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________________ वर्ष ३, किण्ण.] वीरोंकी मस्सिाका प्रयोग चन्द धन्धे ऐसे हैं जो हिमाको ही बढ़ाते हैं। पैसे नहीं देता था। देहाती समाज पर यह बन्धन अहिंसक मनुष्यको उन्हें वज्यं समझना चाहिये। लगा दिया था कि उसे अनाज दिया जाय । उसमें दुमरे अनक धोंमें अगर हिंसाके लिये स्थान है भी हिंसा काफी हो सकती थी। लेकिन सुव्यवस्थित तो अहिंसाके लिये भी है। हमारे दिलमें अगर समाजमें उसे न्याय मिलता था। और किसी अहिसा भरी हुई है तो हम अहिंसक वृत्ति मे उन जमानमें समाज सुव्यवस्थित था ऐसा मैं मानता धन्धोंको करें। हम उन उ द्योगोंका दुरुपयोग करें, हूँ। उस वक्त इन उद्योगों में हिंसा नहीं थी। यह बात दूसरी है। एक उदाहरण प्राचीन भारत की अर्थ-व्यवस्था मेरे इस विश्वासके काफी सबूत हैं । अपने . छुटपनमें जब मैं काठियावाड़के देहातोंमें जाता ___ मेरे पास कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। था तो लोगों में तेज था । उनके शरीर हट्टे-कट्टे थे । परन्तु मेरा ऐमा विश्वास है कि हिन्दुस्तान कभी आज वे निष्तेज हो गये हैं। घरमें दो बर्तन भी सुखी रहा है । उस जमानेमें लोग अपने अपने नहीं रहे । इस परसे मुझको ऐमा लगता है कि धन्धे परोपकार बुद्धिमे करते थे। उममें उदर निर्वाह किसी वक्त हमारा समाज सुव्यवस्थित था । उस तो ले लेते थे लेकिन धन्धा समाजके हितका ही वक्त उसका जीवन अहिंसक था । अहिंसक होता था। मेरा कुछ ऐमा खयाल है कि जिन्होंने जीवन के लिये आवश्यक सब उद्योग अच्छी तरह हिन्दुस्तानके गांवोंका निर्माण किया, उन्होंने समाज चलते थे । अहिंसक जीवन के लिये जितने उद्योग का संगठन ही ऐसा किया जिसमें शोषण और हिसाके लिये कमसे कम स्थान रहे । उन्होंने मनुष्य अनिवार्य हैं उनका अहिंसासे सीधा सम्बन्ध है। के अधिकारका विचार नहीं किया, उसके धर्मका शरार-श्रम विचार किया । वह अपनी परम्परा और योग्यता इसीमें शरीर-श्रम आ जाता है। मनुष्य अपने के अनुसार समाजके हितका उद्योग करता था। श्रमसे थोड़ी सी ही खेती कर सकता है। लेकिन उसमेंसे उसे रोटी भी मिल जाती थी, यह दूसरी अगर लाखों बीघे जमीनके दो चार ही मालिक बात थी। लेकिन उसमें करोड़ोंको चूसनेकी भावना हो जाते हैं, तो बाकीके सब मजदूर हो जाते हैं। नही थी । नामकी भावनाके बदले धमंकी भावना यह बगैर हिंसा नहीं हो सकता। अगर भाप थी। वे अपने धर्मका आचरण करते थे; रोटी तो कहेंगे कि वह मजदूर नहीं रखेंगे, यंत्रोंसे काम यों ही चल जाती थी। समाजकी सेवा ही मुख्य लेंगे; तो भी हिंसा आ ही जाती है। जिसके पास चीज थी। उद्योग करनेका उद्देश्य व्यक्तिगत नका एक लाख बीघा जमीन पड़ी है, उसे यह घमएड नहीं था। समाजका संगठन ही ऐसा था । उदाह- तो आ ही जाता है कि मैं इतनी जमीनका मालिक रणार्थ, गांवमें बढ़ईकी जरूरत होती थी। वह खेती हूँ। धीरे धीरे उसमें दूसरों पर सत्ता कायम के लिये औजार तैयार करता था, लेकिन गांव उसे करने का लालच पा जाता है। यत्रों की मदद से
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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