SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 756
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंडितप्रवर पाशाधर [0-श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी ] (गत किरणसे आगे ) -भट्टारक विनयचन्द्र-इष्टोपदेशकी टीकाके है-"रचितमिदं राजगुरुणा मदुनेन ।' मदन गौड़ अनुसार ये सागरचन्द्र मुनीन्द्र के शिष्य थे और ब्राह्मण थे। पण्डित पाशाधरजीने इन्हें काव्य-शास्त्र इन्हें पण्डितजीन धर्मशास्त्र का अध्ययन कराया पढ़ाया था। था। इन्हींके कहनेसे उन्होंने इष्टोपदेशकी टोका। -पंडित बाजाक-इनकी प्रेरणासे पण्डितजीने बनाई थी। प्रति दिनके स्वाध्यायके लिए त्रिषष्टिस्मृति-शास्त्रकी ___-महाकवि महोपाध्याय-हमारा अनुमान है रचनाकी थी। इनके विषयमें और कुछ नहीं कि ये विन्ध्यवर्माकं संधिविग्रहिक मंत्री बिल्हण मालूम हुआ। कवीशके ही पुत्र होंगे। 'बाल-सरस्वती' नामसे २०-हरदेव-ये खण्डेवाल श्रावक थे और ये प्रख्यात थे और मालवनरेश अर्जुनवर्माके गुरु अल्हण-सुत पापा साहुके दो पुत्रों बहुदेव और थे। अर्जुनवर्माने अपनी अमरुशतककी संजीविनी पद्मसिंहमेंसे बहुदेवके पुत्र थे । उदयदेव और टीकामें जगह नगह 'यदुक्तमुपाध्यायेन बाला सरस्वत्या- स्तम्भदेव इनके छोटे भाई थे। इन्हींको विज्ञप्तिसे परमाग्नामदनेन' लिखकर इनके अनेक पद्य उद्धृत पंडितजीने अनगारधर्मामृतकी भव्यकुमुदचंद्रिका किये हैं। उनसे मालूम होता है कि मदनका कोई टीका लिखी थी। अलंकार-विषयक प्रन्थ था। महाकवि नदनको पारि- 1 महीचन्द्र साहु-ये पौरपाट वंशके अर्थात जानमंजरी नामकी एक नाटिकाथी,जिसके दो अंक परवार जातिके समुद्धर श्रेष्ठीके लड़के थे हैं। इनकी • धारकी 'कमाल मौला' मसजिदके पत्थरों पर खदे प्रेरणासे सागारधर्मामृतकी टीकाकी रचना हुई थी हुए मिले हैं। अनुमान किया जाता है कि शेष और इन्हींने उसकी पहली प्रति लिखी थी। अंकोंके पत्थर भी उक्त मसजिदमें कहीं लगे होंगे। १२ धनचन्द्र--इनका और कोई परिचय नहीं पहले यह नाटिका महाराजा भोजदेवद्वारा स्थापित दिया है। सागार-धर्मटीकाकी रचनाके लिये इन्होंने शारदा-सदन नामक पाठशालामें उत्कीर्ण करके भी नपरोध किया था। . रक्खी गई थी और वहीं खेली गई थी। अर्जुन- पौरपाट और परवार एक ही हैं, इसके लिए वर्मदेवके जो तीन दान-पत्र मिले हैं, वे इन्हीं देखिए मेरा लिखा हुआ 'परवार जातिके इतिहास पर मदनोपाध्यायके रचे हुए हैं । उनके अन्तमें लिखा प्रकाश' शीर्षक विस्तृत लेख, जो 'परवारबन्धु' और .* देखिये आगे प्रशस्तिके ६-७ वै पद्यकी व्याख्या। 'अनेकान्त' में प्रकाशित हुआ है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy