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उच्च कुल और उच्च जाति
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ऊँची जाति, पुराना कुल, पाप-दादोंसे पाया हुआ धन, पुत्र-पौत्र, रूपरंग आदिका जो अभिमान करता है, उसके बराबर कोई मूर्ख नहीं, क्योंकि इनके पानेके लिए, उसने कौनसी बुद्धि खर्च की । किसी बुद्धिमानने कहा है कि जो लोग बड़े घरानेके होनेकी डींग मारते है, वे उस कुत्ते के सदृश हैं, जो सूखी हड्डी चिचोड़ कर मगन होता है।
महान् पुरुषके ये लक्षण है-१) जिसे दूसरेकी निन्दा बुरी लगती है और ऐसी बातको अनसुनी करके, किसीसे उसकी चर्चा नहीं करता । (२) जिसे अपनी प्रशंसा नहीं सुहाती, पर दूसरेकी प्रशंसासे हर्ष होता है (३) जो दूसरोंको सुख पहुँचाना अपने सुखसे बढ़कर समझता है (४) जो छोटोंसे कोमलता और दयाभाव तथा बड़ोंसे आदर-सत्कारके साथ व्यवहार करता है। ऐसे पुरुषको महापुरुष कहते हैं। केवल धन या ऊँचा कुल या जाति और अधिकारसे महानता नहीं आती।
अनेक विद्वान् योग्य और देश हितैषी बुरुष जिनकी कीर्तिकी ध्वजा हजारों वर्षसे संसारमें फहरा रही है. प्रायः नीचे कुलमें उत्पच हुए थे । ऊँचे कुल और ऊँची जातिका होनेसे बड़ाई नहीं आती। प्रकृति पर ध्यान करो तो यही दशा जड़ खान तक चली गई है कि छोटी वस्तुओंमें बड़े रत्न होते हैं--देखो कमल कीचड़से, निकलता है, सोना मिट्टीसे, मोती सीपसे, रेशम कीड़ेसे, जहरमुहरा मेंडकसे, कस्तूरी मृगसे, भाग लकड़ीसे, मीठा राहद मक्खी से।
-महात्मा बुद्ध [ीन बी. एस. वैवके सौजन्यसे]