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________________ १२० अनेकान्त [भानपद, वीर विर्वायसं.२०१६ १ न्यायाचार्य पं. महेंद्रकुमारजी जैन, त्रुटिपूर्तिका मुझे बहुत पसन्द आया है, उसके लिये शास्त्री, काशी धन्यवाद है।" "आपका लेख 'अनेकान्त' में देखा । आपका ४५० के० भुजबली जैन शास्त्री अध्यक्ष परिश्रम प्रशंसनीय है । यदि यह प्रयत्न सोलह जैनसिद्धान्त-भवन, आरापाने ठीक रहा और कर्मकाण्डकी किमी प्राचीन प्रतिमें भी ये गाथाएँ मिल गई तब कर्मकाण्डका "गोम्मटसार-सम्बन्धी प्रापका लेख महत्वअधूरापन सचमुच दूर होजायगा।" पूर्ण है।" २५० कैलाशचन्दनी जैन शास्त्री, ५ प्रोफेसर ए० एन उपाध्याय, एम. ए., स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी __ डी. लिट., कोल्हापुर"इसमें तो कोई शक ही नहीं कि कर्मकाण्डका “Yes, the additional verses of प्रथम अधिकार त्रुटिपूर्ण है। किन्तु 'प्रकृति' की Karm Kanda brought to light in गाथाएँ शामिल करनेमें अभी कुछ गहरे विचारको Anekant are interesting. Ifwe can जरूरत है। यह जांचना चाहिये कि 'कर्मप्रकृति' collate some more Mss, we might क्या स्वतन्त्र ग्रन्थ है ? 'कर्मकाण्ड'क्या पहलेसे ही couve to more reliable text of ऐसा बनाया गया था या बाद में उसमेंसे कुछ गाथाएँ Gommatasara." बुट गई । 'प्रकृति' की गाथाओंमें 'जीवकाण्ड' की -हो, कर्मकाण्डकी जो अतिरिक्त गाथाएँ भी कुछ गाथाएँ सम्मिलित होनसे अभी कोई भनेकान्त द्वारा प्रकाशमें लाई गई हैं वे चित्तानिश्चित राय नहीं दी जा सकती। आपका परिश्रम कर्षक हैं। यदि हम कुछ और हस्त लिखित प्रतिप्रशंसनीय है।" योंका समवलोकम-संपरीक्षण करें तो हम गोम्मट३५० रामप्रसादजी जैन शास्त्री, अध्यक्ष सारका अधिक विश्वसनीय मूल पाठ प्राप्त करनेमें ऐ० १० सरस्वती भवन, बम्बई- समथ हो सकेंगे।' "भापका लेख 'कर्मप्रकृति से 'कर्मकाण्ड' की -सम्पादक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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