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अनेकान्त
भावण, वीर निर्माण सं.२४६६
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शत्रु था।
अहिंसा ही मेरा बल है
असाधारण थे; रावण भी उनका भसाधारण मुझमें अहिंसाकी अपूर्ण शक्ति है, यह मैं Men
ग्रता जानता हूँ; लेकिन जो कुछ शक्ति है वह अहिमाकी मेरे नजदीक तो वह सारी काल्पनिक कथा ही है । लाखों लोग मेरे पास आते हैं । प्रेमसे मुझे है। लेकिन उसमें सच्चा शिक्षण भरा पड़ा है। अपनाते हैं। औरतें निर्भय होकर मेरे पास रह हिटलर अपनी साधनामे निरन्तर जाप्रत है । उमके सकती है। मेरे पास ऐसी कौनसी चीज है ? केवल जीवनमें दूसरी चीजके लिये स्थान ही नहीं रहा अहिंसाकी शक्ति है और कुछ नहीं। अहिंसाकी है। करीब करीब चौबीम-घंटे जागता है । उसका यह शक्ति एक नयी नीतिके रूपमें मैं जगतको देना एक क्षण भी दूसरे काममें नहीं जाता। उसने ऐसे चाहता हूँ। उसको सिद्ध करने के लिये हम क्या कर ऐसे शोध किये कि उन्हें देखकर ये लोग दिमूढ़ रहे हैं इसका हिसाब हमें अभी दुनियाको देना रह जाते हैं। उसके टैंक आकाशमें चलते हैं और बाकी है। दुनियाम आज जो शांत प्रकट हो रही पानीमें भी चलते हैं। देखकर ये लोग दंग रह है, उसके सामने मैं हारूँगा नहीं। लेकिन हमें
जाते हैं । उसने ऐसी बातें कर दिखाई जो इनके सचाई और सावधानीसे काम लेना होगा; नहीं
ख्वाबमें भी नहीं थी। वह कितनी साधना कर तो हम हार जायेंगे।
सकता है,चौबीस घंटे परिश्रम करने पर भी अपनी हिटलरकी शक्तिका रहस्य बुद्धि तीव्र रख सकता है । मैं पूछता हूँ, हमारी बुद्धि हम अपनी सारी शक्ति अहिंसाकी साधनामें कहा है। हम
है कहाँ है ? हम जड़वत् क्यों हैं, कोई हमसे सवाल नहीं लगायेंगे, तो हम जीत नहीं सकते । हिटलरको पूछता है तो हमारी बुद्धि कुठित क्यों होजाती है ? देखिये । जिस चीजको वह मानता है, उसमें अपने हमारी बुद्धिमें तेजी हो सारे जीवनकी शक्ति लगा देता है। पूरे दिल और मैं यह नहीं कहता कि हम वाद-विवाद करें। पूरी श्रद्धासे उसीमें लगा रहता है । इसलिये मैं केवल वाद-विवादमें तो हम हारेंगे ही। हमें तो हिटलरको महापुरुष मानता हूँ। उसके लिये मेरे श्रद्धायुक्त बुद्धिकी शक्ति बतानी है। इसीका नाम मनमें काफी क़द्र है। वह शक्तिमान पुरुष है। आज शक्ति है । अहिंसाका अर्थ केवल चरखा चलाना राक्षस होगया है। जो जीमें आता है, सो करता नहीं है। उसमें भक्ति होनी चाहिये । अगर भक्तिके है; निरंकुश है। लेकिन हमें उसके गुणोंको देखना बाद हमारी बुद्धि तेजस्वी नहीं हुई, तो मान लेना चाहिये । उसकी शक्ति के रहस्यको पकड़ना चाहिये। चाहिये कि हमारी भक्तिमें त्रुटि है। हिटलरकी तुलसीदासजीने यह बात हमें सिखाई है। उन्होंने विद्याके लिये अगर बुद्धिका उपयोग है, तो हमारी रावणकी भी स्तुतिकी है। मेरे दिल में रावण के लिये विद्या के लिये बुद्धिका उससे कई गुना उपयोग है। भी आदर है। अगर रावणं महापुरुष न होता, तो हम यह न समझे कि अहिंसाके विकासमें बुद्धिका रामचन्द्र जीका शत्रु नहीं हो सकता था। रामचन्द्र उपयोग ही नहीं है।