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________________ नृपतुंगका मत विचार भक्त मालूम पड़ता है-किन्तु जैनी था यह हुमा तो किसी जैनाचार्य के उपदेशसे ही होना मालूम नहीं पड़ता; वैसे ही उसी शासनके 'गा- चाहिये, इस विषयमें उसका उपदेशगुरु जिनसेन बोधन' 'कीर्तिनारायणो' 'महावितुवराज्यम्बोख' था इस प्रकार कुछ लोगोंका विश्वास है । पर इत्यादिसे यह वैग्णव था, यह बात स्पष्ट मालूम जिनसेन-द्वारा नृपतुंग जैनी हुभा, यह बात पड़ती है। इसके अन्तिम वर्षके (ई. सन् ८७७) 'गणितसारसंग्रह' में नहीं कही गई, अथवा जिनसोरब नं ८५, (E.C.Vol.Vill., pt.ll) शासन सेनके सिवाय अन्य जैनाचार्यके उपदेशसे नृपतुंग से भी, यह जैन था इस सम्बन्धमें कोई प्रमाण जैनी हुआ यह बात नहीं कही गई और जन्मतः नहीं मिलता । पर ई० म० ८७७ के पश्चात नृप- जैनी नहीं रहे नरेशको जैनी कहा गया। प्रशस्ति तुंग जैन क्यों नहीं बन सकता ? यह आक्षेप हो के अनेक पद्योंमें वह किसके उपदेशसे जैनधर्मी सकता है। पर यह बात हो भी मकती है और हुआ इस मम्बन्धमें भी एक दो बात लिखना उस नहीं भी; क्योंकि ई० स० ८७७ में नृपतुंगका देहा- प्रन्थकर्ताका कर्तव्य था। वसान हुआ हो, या राज्यकारसे निवृत होकर अतएव इस गणित ग्रंथकी प्रशस्तिमें कहा उमन वानप्रस्थाश्रमका ग्रहण किया हो, इसका हुमा वक्तव्य उस आचार्य-द्वारा स्वतः जाना हुआ निष्कर्ष अब तक नहीं हुआ, अनिश्चित ऐतिहा- सत्य नहीं किन्तु कर्णपरंपरासे सुनी हुई पातको सिक घटना परसे ऐमा ही था यह कहना ठीक लिख डाला मालूम पड़ता है। ऐतिहासिक दृष्टिमें नहीं। वह कैमी भी हो, इस प्राचार्यके वक्तव्य यह बात मूल्य नहीं रखती । 'पारीभ्यदय' के का विचार करने में कोई वाधा नहीं, क्योंकि 'देव- टीकाकारनं उस काव्यमें 'भुवनमवतु देवः सर्वदास्प नृपतुंगस्य वर्धतां तस्य शासनम्' इस प्रकार मोघवर्षः' इस प्रकारके एक आशीर्षचनसे इसके वक्तव्यसे वह नपतुंग उस वक्त शासन (बहुशः आप सुनी हुई जनश्रुतिका प्राधार लेकर) करते हुए व्यक्तिसे भिन्न राज्यभारसे निवृत्त बड़े भारी भतिशयोक्तिपूर्ण कथा-तन्तु-जालको ' (अर्थात पहिले शासन किया हुआ ) नरेश, यह बुना होगा ऐसा मालूम पड़ता है। पर योगिराट् अर्थ नहीं होना; पर ई० स० ८७७ तक नृपतुंग पंडिनाचार्य के समान यह (वीराचार्य) जिनसेन, जैन नहीं था यह बात हम पहिले अवगत कर नृपतुंगसे ५५०-६०० वर्षों के इधरका व्यक्ति नहीं हैं, (बहुशः) अनके समकालीन होगा, इस प्रकार __उम ममय जिनसेनाचार्य जैन मताप्रगए । आक्षेप करने पर, जिनसेन और उसके खास था; नृस्तुंगने एक बार भो उसे वन्दन किया होगा शिष्य और अमोघवर्ष-नृपतुंगकं शासनमें भी, तो उस पर इस नरेशकी श्रद्धा हो सकती है । ऐमी उसके समयानन्तर उसके पुत्र अकालवर्षके शासन अवस्थामें इस 'गणितसारसंग्रह' में उस जिन- में भी विद्यमान गुणभद्रस भी जो बात नहीं कही सेनका नाम क्यों नहीं ? नृपतुंग जन्मसे जन धर्मी गई उमको इम महावीराचार्यने कहा है तो उसे नहीं था यह बात सभी जानते हैं; यदि वह जैनी ऐतिहासिक तथ्य कैसे मान सकते हैं ?
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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