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________________ गोम्मटसार कर्मकाण्डकी त्रुटिपूर्तिपर विचार । ले०-प्रो० हीरालाल जैन एम.ए. एलएल. बी. ] चाचार्य नेमिचन्द्रकृत कर्मकाण्डके सम्बन्धमें पं०पर- अपने ग्रंथम यथास्थान रखी थीं तो क्या परचात्के * मानन्दजी शास्त्राने अनेकांत,वर्ष ३,किरण १ लिपिकारों के प्रमादसे छुट गई, या टीकाकारोंने उन्हें में एक लेख लिखा है, जिसका सारांश यह है- जान बूझ कर छोर दिया ? यदि लिपिकारोंके प्रमादसे प्राचार्य नेमिचन्द्र-विरचित कर्मकाण्डके अनेक वे छुट गई होती तो टीकाकार अवश्य उस रावतीको प्रकरण व संदर्भ अपने वर्तमान रूपमें 'अधरे और लंड्रे' पकड़ कर उन गाथाओं को यथास्थान रख देते, और हैं। उन्हीं प्राचार्य द्वारा विरचित एक दूसरा ग्रंथ प्राप्त यदि वे प्रसग लिये अत्यन्त पावश्यक थीं तो वे जान हुआ है। जिसका नाम 'कर्म प्रकृति' है । इस कमः बझकर तो उन्हें छोड़ ही नहीं सकते थे। इस प्रथकी प्रकृतिकी १५६ गाथाओंम से गाथायें कर्मकाण्डमें टीकात्रों की परम्परा स्पयं उसके कर्ताके जीवन काल में मौजा ही है। शेष ०५ गाथाओंकी भी कर्म-काण्डम ही. ग्रंथकी रचना के साथ ही साथ प्रारम्भ हो गई थी। जोड देनेम उसका अधूरापन दूर हो जाता है। ये ५ कर्मकाण्डकी गाथा न० १०२ में प्राचार्य स्वयं कहते गाथाय सभवतः किसा ममय कम काण्डये छुट गई, हैं कि गोम्मटसूत्र ( गोम्मटमार) के लिखते ही वीरअथवा जुदा पदगई। श्रतएव जो मजन अब कर्मकाण्ड मातगड राजा गोम्मटराय (चामुणराय) ने उसकी को फिरसे प्रकाशित कराना चाहें वे उसमें उन १ कर देशो (टीका) डाली थी। यथागाथाओंको यथास्थान शामिल करके ही प्रकाशिन करें। गोम्मट मुत्तलिहण गोगटरायण जा कया दमी । ___ इस मनमें तीन बातें मुख्यत. विचारणाय ज्ञात सो रो चिरकाल गणमण य वीरमत्तंडी ।। होती है इसके कोई तीन मौ वर्ष पश्चात केशववर्णाने कर्मकावडम से ७५ गावामीका छुट जाना या गंम्मटमार वत्ति कनी में लिखा । फिर कर्नाटकवृत्तिके जदा पड़ जाना कब और कैसे सम्भव हो सकता है ? पापा संस्कृत टीका रची गई । इन टीकाओंमें २. उन गाथानोंके न रहनेसे कर्मकाण्डके उन चामुण्डरायकृत 'वेशी' का माश्रय लिया जाना प्रकरणों की अवस्था क्या है, तथा उन गाथामीको अनुमान किया जा सकता है। संस्कृत टीकाके निर्माणमें जोड़ने में क्या अवस्था व विशेषता उत्पन्न होती है? अनेक बहश्रत अनुरोधकों, महायकों और संशोधकोंग ३. कर्मप्रकृति ग्रन्थ किसका बनाया हुआ है, और हाथ बतलाया जाना है। माग और सहेस नामक उसका कर्मकाण्डपे क्या सम्बन्ध है? साधुओंकी प्रार्थनाय धर्मचन्दसूरि, अभय चन्द्र गणेश, १.यदि उक्त गाथाय कर्मकायके रचयिताने बाखा वी.पादि विद्वानोंके लिये यह टीका बिसी
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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