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वर्ष ३, किरण १२]
पंडितप्रवर आशावर
पं० महावीर जैनेन्द्र प्रमाण - शास्त्र और जैनेन्द्र रूपसे न चलाया हो और ऐसे कौन हैं जिन्हें काव्यसुधा पिला करके रमिकों में प्रतिष्ठा न प्राप्त कराई हो ॥ ९ ॥
(इस श्लोक की टीका में पं० श्रशाधरजीने जुदा जुदा विषयोंका अध्ययन करनेवाले अपने शिष्यों के नाम भी देदिये हैं। उन्होंने पण्डित देवचन्द्रादिकी व्याकरण, वादीन्द्र विशालकीर्त्यादिको न्यायशास्त्र, भट्टारक विनयचन्द्र आदिको धर्मशास्त्र और बालमरस्वती महाकवि मदनादिको काव्यशास्त्रका
अध्ययन कराया था 1
जिसने (आशा धरने) 'प्रमेयरत्नाकर' नामका तर्क-प्रन्थ बनाया, जो स्याद्वादविद्याका निर्मल प्रसाद है और जिसमेंसे सुन्दर पद्योंका पीयूष ( अमृत ) प्रवाहित होता है । १० ॥
जिमने 'भरतेश्वराभ्युदय' नामका सत्काव्य, जो निबन्धोज्ज्वल अर्थात् स्वोपज्ञ टीकासे स्पष्ट है, त्रैविद्य कविराजको प्रसन्न करनेवाला है, सिद्धचक है, अर्थात जिसके प्रत्येक सर्गके अन्तिम पद्यमें 'सिद्धि' शब्द आया हैं, अपने कल्याणके लिए रचा । जिसने जिनागमसंभूत धर्मामृत नामका शास्त्र, 'निबन्धरुचिर, अर्थात् ज्ञानदीपिका नामका पञ्जिका टीका सुन्दर बनाकर मुमुक्षु विद्वानोंके हृदय में अतिशय आनन्द उत्पन्न किया || ११ ॥
जिमने श्रीनेमिनाथविषयक 'राजमती- विप्रलंभ' नामक खण्ड काव्य स्वोपज्ञ टीकासे युक्त बनाया || १२ ||
जिसने अपने पिता की आज्ञासे योगशास्त्र का अध्ययन आरम्भ करने वालोंके लिए प्यारा और प्रसन्न गम्भीर अध्यात्मरहस्य नामक शास्त्र
बनाया || १३ ||
व्याकरण पढ़ा || ५ ॥ विन्ध्यवर्मा के सान्धिवैग्रहिक मन्त्री (फॉरेन सैक्रेटरी) बिल्हण कविराजने जिसका इस प्रकार स्तुति की " हे आशावर हे आर्य, मरस्वतीपुत्रता से तुम मेरे साथ अपनी स्वाभाविक सहोदरता ( भाईपन ) और अन्वर्थ मित्रता समझो। ( 'मरस्वतीपुत्रता'
पद है। अर्थात जिस तरह तुम सरस्वतीपुत्र हो उसी तरह मैं भी हूँ । शारदाक उपासक होनेसे दोनों सरस्वतीपुत्र तो थे ही, साथ ही आशाधरकी पत्नीका नाम सरस्वती था और उससे छाहड़ नाम का पुत्र था । उस सरस्वती पुत्र आशाधरको सरम्बती-पुत्रता प्राप्त थी । उधर मेरा अनुमान है कि बाल-सरस्वती महाकवि मदन भी बिल्हण के पुत्र होंगे, इसलिए उन्हें भी सरस्वती पुत्र कहा जा सकता है । इस रिस्तेसे बिल्हणने आशाधरको सहोदर भाई कहा है ) ।। ६-७ ।।
जो अर्जुनवर्मदेव के राज्य-कालमे नछ कच्छपुर में जो श्रावकों के घरोंसे सघन था जैनधर्मका उदय करने के लिए जाकर रहा ॥ ८ ॥
जिसने शुश्रूषा करने वाले अपने शिष्यों में ऐसे कौन हैं जिन्हें व्याकरण समुद्रके पार न पहुँचाया हो, ऐसे कौन हैं जिन्हें षट्दर्शन के तर्कशस्त्रको देकर प्रतिवादियोंपर विजय प्राप्त न कराई हो, ऐसे कौन हैं जिन्हें जिन-वचनरूपी दीपक ( धर्मशास्त्र ) ग्रहण कराके धर्म-मार्गमे निरतिचार
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f नलकच्छपुरको इस समय नालछा कहते हैं । यह स्थान धार ( मालवा ) से १० कोसकी दूरी पर है । व भी पर श्रावकों कुछ घर हैं, जैनमन्दिर भी हैं ।
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