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अनेकान्त
[पारिवन, वीर निर्वास सं०२४१५
बघेरवाल वंशमें श्री सल्लक्षण नामक पिता और होजाने पर सदाचार-नाशके डरसे जो बहुतसे भीरत्नी मातासे जैनधर्ममें श्रद्धा रखने वाले पण्डित परिजनों या परिवार के लोगोंके साथ बिन्ध्यवर्मा भाशाधरका जन्म हुआ।१
राजाकं मालव मण्डल में आकर धारानगरीमें बम अपने आपको जिस तरह सरस्वती(वाग्देवता) गया और जिमने वादिराज पण्डित धरमनके शिष्य में प्रकट किया उमी तरह जिसने अपनी पत्नी शहाबुद्दीन ग़ोरी ही है। इसने वि० सं० १२४६ (ई० सं० सरस्वतीमें छाहड नामक गुणी पुत्रको जन्म दिया, ११६२ ) में पृथ्वीराजको हराकर दिल्लीको अपनी राजजिमने मालव-नरेश अर्जुनवर्मदेवको प्रमन्न धानी बनाया था। उमी वर्ष अजमेरको भी अपने किया । २
अधीन करके और अपने एक सरदारको सारा कारबार कवियोंके सुहृदय मेन मुनिद्वारा जो प्रीनि- सौंपकर वह गज़नी लौट गया था । शहाबुद्दीनने पूर्वक इन शब्दोंद्वारा अभिनन्दित किया गया- पृथ्वीराज चौहानसे दिल्लीका सिंहासन छीनते ही बघेरवाल वश-सरोवरका हंस, मल्लक्षणका पुत्र,
अजमेर पर धावा किया होगा; क्योंकि अजमेर भी
पध्वीगजके अधिकाग्में था और उमी समय सपादलक्ष काव्यामृतके पानमे तृप्त, नय-विश्वचक्षु, और कलिकालिदास पण्डित आशाधरकी जय हो।"
देश उमके अत्याचारोंमे व्याप्त हो रहा होगा। इसी ममय और मदनकीर्ति यतिपतिने जिसे 'प्रज्ञापुंज' कहकर
अर्थात् विक्रम सवत् १२४६ के लगभग प० श्राशाधर अभिहित कियो। ३-४
मांडलगढ़ छोड़कर धागमें श्राये होंगे।
अनगारधर्मामृतकी मुद्रित टीकामें विन्ध्यभूपतिका म्लेच्छ नरेशके द्वारा सपादलक्ष देशके व्याप्त
१.११ पास खुलासा 'विजयवर्म मालवाधिपतिः' किया है; परन्तु चौहान राजाओंको 'मपादलक्षीय नृपति' विशेषण दिया हमारे अनुमानसे लिपिकारके दोषसे अथवा प्रूफजाने लगा । साँभरको ही शाकंभरी कहते हैं । माँभर मंशोधककी श्रमावधानीस ही 'विन्ध्यवर्मकी जगह 'विजझील जो नमकका अाकार है, उस ममय मवालख देश यम' हो गया है । परमारवंशकी वंशावलियों और की मिगार थी,अर्थात् साँभरका राज्य भी तब सवालग्वमे शिलालेखोंमें विन्ध्यवर्माका 'विजयवर्मा' नामान्तर नहीं शामिल था। मण्डलकर दुर्ग अर्थात् मांडलगढ़ का किला मिलता । श्रीयुक्त लेले और कर्नल लुअर्डने विन्ध्यवर्माका इस समय मेवाड़ राज्यमें है, परन्तु उस समय मेवाड़का समय वि० सं०१२१७ से १२३७ तक निश्चित किया है; मारा पूर्वीय भाग चौहानों के अधीन था। चौहान राजा. परन्तु प० अाशाधर जीके उक्त कथनस कमसे कम
ओंके बहुतसे शिलालेख वहां पर मिले हैं । पृथ्वीराजके १२४९ तक विन्ध्यवर्माका राज्यकाल माना जाना ममय तक वहाँके अधिकारी चौहान रहे हैं । अजमेर जब चाहिए । उक्त विद्वानोंने विन्ध्यवर्मा के पुत्र और उत्तरामुसलमानोंके कब्जेमें आया तब माँडलगढ़ भी उनके धिकारी सुभटवर्मा ( सोहड़) का समय १२३७ से १२६७ हाथ चला गया।
तक माना है, परन्तु सुभटवर्मा १२३७ में राजा था, धर्मामृतकी टीकामें इस म्लेच्छराजाको "साहि. इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है, वह १२४६ के बाद ही बुद्दीन तु रुष्क" बतलाया है। यह गजनीका बादशाह राजपद पर पाया होगा।