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________________ वर्ष ३, किरण १०] नपतुंगका मत विचार वह विष्णुभक्त ही था और जैनधर्मावलम्बी नहीं गद्दी पर आये हुए कुमारपाल (ई० सन् ११४१हुआ यह बात इतिहाससे मालूम पड़ती है। ११.१ ) ने जन्मतः शैवधर्मी रहकर, अन्तमें ५. गुर्जर देशका नरेश सिद्धराज श्वेताम्बर हेमचन्द्र में जैनधर्म स्वीकार किया; परन्तु पश्चात जैनयति हेमचन्द्रमूरि पर विशेष श्रद्धा रखता था भी शिवभक्तिको भूला नहीं, यह बात श्वेताम्बर (ई० स० १०८७-११७१)। उसने अपनेको जैनयति जयसिंह सूरिसे रचित (ई० सन् १२३०) सन्तान न होनकी चिंतासे हिंदू और जैनधर्मक 'वस्तुपाल तेजःपाल प्रशस्ति' से मालूम पड़ती पवित्र क्षेत्रोंकी यात्रा उस हेमचन्द्रकं साथ करने है. इत्यादि । पर भी, स्वधर्मका-सनातनधर्मका-त्याग नहीं अतएव जो कोई नरेश (अथवा अन्य कोई) किया । उसे हेमचंद्र गुरुके समान था । उमकं स्वधर्मी के मिवाय परधर्म के यतियों या अन्य साथ हेमचंद्रने सोमेश्वर शिवक्षेत्रको यात्रा करते साधुओं (अथवा कवियों) की श्रेष्ठ विभूति पर वक्त, स्वयं जैन होते हुये भी, परधर्म पर विरोध आकर्षित होकर, उमे गुरुभावसे सत्कार करता है नहीं करते हुए बाँके शिवलिगका स्तवन किया, तो उससे वह अन्यपनीका शिष्य हुआ, या उमके यह बात प्रद्युम्नसूरिकृत 'प्रभावकचरित्र' (ईo- उपदेशमे उसने स्वधर्म त्यागकर उसका मत स्वीम० १२७७) 9 में है । उस सिद्धराज के पश्च न् कार किया इस प्रकार मान लेना कदापि ठीक धरणिधरनिरोधास्विचवक्त्रोवराहः॥ नहीं; पर प्रबल और समर्थक अन्य ऐतिहासिक (२) ई. स. १४१ (जनवरी ३१) के शासनमें . स्वतंत्राधार हों तो बिना संदेहकं स्वीकार कर (E. C.X. गोरिखिदनूरु न०५६) इसने सगमतीर्थ सकने हैं, क्योंकि गुर्जर कुमारपाल हेमचन्द्रकं में माघरा ॥ ौर्णिमा चन्द्रग्रहण दिन स्नान करके उपदेशसे जैनी हुआ था यह बात हेमचंद्र के ग्रंथों 'पेरियान' नामके ग्रामको सहिरण्य सोदक-पूर्वक से "कुमारपालश्चालुक्यो राजषिः परमाईतः"ब्राह्मणोंको दान दिया लिखा है। हेमचन्द्र के 'अभिधान चिंतामणि' (श्लोक ७१२) (३) इसके और एक ताम्र पत्रका ( प्रा० ० मा० से अन्य समकालीन और ईषत्कालान्तरकं ग्रंथोंसे नं० १५१) प्रथम श्लोक इस प्रकार है: साधारण प्रमाण मिलनेपर उस इतिहास-तथ्यको जयति जगतां विधातुधिविक्रमाकान्तसकलाभुवनस्य । ..." .. . ... नखांशुबटिलं पदं विष्णोः ॥ कौन नहीं स्वोकार सकता ? • सरिरथ तुष्टुवे तत्र परमात्मस्वरूपतः । (भागामी किरणमें समाह) नमाम चापिरीणेहि मुके परमकारखम् ॥३४॥ पत्र तत्र समये पया तथा। * पापातिस्म कुमारपालनृपति .........॥२४॥ योसिसोत्त्वमिधषा पथा तथा । जैन धर्ममुरीषकार............। बीतदोष मनुषः सद्भवा । ......"गुरुपके स्मरध्वंसिनम् ॥२२॥ ' नेक एव भगवयमोस्तु ते ॥३०॥ Gaekwad's Oriental Series. -N..x (प्रमापापरित पृ.११) 'हम्मीरमदमन' पृ.१०)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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