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अनेकान्त
[माश्विन, वीर निर्वाण सं०२४६६
जिसने मूलाराधना (भगवतीभाराधना ) पर, जिसने वाग्भट संहिताको स्पष्ट करनेके लिए इष्टोपदेश (पूज्यपादकृत ) आदिपर और अमर- आयुर्वेदकं विद्वानोंके लिए इष्ट 'अष्टांगहृदयोधोत' कोशपर टोकायें लिखीं और 'क्रियाकलाप' को नामका निबन्ध ( टीका-ग्रन्थ ) लिखा ॥ १९॥ रचना की। (आदि शब्दकी टीकामें आराधनासार ऐसा मैं आशाधर (जिमका परिचय ऊपर (देवसेन कृत) और भूपाल चतुर्विशतिका आदि दिया जा चुका है ) धर्मामृतकं यतिधर्मको प्रकाशित की भी टीकायें बनाने का उल्लेख किया है। ) ॥१४॥ करनेवाली और मुनियोंको प्यारी यह टीका
जिसने रुद्रटाचार्यके 'काव्यालङ्कार' की टीका रचता हूँ ॥२०॥ बनाई और स्वोपज्ञ टीका सहित जिनसहस्र नाम यदि इसमें छमस्थताके कारण शब्द-अर्थका बनाया ॥ १५॥
कुछ स्खलन हुआ हो, तो धर्माचार्य और विद्वान जिसने जिनयज्ञकल्पदीपिका नामक टीका उसे सुधार कर पढ़ें ॥ २१ ॥ सहित 'जिनयज्ञकल्प' और सटीक त्रिषष्टि-स्मृति.
नलकच्छपुर ( नालछा ) में गृहस्थोंके अगुए, शास्त्र' की रचना की ॥ १६ ॥
परम आर्हन, जिनपजा-कृपादानपरायण, सोनाजिसने अर्हत् भगवानकी अभिषेक सम्बन्धी
माणिक-विनयादिसे युक्त, पापोंसे पराङ्मुख,खण्डेविधिके अन्धकारको दूर करने के लिए सूर्यके सदृश
लवाल वंशके पापा नामक माहूकार हैं ॥२२-२३॥ 'नित्य-महोद्योत' नामका स्नानशास्त्र बनाया ॥१७
उनके दो पुत्र हैं, पहले पिताकी गृहस्थीके भारको
संभालनेवाले बहुदेव और दूसरे लक्ष्मीवान पद्मसिंह जिसने रत्नत्रय-विधानकी पूजा और
॥२४॥ बहुदेवके तीन पुत्र हैं-हरदेव, उदयदेव माहात्म्यका वर्णन करनेवाला 'रत्नत्रय-विधान'
और स्तंभदेव । ये तीनों धर्म, अर्थ, कामका साधन नामका शास्त्र बनाया ॥१८॥
करनेवाले हैं ।। २५॥ माहू महीचन्द्रने बालबुद्धियों • पहले भ्रमवश यह समझ लिया गया था कि को समझानेके लिए धर्मामृतशास्त्र के सागार-धर्मकी अमरकोशकी जो पं० आशाधरकी लिखी टीका है, टीका बनवाई और उसी धर्मामृतके यतिधर्म उसका नाम 'क्रियाकलाप' होगा । इस विषयमें 'विद- (अनगारधर्म) पर भी जो कुशाप्रबुद्धिवालोंके द्रलमाला' के लेखका अनमरण करके प्रायः सभी लिए भी दुर्बोध्य है, टीका बना दीजिए, इस प्रकार विद्वानोंने इस ग़ल्तीको दुहराया है । यहाँ तक कि पं० को हरदेवकी विज्ञप्ति और धनचन्द्र के अनुरोधसे पन्नालालजी सोनीने भी अपने अभिषेकसंग्रहकी भमिका पण्डित आशाधरने यह क्षोदक्षमा (विचारसहा ) में यही माना है । साहित्याचार्य पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ टीका बनाई ॥ २६-२८ ॥ भी अपने पिछले ग्रंथ 'राजा भोज' में 'अमरकोशकी विद्वानोंने इसे भव्यकुमुदचन्द्रिका नाम दिया। क्रियाकलाप-टीका' लिख गये हैं । वास्तवमें क्रिया-कलाप ये दोनों सागार-अनगार-टीकायें कल्पकालपर्यंत पं० श्राशाधरका एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है और उसकी एक रहें और मुमुक्षुजन इनका चिन्तन, अध्ययन करते हस्तलिखित प्रति बम्बईके सरस्वतीभवनमें मौजूद है। रहें ॥ २९ ॥