SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 770
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊँच नीच-गोत्र-विषयक पर्च धन उसके पाम हो गया । एक दिन वह किमी वेश्याके की अवस्था होने पर सम्यग् दर्शनको प्राप्त होकर योग्यता द्वारके सामने होकर जा रहा था कि उसके एक जुवारी प्राप्त होने पर मुनिव्रत धारण करके और अपने परिणामों मित्रने उसे आवाज़ देकर वहाँ बुला लिया, जब वेश्या को मन्तान दर सन्तानरूप उतरोचर ऊँचेसे ऊंचे और का उससे साक्षात् हुग तो वेश्याने अपने हाव भाव. विशुद्ध बनाता हुश्रा और समय प्रति समय विशुद्धताकी कटाक्षोंसे उसे अपने में अनुरक्त कर लिया और वह वृद्धि करता हुश्रा अपनी परिणामधाराको अर्ष रूपमें वेश्या सेवन करने लगा। तथा चोरी द्वारा पर्याप्त धन बहाता हुश्रा केवलज्ञानको प्राप्त कर लेता है और ला ला कर वेश्याको देने लगा । वेश्या-सेवनमें विषया- अन्तमें सम्पर्ण कर्मोंसे सर्वथा मुक्ति लाभ करके अपने नन्दकी वृद्धि के लिये मदिरा-पानका चस्का भी वेश्या शुद्ध-बुद्ध सिद्ध स्वरूपमें जा विरागता है। ने उसे लगा दिया और वह रात दिन मदिराके नशे में इस तरह पर मेरा विचार है कि जीवके अपने स्वयं के चूर रहने लगा । मदिराके नशेमें खाद्य- एकके कारण से दूसरे और दूसरेके कारण से तीसरे होने अखाद्यका विचार भी उसे न रहा और वह वेश्याके वाले शुभाऽशुभ आचरण को ही संतानक्रमसे पाया साथ मांसादि अखाद्य वस्तुओंको भी भक्षण करने हुश्रा जीवका श्राचरण कहते हैं। यदि मेरा उपयुक्त लगा । जब माम-भक्षणकी उसे श्रादत हो गई तो विचार जिनागमसे विरुद्ध नहीं है तो क्या मैं यह कह वह माम प्राप्तिके लिये जगलादिमें जाकर विचारे सकता हूँ कि इससे गोत्र कर्मोदयके सम्बन्ध गणवे दीन अनाथ एवं कायर पशुओंका वध (शिकार ) भी हुये सम्पूर्ण दोषोंका अपहार हो जावेगा ! गोत्र करने लगा और मार मार कर उन्हें खाने लगा तथा व्यवस्था प्रकृति-विकाशके विरुद्ध है, वह सार्वति अतिशय कर परिणामी हो गया । कर परीणामी हो जाने और चतुर्गतिके सारे जीवों पर लाग होने वाली नहीं है, और नशे में चूर रहनेके कारण वह परस्त्रियोंके साथ वह केवल मनुष्यों और मनुष्योमें भी केवल मारतवादिलों बलात्कार भी करने लगा और बल पर्चक उनका सतीत्व के व्यवहारानुसार बनी है, इत्यादि और मी जो दोष हरण करके अतिशय व्यभिचारी और लोकनिध हो गोत्र-कर्म-व्यवस्था पर लगाये जाते हैं, वे सब दोष श्री गया। इस तरह पर एक जना व्यमनके लग जानेके गोमसार कर्मकाण्डकी १३ वीं गाथाका उपयुक्त अर्थ कारण उसके मन्नान दर सन्तानरूप चौर्यादि व्यसनों मानने पर दूर हो सकेंगे, यदि सब दोष दूर हो सकेंगे तो के सेवनकी इच्छा और कांचनाले परिणाम होनेके २३ वीं गाथाका उपर्युक्त अर्थ ही सर्वाङ्गी अर्थ कहकारण वह सातों व्यसनोंका सेवन करने वाला अतिशय लाएगा। अस्तु । पापी, भ्रष्ट और परिणामोको नीचे गिराने वाला दुर्गति- संक्षेपमें गोमट्टसार कर्मकाण्डकी १३ वीं गाथाकी पात्र हो गया। व्याख्या करने और यह बतलाने के बाद कि 'ऊँच-नीच इसी तरहसे एक जीव अपनी शुभ काललब्धिको गोत्र कर्मोदय क्या है ?", अब मैं चारों गतियोंके जीवोंमें पाकर नित्य निगोदसे निकलता है और अपने ऊँचेसे गोत्रकर्मके उदयकी कुछ व्याख्या करना चाहता हूँ। ऊँचे विशुद्ध परिणामोंको करता हुआ मनुष्य पर्याय देवोंमें ऊँच-नीच गोत्रोदय धारण करता है। मनुष्य पर्याय धारण करके आठ वर्ष जेनसिद्धान्तमें, देवोंमें जो ऊँच गोत्रका सदर
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy