकं प्रारंभमे थी। सदा के महाकाव्यमें पहला दृश्य चालकी राजधानी की भाँति इन्द्रोत्सवका त्यौहार अथवा प्रसंग पुहारमें है। यह कावरी नदीक मुखपर स्थित आया। कोवलन अपनी प्रेयसीक साथ उत्सवमें