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[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं. २१)
पर इस प्राचार्यसे कहा हुआ अमोघवर्ष- विवेकात्यावरान राज्ञेयं रस्नमाविका । वृपतुंग हमारे इस लेखका नायक न होकर, राष्ट्र रचितामोघवर्षेय मुधिया सदलंकृतिः ॥ कूटवंशका (अथवा अन्य किसी वंशका) और Several editions of this work have कोई नसी नामका नरेश होगा तो इस भाचार्य since been published in Bombay. It के कथन और इस नरेशके सम्बन्ध में तर्क-वितर्क is variously attributed to Sankara
Charya, Sankarananda and a Svetaकरना इस लेखका उद्देश्य नहीं।
inbara writer Vimala. But the royal (इ) प्रश्नोत्तररत्नमालिका authorship of the 'Ratnamala' is यह एक नीतिमार्गोपदेशी छोटासा संस्कृत
Contırmed by a Thibetan translation
of it discovered by Schiefner in which काव्य है । बम्बई 'निर्णयमागर' मुद्रणालयसे
the author is represented to have प्रकटित काव्य मालाके सप्तम गुच्छकम यह been a kingand his Thibetan name,
"Indian Anti
as retranslated into Sanskrit by the quary' (Vol. XII.) में इस कविताके सम्बन्ध same scholar, is Amoghodaya, which में (पृ०२१८) इसमें ३. पद्य हैं ऐसा कहा है। इसे obviously stands for Amoghavarsha. प्रथमतः प्रकाशित करने वाले श्रीमान के.बी. This work was composed between
Saka 797-99; in the foriner year पाठक महाशय मालूम पड़ते हैं, परन्तु 'कविराज
Nripatunga abdicated in favour of मार्ग'के उपोद्घातमें इसका निर्देश करते वक्त his son Akalavarsha" इसमें कुल कितने पथ हैं सो लिखा नहीं, वैसे इनका यह विचार कहाँ तक ठीक है, इस ही उन्हें मिली हुई प्रतिक अन्तिम एक पद्यको सम्बन्धमे विचार करनंक पहिले, उस विचारउद्धत करनेके सिवाय उसमें और पद्योंको दिया सम्बन्धी कुछ पद्य यहाँ देना आवश्यक हैभी नहीं। उस उपोद्घातमें (पृ०९) इस कविताके
प्रणिपत्य पईमानं प्रश्नोत्तररत्नमालिकां वये। सम्बन्धमें भाप कहते हैं:
नागनरामरवन्धं देवं देवाधिपं वीरम् ॥१॥ "Nripatunga was not only a liberal patron of letters, but he is also
कः खलु नालंक्रियते दृष्टादृष्टार्थसाधनपटीयान् । known as a Sanskrit author. A few कंठस्थितया विमलप्रश्नोत्तररत्नमालिक्या ॥ २॥ years ago I discovered a small Jaina ................................. work entitled " 'Prasnottara-ratna.
इति कंठगता विमला प्रश्नोत्तर स्नमाबिकायेषाम् । mala' the Concluding verse of which owns Amoghavarsha as its author :
ते मुक्ताभरणा अपि विभान्ति विहस्समाजेषु ॥ २८ इस मूल कविताका अंग्रेजी पचानुषाव-पुक्त मेरा काव्यमाला' ( Nirnay-Sagar Press) देख Canara High School Magazine, के संपादकने उसे प्रकट करनेके लिये संग्रहीत Mangalore Vol. II प्रथम अंक प्रकाशित। 'क' और 'ख' नामांकित हस्तलिखित प्रतियोमेसे