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भनेकात
श्रिावण, वीर निर्वाण ०२४६६
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'अहिंसा' की मर्यादित व्याख्या छोड़ ही देना है। जैसे वह शिकार कभी नहीं
अर्थात जो अहिंसाको मानता है, वह जो करेगा। यानी जिनपे हिमाका विस्तार बढ़ता उद्योग करेगा, उसमें कम से कम हिमा करने का हो जाता है उन प्रवृत्तियोंम वह कभी नहीं पड़ेगा। प्रयत्न करेगा। लेकिन कल योग ही ऐसे हैं जो वह युद्धम नहीं पड़ेगा । युद्ध में शस्त्रास्त्र बनाने के हिंसा बढ़ाते हैं । जो मनुष्य स्वभावसे ही अहिंसक कारखानाम काम नहीं करेगा। उनके लिये नये नये है, वह ऐसे चन्द उद्योगोंको छोड़ ही देता है।
शस्त्रोंकी खोज नहीं करेगा। मतलब, वह ऐमा कोई उदाहरणार्थ,यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि
उद्योग नहीं करेगा, जो हिंसा पर ही आश्रित है वह कसाईका धन्धा करेगा । मेरा मतलब यह नहीं और हिंसाको बढ़ाता है। है कि मांसाहारी कभी अहिंसक हो ही नहीं सकता
अत्र, काफी उद्योग ऐसे भी हैं, जो जीवनक मांसाहार दूसरी चीज़ है । हिंदुस्तान में थोडेसे लिये आवश्यक हैं; लेकिन वे बिना हिंसाकं चल ब्राह्मण और वैश्योंको छोड़कर बाकी सब तो
ही नहीं सकते । जैसे खेतीका उद्योग है। ऐसे मांसाहारी ही हैं। लेकिन फिर भी, वे अहिंसाको उद्योग अहिमाम श्राजाते हैं। इसका मतलब यह परमधर्म मानते हैं। यहाँ हम मांसाहारीकी हिंसा
नहीं है कि उनमें हिंसाकी गुंजाइश नहीं है, अथवा का विचार नहीं कर रहे हैं। जो मनुष्य मामाहारी
वे बिना हिंसा के चल सकते हैं। लेकिन उनकी हैं, वे सारे हिंसावादी नहीं हैं । मैं यह कैसे कह
बुनियाद हिंमा नहीं है और वे हिमाको बढ़ाते भी सकता हूँ कि मांसाहारी मनुष्य अहिंसक नहीं
नहीं हैं। ऐसे उद्योगोंमे होने वाली हिमा हम होता ? ऐंड्र जसे बढ़कर अहिंमक मनुष्य कहाँ
घटा सकते हैं और उसे अपरिहार्य हिंसाको हद मिलेगा ? लेकिन वह भी तो पहले मांसाहारी था।
तक ले जा सकते हैं । क्यों कि आखिरी अहिंसा बादमें उसने मांसाहार छोड़ दिया। लेकिन जब
हमारे हृदयका धर्म है। हम यह नहीं कह सकते माँसाहारी था, तब भी अहिंसक तो था ही।
कि किसी उद्योगका अहिंसासे अनिवार्य सम्बन्ध छोड़ने पर भी, मैं जानता हूँ, कि कभी २ जब वह
है। वह तो हमारी भावना पर निर्भर है। हमारा अपनी बहन के पास चला जाता था तब माँस खा
हृदय अहिंसा होगा, तो हम अपने उद्योगमे भी लेता था, या डाक्टर लोग आग्रह करते थे तो भी
अहिमा लाएंगे। खा लेता था। लेकिन उससे उसकी अहिंसा थोड़े
अहिंसा केवल वाह्य वस्तु नहीं है। मान ही कम हो जाती थी ? इसलिये यहाँ पर हमारी
लीजिये एक मनुष्य है, काफी कमा लेता है और अहिंसाकी व्याख्या परिमित है। हमारी अहिंसा सुखसे रहता है। किसीका कर्ज वगैरह नहीं करता, मनुष्यों तक ही मर्यादित है।
लेकिन हमेशा दूसरोंकी इमारत और मिलकियत
पर दृष्टि रखता है, एक करोड़के दस करोड़ करना हिंसक और अहिंसक उद्योग
चाहता है, तो मैं उसे अहिंसक नहीं कहूँगा। ऐसा लेकिन मांसाहारी अहिंसक भी बाज चीज़ तो कोई धन्धा नहीं, जिसमें हिंसाहो ही नहीं। लेकिन