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ऊंच नीच-गोत्र-विषयक चर्चा
लेखक-श्री बालमुकुन्द पाटोदी जैन, 'जिज्ञासु']
ज्योतिष आदि मीखकर विद्यागुणोंकी वृद्धि में अपनी नानकान्तके इसी वर्ष की दूसरी किरणमें, मैंने अपने उन्नति किया करते हैं और कोई यम-नियम, तप-संयम,
- उपयुक्त शीर्षक वाले लेम्बमें 'मनुष्योंमे क्या, ज्ञान-ध्यान-स्वाध्यायादि समारोच्छेदक अनुष्ठानोंको मंपूर्ण साँमारिक जीवों में अपने अच्छे बुरे आचरण के करके धर्माचरणों में अपनी उन्नति किया करते है। और
आधार पर ही ऊँनता अथवा ऊँचगोत्रोदय तथा इस तरह सहस्रों प्रकारके कार्योंमें अपनी उन्नति करके नीचसा अथवा नीच गोत्रोदय हैं,' इस प्रकार चर्चा की अपने अपने नियम के(वृद्ध बढ़े) हुये अथवा बड़े कहलाते थी, अब हम दूमरे लेखमें मैं उसे कुछ विशेष रूप हैं; जैसे वयोवृद्ध, धनवृद्ध, गुणवृद्ध या विद्यावृद्ध, देता हूँ और इस विषय में अपनी ममम तथा अनेक बुद्धिवृद्ध, और धर्मवृद्ध आदि । और जो इन उपयुक्त विद्वानोंके लेखोंके अध्ययन-मनन परमं बने हुए अपने विषयों में अवनत होते हैं वे हीन तथा छोटे कहलाते हृदयके भावको और अधिक स्पष्टताके माथ व्यक्त करता है । यह सहस्रों प्रकार के विषयों ( कार्य, कला, विद्या
आदि ) की उन्नति, अवनति ही ऊँच नीच गोत्र को
दय है । गोत्र कमके अगणित भेद है। ऊँच-नीचगोत्रकर्मोदय क्या है ? मुमुक्षु-भावनासे ओत-प्रोत हृदयों वाले हमारे सपूर्ण संसारके जीव और विशेष करके मनुष्य प्राचार्योंने श्रात्मा के अन्य कार्योंकी उन्नति-अवनतिके अपनी अपनी यथासभव और यथाशक्ति उन्नति करने विषयमें लिखनेको अप्रयोजनमत समझ कर उसकी के सदैव इच्छुक रहा करते हैं और उन्नति करते भी उपेक्षा की और प्रधानतया आत्माकी प्रयोजनमत केवल रहते हैं। कोई स्वास्थ्य के नियमोंका पालन करके धार्मिक उन्नति के विषय में ही जिसका कि वे अभ्यासकर बहुत काल तक जीते रहने में अपनी उन्नति करने हैं, रहे थे, गहरी छान, बीन, खोज तलाश,तर्कवितर्क आदि कोई बहुत धन कमा कर धनवृद्धि में अपनी उन्नति करनेमें ही अपनी सारी शक्ति लगादी और अगणित करते हैं; कोई नानापकारको युकियाँ सीखकर और साहित्यका निर्माण कर डाला। बताकर तथा कठिनसे कठिन कार्यको भी सरलतापूर्वक जिन आचरणोंसे जन्म-मरणरूप संसार-भ्रमणकी करलेनेकी तरकीबें ( उपाय ) सोच सोच कर अपनी वृद्धि ( उन्नति ) होती है, उन आचरणोंको त्याग करके बुद्धिको वृद्धि में उन्नति करते है और कोई नानाप्रकार उनके विरुद्ध अहिंसा, सत्य, शील,सयमादि अाचरणोंको की कवाएँ-विद्याएँ, जैसे चित्रकारी, राग, वाद्य, वैद्यक अंशरूपसे तथा पूर्णरूपसे पालन करने और अपने