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________________ वर्ष ३, किरण ..] वीरोंकी अहिंसाका प्रयोग अहिमाकी ही उपासनाकी है । काँग्रेमकं द्वारा भी है। मैंने अभी कहा कि अहिंसा बलवानका शस्त्र मैं वही बात सिद्ध करना चाहता था। मैं चवन्नी है। बलवानका क्या, वह तो बलिष्ठका शस्त्र है। का सदस्य भी नहीं था, लेकिन मैं कहता था कि क्षमा तो वीरपुरुपका भूपण है; दुर्बलोंका नहीं । चवन्नी सदस्यम ज्यादा हूँ । क्योंकि काँग्रेमकं कार्य जबरदस्ती कोई चीज मान लेना दुर्बलता है । क्रमका नेतृत्व में करना था। मेरीनैतिक जिम्मेदारी इलिये मेरे कहनेसे वे मेरी बात मान लेते, तो चवन्नी-सदस्यमे बहुत अधिक थी । अब वह नैतिक वह दगाबाजी हो जाती । जो चीज़ मैं मानता हूँ बंधन भी कलम छोड़ कर आया हूं। क्योंकि अब वह अगर उनकी बुद्धिको मंजूर नहीं है, तो जो मैं अपना प्रयोग किसके द्वारा करूँ ? आज तक सच है वही उन्हें करना चाहिये । इस दृष्टिम तो काँग्रेसके द्वारा करता रहा। उन्होंने जो किया, वह ठाक ही किया है। कार्य-समिति और मैं अब हम सहधर्मी नहीं रहे आज तक काँग्रेसने मेरा साथ दिया। लेकिन परन्तु मेरी अहिंसक जवान अब उनकी बात जब वर्तमान महायद्ध शुरू हुआ और मैं शिमलासे का उच्चार नहीं कर सकती। अब तक तो वे सरकार लौटा, तभीसे बान कुछ दूमरी हो गई। शिमलामें से कहते थे कि "आप हमारी बात नहीं मानत, नो मैंने वाइसरायसे कहा था कि 'मेरी सहानुभूति हम भी नैतिक दृष्टिमं आपकी सहायता नहीं कर तुम्हारे लिये है। लेकिन हम तो अहिंसक हैं। हम मकते । आप अपने धर्मका जब तक पालन नहीं केवल आशीर्वाद दे सकते हैं। अगर हमारी अहिंसा करते, तब तक हम आपके साथ सहयोग नहीं कर बलवानोंकी अहिमा है, तो हमारे नैतिक आशीर्वाद सकते।" मेरी अमिक जबान काँग्रेमको तरफम से संमारमें आपका बल बढ़ेगा।' परन्तु मैंने देखा यह सब कह सकती थी। उसमें मेरी अहिंमाकं कि मेरे विचारोंस काँग्रेसके महाजन सहमत नहीं प्रयोगकं लिय सामान मौजूद था । आज वह नहीं हो सकते थे। उन्होंने अपना अलग प्रकारका है। अब तो कांग्रेसके महाजन और मैं सहधर्मी वक्तव्य निकाला । अगर वे मेरी नीति स्वीकारते, नहीं रहे । सकरके लोगोंने मुझमे पछा; उनसे भी तो कांग्रेसका इतिहास दूसरी ही तरह लिखा मैंने कहा कि तुम मेरा रास्ता लो। उन्होंने समझा जाता। कि वे मेरी सलाह पर नहीं चल सकते । उन्होंने ___ यदि मैं बलपूर्वक कहता कि मेरी ही नीति मारपीटका रास्ता उचित समझा । अब वे मेरे माननी चाहिये, तो राजेन्द्र बाबू, राजाजी और सहधर्मी नहीं रहे वही बात कलकं प्रस्तावमें स्पष्ट दूसरे सदस्य मान लेते । वे भी कह देते कि ठीक है, हुई है । सक्करमें भी कांग्रेस वाले हैं । उनको और तुम्हारे साथ चलेंगे। लेकिन यह धोखाबाजी हो कांग्रेसके महामंडलको मैं अपनी नीति पर नहीं जाती । उसमें अहिंसा नामको भी नहीं रहती। ला सका । इसलिये अलग हो गया । ऐसी यह अहिंसाका पहला लक्षण सचाई और ईमानदारी करुण कथा है। कांग्रेसके महामंडलने मुझमे कह
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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