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________________ . , किरण . वीरोंकी हिंसाका प्रयोग बुद्धिके उपयोग का क्षेत्र है। मैं यह नहीं कहता कि हम अपना कार्य छोड़ मापकी बुद्धिके उपयोगका क्षेत्र बताने के लिए दें। उमे तो भाग्रह पूर्वक चलाना ही है लेकिन मैंने ये प्रश्न बनाए । ये मौलिक प्रश्न हैं । उनका हम जागृत होकर काम करेंगे, तभी सिद्धि मिलेगी। उत्तर आप एक दिन में नहीं दे सकते । मैं यहाँ हमारी बुद्धि मन्द होगी तो हमारा काम बिगड़ने तक नहीं पहुँगा कि उन पर पुस्तक लिखं फिर भी, वाला है। मेरे दिमाग़में कुछ उत्तर तो हैं । मैं पुस्तक लेखक मेरा दर्द नहीं बन सकता । पुस्तक लेखक तो दूसरों को इस दृष्टिमं कल जो प्रस्ताव हुआ, वह आपको बनना है। मेरे पास इतनी फुरमत कहाँ है ? जो अध्ययन और खोजका मौका देगा। उम प्रस्ताव लोग अध्ययन और खोज करेंगे वे पुस्तक लिखेंगे। से हमारी आबोहवा दुरुस्त होनी चाहिये । हमें पुस्तक लिखना भी कम महत्वका काम नहीं है। इस बातकी खोज करनी चाहिये कि काँग्रेसके जैसे रिचर्ड ग्रेग हैं। वे मेरे पाससे सिद्धान्त ले महामण्डलको यह प्रस्ताव क्यों करना पड़ा? जो गये । अध्ययन और खोज करके पुस्तकें लिखते यह कहेगा कि महामण्डलके लोग डरपोक हैं, वह हैं । मैं जो कहनेको डरता था वह आज वह प्रेग देश-द्रोह करेगा । उन्होंने जो आबोहवा देखी कह रहा है । मैं तो कहता था कि चरखा हिन्दु. उसका वह प्रस्ताव प्रतिघोष है। मैं उस आबोस्तान लिए है । वह तो कहता है कि सारी इवाका प्रतिघोष नहीं हो सकता क्योंकि अहिंसा दुनियाका कल्याण चरखेमें और ग्राम उद्योगोंमे मेरी व्यक्तिगत साधना भी है। कांग्रेसकी वह भरा है । योरुप और अमेरिकाके लिए भी माधना नहीं है। मुझे तो उसीमें मरना है । अहिंसाकी साधनाका दूसरा रास्ता नहीं है।' काँग्रेस प्रतिनिधि मेरे जैसा नहीं कर सकते। ग्रेग कहता कि दूसरी तरहसे अहिंसक जीवन उनकी साधना अलग है। इसलिये अब न वे मेरे असम्भव है । मै कहनसे हिचकता था । लेकिन साथ चल सकते हैं, और न मैं उनके साथ चल वह तो बहादुर आदमी है । उपन निभय होकर सकता हूँ। उनके लिये मेरे दिलमें धन्यवाद है। कह डाला । मैंने इस तरह खोजबीन और अध्ययन इम बातका दुख भी है कि इतने दूर तक साथ नहीं किया है । अन्तनादने जो मुझे आदेश दिया चलने पर भी मैं उन पर अपना असर क्यों नहीं और प्रत्यक्ष अनुभवसे जो मैंने देखा, वह जगतक डाल सका ? उन्होंने मुझे अपना मार्ग-दर्शक माना सामने रखता गया। प्रेगके समान लेखबद्ध करके था। बडी श्रद्धास बाग डोर मेरे हाथमें दी थी। शास्त्र नहीं बनाया। उसकी बुद्धिने जो काम किया, फिर भी, मैं उनके दिलमें विश्वास नहीं पैदा कर क्या आपकी बुद्धि भी वह कर सकती है। " ! सका । इसका मुझे दर्द है। _ विपक्षी जो कहते हैं, उसका भनादर नहीं करना चाहिये । इनकी दृष्टि से उन प्रश्नोंका विचार रचनात्मक कार्यक्रमका महत्व करके उन्हें उनकी भाषामें सममाना हमारा काम भाप इस विषयकी शोध करें । हमें तो
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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