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भनेकान्त
आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४५६
आपको उन पाचरणोंमय बना देनेको 'धार्मिक उन्नति' चरण कम होने वाले प्राणीकी अपेक्षा नीच गोत्रका भी करना कहते हैं। यह धार्मिक उन्नति प्रत्येक मनुष्यकी उदय है ।
और प्रत्येक प्राणीकी भिन्न भिन्न प्रकारकी होती है और इस धार्मिक उन्नतिको एक दूसरे प्रकारसे भो नित्य-निगोदसे निकलते ही यह धार्मिक उन्नति प्रारम्भ बतलाया जा सकता है और वह यह कि, इस धार्मिक हो जाती है । उदाहरण के लिये तीन मनुष्योंको लीजिये, उन्नति के भी असल्यान स्थान हैं, परन्तु समझने के जिनमेंसे एक तो देवगुरु-धर्मकी श्रद्धापूर्वक अष्ट मूल लिये यहाँ केवल एक शत स्थानोंकी कल्पना कीजिये । गुणोंका पालन करता है; दूसरा पंच अणुव्रतों और एक प्राणाने तो सिर्फ पांच स्थान तक उन्नति की है, सप्त शोलवतोंके अनुष्ठानम लीन रहता है, और तीसरा दूभरेने पैतानी न स्थान तक, तीसरेने पनपन स्थान तक, अहिंसादि ब्रतोंके अनुष्ठानपूर्वक सप्तम प्रतिमानकके चौथेने पिच्यानवे स्थान तक उन्नति की है । जिसने पांच आचरणको लिये हुए पूर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करता है। स्थान तक उन्नति कीहै उसके अपनेस नीचे के स्थानोकी इनमसे पहलेकी बाबत कहना होगा कि उसने दूसरे- अपेक्षा ऊँच गोत्रका उदय है और अपने ऊपर वाले तीसरेकी अपेक्षा कम धार्मिक उन्नति की, दूमरेने पहलेसे पैत्तालीम प्रादि स्थानों वाले प्राणियोंकी अपेक्षा नीच अधिक और तीसरेसे कम उन्नति की,और तीसरेने पहले गोत्रका उदय है । जिसने पंतालीम स्थानोंतक उन्नति की तथा दूसरे दोनोंकी ही अपेक्षा अधिक धार्मिक उन्नति है उसके अपने पॉच आदि स्थान वाले प्राणियोंकी की। इस धार्मिक उन्नतिको दूसरे शब्दोंमें यं भी बतलाया अपेक्षा ऊँच गोत्रका उदय है और अपनेसे ऊपर के जा सकता है कि, पहले मनुष्यके अदर दूमरे तथा पचपन आदि स्थानों वाले प्राणियोकी अपेक्षा नाच तीसरेके मुकाबिलेमें धर्माचरण कम और असंयमाचरण गोत्रका उदय है। इसी तरहम जिमने पचपनस्थान तक अधिक है, अतः दूमरे तथा तीमरे की अपेक्षा इमके नीच उन्नति की है वह अनेसे नीचे के पैमालीम आदि स्थान गोत्रका उदय है। तीसरे मनुष्य के अन्दर पहले नथा वाले प्राणियोंकी अपेक्षा ऊंचा है-बड़ाहै -और अपने दूमरे के मुकाबिलेमें असंयमाचरण कम और धर्माचरण से ऊपरके पिच्यानवें श्रादि स्थान वाले ईश्वरत्वको प्राप्त अधिक है अतः पहले और दूमर की अपेक्षा इमके ऊँच हुये श्रात्माओम नीचा हे-छोटा है और जिमने पिच्यानवे गोत्रका उदय है । और तीमरे मनुष्य के अन्दर पहलेकी स्थान तक उन्नति की है वह अपने से नीचे वाले पचपन अपेक्षा तो असंयमाचरण कम और धर्माचरण अधिक आदि स्थान वाले प्राणियोंकी अपेक्षा बड़ा है ऊंचा है है अतः पहलेकी अपेक्षा इसके ऊँच गोत्रका उदय है तथा अपनेसे ऊपर वाले स्थान वालोंकी अपेक्षा छोटा है और तीसरेकी अपेक्षा धर्माचरण कम और असंयमा- इस तरह पर प्रत्येक प्राणाके अन्दर किसी एक अपेक्षा चरण अधिक है, अतः तीसरेकी अपेक्षा इसके नीच से ऊँच गोत्रका उदय है, और किसी दूसरी अपेक्षासे गोत्रका भी उदय है । इस तरह पर प्रत्येक मनुष्य और नीच गोत्रका उदय है-अर्थात् अपनी २ अलग २ प्रत्येक प्राणीके अपनेसे असयमाचरण अधिक और अपेक्षासे प्राणी मात्रमें बड़ापना और छोटापना दोनो धर्माचरण कम होने वाले प्राणीकी अपेक्षा ऊच गोत्रका धर्म पाये जाते हैं। इस कारण ऊंचगोत्री कहलाना भी उदय है और अपनेसे धर्माचरण अधिक और असंयमा- अपने २ धार्मिक सदाचरणोंको श्रादि लेकर नाना