________________
६१०
अनेकान्त
वह दूर दूरके लोगोंको भी गुलाम बना लेता है । और उन्हें इसका पता भी नहीं होता, कि वे गुलाम बन रहे हैं। गुलाम बनानेका ऐमा एक खूबसूरत तरीका इन लोगोंने ढूंढ लिया है। जैसे फोर्ड है । एक कारखाना बनाकर बैठ गया है। चन्द आदमी उसके यहाँ काम करते हैं। लोगोंको प्रलोभन दिखाता है, विज्ञापन निकालता है। हिंसक प्रवृत्तिका ऐसा मोहक रास्ता निकाल लिया है कि हम उसमें जाकर फँस जाते हैं और भस्म हो जाते हैं। हमें इन बातोंका विचार करना है कि क्या हम उसमें फँस जाना चाहते हैं या उससे बचे रहना चाहते हैं ?
मेरा विशेष दावा
अगर हम अपनी अहिमाको अविच्छिन्न रखना चाहते हैं और सारे समाजको अहिंसक बनाना चाहते हैं, तो हमें उसका रास्ता खोजना होगा । मेरा तो यह दावा रहा है कि मत्य, हिमा, वगैरह जो यम हैं, वे ऋषि मुनियों के लिये नहीं हैं। पुराने लोग मानते हैं कि मनुने जो
[ श्रवण, वीर निर्वाण सं० २४६
वह अपने ब्रह्माण्डका बोझ अपने कंधे पर लिये फिरता है जो धर्म व्यक्तिके साथ खतम हो जाता है, वह मेरे कामका नहीं है । मेरा यह दावा है कि मारा समाज अहिंसाका आचरण कर सकता है और आज भी कर रहा है। मैंने इसी विश्वास पर चलने की कोशिश की है और मैं मानता हूँ कि मुझे उसमें निष्फलता नहीं मिली । अहिंसा समाजका प्राण है।
बतलाये हैं वे ऋषि-मुनियोंके लिये हैं, व्यवहारी मनुष्यों के लिये नहीं हैं। मैंने यह विशेष दावा किया है कि हिंसा मामाजिक चीज़ है। मनुष्य केवल व्यक्ति नहीं है; वह पिण्ड भी है और ब्रह्माण्ड भी । वह अपने ब्रह्माण्डका बोझ अपने कंधे पर लिये फिरता है। जो धर्म व्यक्ति के साथ खत्म हो जाता है, वह मेरे कामका नहीं है। मेरा यह दावा है कि अहिंसा सामाजिक चीज है । केवल व्यक्तिगत चीज नहीं है। मनुष्य केवल offee नहीं है; वह पिण्ड भी है और ब्रह्माण्ड भी ।
मेरे लिये श्रहिंसा माजके प्राणके समान चीज़ है। वह सामाजिक धर्म है, व्यक्ति के साथ खतम होने वाला नहीं है। पशु और मनुष्य में यही तो भेद है। पशुको ज्ञान नहीं है मनुष्यको है । इम लिए हिंसा उसकी विशेषता है। वह समाज के लिए भी सुलभ होनी चाहिये । ममाज उसीके बल पर टिका है। किसी समाज में उसका कम विकास हुआ है, किसी में बेशी विकाम हुआ है। लेकिन उसके बिना समाज एक तगा भी नहीं टिक सकता। मेरे दावेमें कितना सत्य है, इसकी आप शोध करें।
1
आपका कर्तव्य
मैं यह कहा करता हूं कि सत्य और अहिंसा से जो शक्ति पैदा हो जाती है उसकी तुलना किसी दूसरी शक्ति से नहीं हो सकती, क्या वह सच है ? इसकी शोध भी आपको करनी चाहिये। हमें उस शक्तिको साधना करके वह अपने जीवन में बितानी चाहिये । तत्र तो हम उसका प्रत्यक्ष प्रमाण दे सकेंगे। गाँधी-सेवा-संघका यह कर्तव्य है कि वह मेरे दावेका परीक्षण करे। क्या अहिंसा करोड़ों लोगोंके करने जैसी चीज हैं ? क्या हिंसा-अहिंसा का मिश्रण ही व्यहारके लिये जरूरी है ? क्या