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________________ बनेकान्त [पारिवन, वीर निर्वाय सं०२४ बतलाया है वह मनुष्यसमूहकी अपेक्षासे है, उसका देवोंमें गोत्रोदय माननेसे,जैनागममें जो देवोंमे उचगोत्रोयह भाव नहीं है कि उनमें नीच गोत्रका उदय है ही दय कहा है उससे विरोध नहीं प्रासकता; क्योंकि वह नहीं। जब किसी हीन शक्ति के मुकाविलेमें उनमें उच्च सामान्यतया मनुष्यसमूहकी अपेक्षास देवसमूहमें उब गोत्रका उदय है तो किसी महान् शक्ति के मुकाबिलेमें गोत्रका उदय है, इसी अपेक्षास कहा हुआ जान पड़ता उनमें नीच गोत्रका उदय भी होना चाहिये । क्योंकि है। यहाँ अपेक्षा-भेदका स्पष्टीकरण न करके गुप्त गोत्र धर्म सापेक्ष धर्म है। जिनागममें भी देवोंमे चार रख लिया गया है । विचार करनेमे यहाँ उपयुक्त प्रकार मूलभेद और इन्द्र सामाजिक, त्रामसत्रिशत् श्रादि अपेक्षा ही ठीक बैठती है और वही युक्ति संगत प्रतीत उत्तर भेद माने गये है, जो उनमें परस्पर उञ्चगोत्र व होती है। नीच गोत्रका होना सिद्ध करते हैं । इसके अतिरिक्त मनुष्योंमें ऊँच नीच गोत्रोदय पंचमगुणस्थानसे लेकर चौदहवें गणस्थान वाले मनप्योंकी अपेक्षा उनमें नीचगोत्रका उदय है। मिथ्यादृष्टि जिनागमम, मनुष्योमें जो सामान्यतया ऊँच व मनुष्योंकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि देवोंमे उच्च गोत्रका उदय नीच दोनों गोत्रोंका उदय बतलाया गया है वह अपने है। चतुर्थ गुणस्थानी मनुष्योंकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि अपने सदाचरण दुराचरणके आधार पर परस्परकी असुर कुमारादि पापाचारी देवोंम नीच गोत्रका उदय अपक्षा से है । भोग भामके मनुष्यों के जो केवल उच्च है। चतुर्थ व पंचम गुणस्थानी तिर्यचौकी अपेक्षा भी गोत्रका उदय बतलाया है वह उनकी मंदकषायरूप असुरकुमारादि पापी मिध्यादृष्टि देवोमे नीच गोत्रका उच्च प्रवृत्ति की अपेक्षासे है । भोगमिके मनष्योंकी उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी सम्यग्दृष्टि,व तीर्थकर प्रकृति अपेक्षा यहाँ कर्मभूमिके अधिकांश मनुष्यों में नीच बद्ध सम्यक्त्वी नारकियों की अपेक्षा भी असुर कुमारादि गोत्रका उदय है । भोगभाममें भी कई मनभ्य सम्यक दुराचारी और मिथ्यादृष्टि देवोंम नीच गोत्रका उदय है। दृष्टि है तथा कई विशेष मद कषाय वाले हैं तथा कई पंचमगुणस्थानी तिर्यचौकी अपेक्षा चतुर्थगुणस्थानी मनुष्य कम मंद कषाय वाले हैं और मिथ्यादृष्टि भी हैं देवोंमें नीच गोत्रका उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी अतः वहाँ भी उनमें परस्परकी अपेक्षा ॐन गोत्र व तिर्यचों और चतुर्थगुणस्थानी व तीर्थकरप्रकृतिबद्ध नीच गोत्रका उदय होना सिद्ध है। अर्थात् विशेषमद सम्यक्त्वी नारकियोंकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टिदेवोंमें उच्च कषायवाले और सम्यग्दृष्टि मनुष्यों की अपेक्षा कममन्द गोत्रका उदय है; क्योंकि सम्यग्दृष्टि तिर्यंचों, व कषायवाले और मिथ्यादृष्टि जीव नीच गोत्रोदयवाले परकियों के सम्यक्त्वसे सम्यग्दृष्टि देवोंका तद्रूप सम्य- है और कममंद कषाय वाले तथा मिथ्यादृष्टि मनुष्योंकी क्व विशेष निर्मल होता है । और सामान्यतया तिर्यंच अपेक्षा सम्यक्दृष्टि और विशेषमंद काय वाले मनुष्य समूह और नारकी समूहकी अपेक्षा देव समूहमें ऊँच उच्च गोत्रोदय युक्त है। सामान्यतया देवोंकी अपेक्षा गोत्रका उदय है ही। इस तरह पर विचार करनेसे देवों मनुष्योंमें नीच गोत्रका उदय है तथा तिर्यंचों व नारमें नानादृष्टिकोणकी अपेक्षा उच्च व नीच गोत्रोदय कियोंकी अपेक्षा मनुष्योंमें उच गोत्रका उदय है। प्रत्यब सिद्ध है। मेरे विचारसे उपर्युक्त रीतिके अनुसार विशेषतया भोग भूमिके चतुर्थ गुणस्थानी मनुष्योंकी.
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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