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________________ भनेकान्त [भावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ हमारा काम तो निपट गया लेकिन उसमेंमे एक कमजोर हो जाने पर गुण्डोंको मौका मिलेगा। अनुभव मिला । आज तक हमने जो किया, वह चोर हैं, डाकू हैं, वे हमारे घरों पर हमला करेंगे। डरके मारे किया । इसलिये सफलता नहीं मिली। हमारी लड़कियों पर आक्रमण करेंगे । अगर परन्तु हमारा हेतु शुद्ध था। इसलिमे अब भगवान हमारी अहिंसा बलवान की है, तो हम उन पर ने हमें बचा लिया। गलत नीतिको सही समझ कर क्रोध नहीं करेंगे । वे हमें पत्थर मारेंगे, गालियाँ हमने अधिकार-ग्रहण भी किया। वहाँ भी भहिंसा देंगे, तो भी हमें उनके प्रति दया रखनी चाहिये। की परीक्षा उतीर्ण नहीं हुये। तभीसे मुझे तो हम तो यही कहें कि ये पागलपनमें ऐसा कर रहे विश्वास हो गया था कि हमें अधिकार-पदोंका हैं। हमे उनके प्रति द्वेष न रखते हुए उन पर दया त्याग करना ही होगा। भगवान ने हमारी लाज करनी चाहिये और मर जाना चाहिए। जब तक रख ली। कभी न कभी हमें अधिकार-त्याग तो हम जिन्दा हैं, वे एक भी लड़कीको हाथ न लगा करना ही था। भगवानने हमें निमित्त दे दिया। सकें। इमी प्रयत्नमें हमें मरना है। किसीने हमको वहांसे निकाला नहीं। हममेंसे वर्किङ्ग कमेटीकी स्थिति बहुतेरोंके दिलोंमें अधिकारका मोह हो गया था। ___ इस प्रकार चार, डाकू ओर बातताया हमला कुछ लोगोंको थोड़ासा पैसा भी मिल जाता था। करें वो लोग माना रक्षण किस प्रकर करें, यह लेकिन कांग्रेसका हुक्म होते ही सब छोड़कर अलग प्रश्न पाया । कांग्रेस के महाजनों (हाई कमाण्ड) ने हो गये । साँप जैसे अपनी केचनी फेंक देता है देखा कि शान्ति-ना तो बन नहीं सकवी । फिर उसी तरह फेंककर अलग होगये। मान लिया कि कांग्रेस लागोंको क्या आदेश दे ? क्या कांग्रेस ये अधिकार-पद निकम्मे हैं, क्योंकि हमारे वहाँ मिट जाय ? इसलिए उन्होंने वह कल वाला बैठे रहने पर भी सरकारने हमें लड़ाई में शरीक प्रस्ताव किया । उन्होंने समझा कि सम्पूर्ण अहिंसा कर दिया, और हमें उसका पता भी नहीं चला। का प्रयोग दंशकी शक्ति के बाहर है। देशको फौज भगवान्ने ही लाज रखी, क्योंकि हम वहाँ रहते की जरूरत है। तो हमारी दुर्बलताका प्रदर्शन हो जाता। मेरे पास भी हमेशा पत्र पाते हैं कि 'अन्धाशुद्ध अहिंसक प्रयोगका मौका धध होने वाली है। तुम राष्ट्रीय सेना बनाओ, और उसके लिये लोगोंको भर्ती करो'। लेकिन मैं आज यह दूसरा मौका आया। यूरोपमें महा यह नहीं कर सकता। युद्ध शुरू हो गया। जगतको बलवान अहिंसाका : मेरी स्थिति प्रयोग दिखानेका मौका पाया । यह हमारी परीक्षा " का समय है। हम उसमें उत्तीर्ण नहीं हुए। आज मैंने तो अहिंसाकी ही साधना की है। मैं डरदेशको बाह्य आक्रमणसे डर नहीं है । मेरा खयाल पोक या और कुछ भले ही होऊँ लेकिन दूसरी है कि बाह्य आक्रमण नहीं होगा। लेकिन सल्तनत साधना नहीं कर सकता । पचास वर्ष तक मैंने
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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