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________________ अनेकान्त [भारिखन, वीर निर्वाण सं०२४१५ - और इसलिये मैं आपका सबसे अधिक आभार उमे मिल कर उठा लेवें, अथ ग हमके संचालनके मानता हूँ। इन सज्जनों में बा० सूरजभानजी वकोल लिये ममाज का एक सुव्यवस्थित बोर्ड नियत हो पं नाथूरामजी 'प्रेमी', बा• जयभगवानजी वकील, जात्र, जिम में यह पत्र मर्वथा परराखपेक्षा न रहेपं० परमानन्दजी शास्त्री, न्यायाचार्य पं. महेन्द्र- किसीकी किमी भी कारणवश सहायता बन्द हा कुमारजी, बा० अगरचन्दजी नाहटा, पं रतनलाल- जान पर हमका जीवन खतरेम न पड़ जाय और जो संघवी, भाई अयोध्याप्रमादजी गोयलीय, इसे अपना जीवन संकट टालने के लिये इधर-उधर पं. भगवत्स्वरूपजी 'भगवत्', व्याकरणाचार्य पं. भटकना न पड़े इस स्वावलम्बी बनन तथा घाटम वंशीधरजी, बा० माईदियालजी बो. ए., प्रो० मुक्त रहनेका परा प्रयत्न किया जाय और इम जगदीशचन्दजी एम. ए., प० कैनाशचन्दजो शास्त्री क्रमशः 'कल्याण' की कोटिका पत्र बनाया जाय । पंताराचन्दजी दर्शनशास्त्री ओर भाई बालमुकन्द- साथ ही, इसका प्रकाशन भी मम्पादनकी तरह जी पाटोदीकं नाम खाम तौरसे उल्लेख योग्य हैं। वीरसेवामन्दिर मरमावासे हो बराबर होता रहे, आशा है ये सब मज्जन आगेको इमसे भी अधिक जो इसके लिये उपयक्त तथा गौरवका स्थान है । उत्साहक साथ 'अनेकान्त' की संवाम तत्परर हेंगे, समाजको माली हालत,धर्म कार्योंम उपके व्यय और और दूसरे सुलेखक भी आपका अनुकरण करेंगे। उसके श्रीमानोंकी उदार परिणतिको देखते हुए यह २ अनेकान्तका आगामी प्रकाशन सब उसके लिय कुछ भी नहीं है । मिर्फ थोडामा 'अनेकान्त' को गत ११वा किरण में व्यवस्थापक योग इस तरफ देन-दिलाने की जरूरत है. जिमके अनेकान्तने जो सचना निकाली थी उसके अनुमार इम लिये अनेकान्तक प्रमियाँको ग्वामतौरमे प्रय किरणके बाद में अनेकान्तका देहलांस प्रकाशन बन्द हो करना चाहिय । मेरा रायमें बोड जैनी किसी बड़ा रहा है। अतः इस पत्रक अागामी प्रकाशनकी एक स्कीममे पहल अनकान्त के कुछ महायक बनाए बड़ी समस्या सामने है । व्यवस्थापकाकी सूचनाको जावें और उनके १००), ५०) तथा २५) तीन पढ़कर मेरे पास पं० मुन्नालाल नी जैन वैद्य मलकापुर ग्रेड रक्खे जाएँ । कमसे कम १५ मज्जन सौसौकी (बरार) का एक पत्र पाया है, जिसम उन्होंने २० सज्जन पचाम पचामको और २० सज्जन 'अनेकांत' के संचालन और उसके घाटेके भारको पच्चीम पञ्चीम रुपएकी सहायता करने वाले र्याद उठानेकेलिये अपनको पेश किया है और लिखा है कि मिल जाए तो अनकान्त कुछ वर्षोंक लिए घाटेकी स्वीकारता मिलने पर वे अपन श्रीमहावीर प्रिटिंग चिन्तासे मुक्त हो सकता है और इस असेंमें वह प्रेसम अनेकान्तके योग्य नये टाइपों आदिकी व्यवस्था फिर अपने पैरों पर भी आप खड़ा हो सकता है । कर दंगे और पत्रको सुन्दरता नथा शुद्धता के साथ यदिइम किरणकं प्रकाशित होनमे १५दिन के भीतर छापकर प्रकाशित करनेका पूरा प्रयत्न करेगे । इस १५ नवम्बर नक मुझे ऐसे महायकों की ओरसे प्रशमनीय उत्साह के लिये श्राप निःसन्देह धन्यवादक एक हजार रुपयकी महायताक वचन भी मिल गये पात्र हैं । अस्तु, अभी अापस पत्रव्यवहार चल रहा है, तो मैं वीरसेवामन्दिर मे ही अनेकान्तके चौथे कुछ समस्याएं हल होनको बाकी हैं, जैसा कुछ अन्तिम वर्षका प्रकाशन शुरु कर दूंगा। आशा है अनेकान्त निर्णय होगा उसकी सूचना निकाली जायगी। कं प्रेमी इम विषयकी महत्ताका अनुभव करते हुए ३ मेरी आन्तरिक इच्छा शीघ्र ही इस ओर याग दन-दिलानम पेशकदमी मेरी आन्तरिक इच्छा तो यह ह कि 'अनकान्त' करेंगे और मुझे अपनी सहायताके वचनसे शीघ्र के घाटेका भार समाज के किमी एक व्यक्ति पर न ही सूचित करने की कृपा करेंगे। रक्खा जाय, बल्कि समाजके कुछ उदार सज्जन
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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