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________________ वर्ष :, किरण "] 'गो० कर्मकाण्डकी त्रुटिपूर्ति' लेखपर विद्वानों के विचार और विशेष सूचना १२० ___ राजवार्तिककी अन्तिम कारिकाओंका प्रक्षिप्त नताओंसे हमारा अभिप्राय है जिनकी पर्चा तक बतानेका भी कोई आधार नहीं । भाष्य और राज- सर्वार्थसिद्धिमें नहीं। ऐसी हालतमें प्रस्तुतभाष्यको वार्निकको आमने-सामने रखकर अध्ययन करनेसे अप्रमाणिक ठहराकर उसके समान वाक्य-विन्यास स्पष्ट मालूम होता है कि दोनोंके प्रतिपाद्य विषयों और कथन वाले किसी अनुपलब्धभाष्यको सर्वथा में बहुत समानता है। दोनों ग्रन्थों में अमुक स्थल निराधार और निष्प्रमाण कल्पना करनेका अर्थ पर बहुतमी जगह बिलकुल एक जैसी चर्चा है। हमारी समझमें नहीं पाता । भाष्यकी भाषा, शैली दोनोंमें पंक्तियोंकी पंक्तियाँ अक्षरशः मिलती हैं। आदि देखते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि समानता सर्वाथसिद्धि और राजवार्तिकमें भी है। वह राजवार्तिक अथवा सर्वार्थसिद्धिके ऊपरसे परन्तु यहाँ भाष्य और राजवार्तिककी उन समा- लेकर बादमें बनाया गया है 'गो०कमकाण्डकी त्रुटिपूर्ति' लेखपर विद्वानोंके विचार और विशेष सूचना 'गोम्मटमार-कर्मकाँडकी त्रुटिपति' नामका प्रकृतिकी वमब गाथाएँ मिलतीहैं जिन्हें 'कर्मप्रकृति' जो लेख अनेकान्तकी गन संयुक्त किरण (२०५९) के आधार पर 'कर्मकाण्ड' में त्रुटित बतलाया गया में प्रकाशित हुआ है और जिस पर प्रो० हीरालाल. था। 'कर्मप्रकृति' की भी एक प्रति संवत् १५२७ जीका एक विचारात्मक लेख इसी किरणम, अन्यत्र की लिखी हुई मिली है, जिमकी गाथा-संख्या १६० प्रकाशित हो रहा है, उस पर दूमर भी कुछ विद्वानों है-अर्थात एक गाथा अधिक है और उस पर के विचार मंक्षिप्त में आए हैं नथा आरहे हैं, जिनसे भी पाराकी प्रतिकी तरह अन्थकारका नाम मालूम होता है कि उक्त लेख समाजमें अच्छी दिल- 'नेमिचन्द सिद्धान्तचक्रवर्ती' लिखा हुआ है । 'कमचम्पीके माथ पढ़ा जा रहा है । उनमम जो विचार प्रकृति' 'कर्मकाण्ड' का ही प्रारम्भिक अंश है । यह इम ममय मेरे मामन उपस्थित हैं उन्हें नीचे मब हाल उनकं आज ही ( २३ सिनम्बरको ) प्राप्त उद्धृत किया जाता है । माथ ही यह सूचना देते हुए पत्रमे ज्ञात हुआ है। वे जल्दी ही आकर इस हुए बड़ी प्रसन्नता होती है कि उक्त लेखक लेखक विषय पर एक विस्तृत लेख लिखेंगे, जिसमें पं० परमानन्दजी आज कल अपने घर की तरफ प्रोफेमर हीरालालजीक उक्त लेखका उत्तर भी होगा गये हुए हैं, उधर एक भंडारको देखते हुए उन्हें अत: पाठकोंको उसके लिये १२ वी किरणकी कर्मकांडकी कई प्राचीन प्रतियां मिली हैं जो शाह- प्रतीक्षा करनी चाहिये । विद्वानोंक विचार इस जहाँक राज्यकालकी लिखी हुई हैं और उनमें कम- प्रकार है:
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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