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________________ वर्ष, नृपतुंगका मत विचार ५५ महाशयकी राय है । वह कौनसे आधारसे है, यह हुआ अथवा जैनधर्मी होनेसे ही उसने ऐसा मालूम नहीं होता। इतना ही नहीं सोरष शिला- किया, यह माननेका कोई कारण नहीं है। लेख न० ८५ (ई० स०८७७) के शासनमें इस इस वंशके लोगोंकी राजधानी 'मान्यखेट' अमोघवर्षको 'पृथिवी राज्यं गेये' ऐसा कहा जाने (Malkhed) नगर है । उसे इस नृपतुंगने ही से वही उस समय गद्दी पर रहा होगा इस प्रकार प्रथमतः अपनी राजधानी कर लिया था, इस दृढताके साथ मालूम पड़नेसे पाठक महाशयका प्रकार कीर्तिशेष डा. रा. गो. भंडारकरका कहना कहना ठीक मालूम नहीं पड़ता है। है (E. H. D. पृ० ५१ ) । 'कविराजमार्ग' के अतः ई० सन् ८७७ वें तक तो यह राज्यकार उपोद्घातमें श्रीमान् पाठक महाशयके कथनानुमार मे निवृत नहीं हुआ ऐसा कहना चाहिये। (पृ० १०) यह मान्यखेट नृपतुंगके प्रपितामह इसके पिता गोविंदके कुछ शासनोंसे ऐसा प्रथमकृष्णके कालसे ही इस वंशके लोगोंकी राजमालम होता है कि गोविन्दकं पिता ध्रव अथवा धानी था ऐसा मालूम पड़ता है। उसके पहिले घोरनरेश (निरुपम, धारा वर्षे, कलिवल्लभ ) ने उनकी राजधानी 'मयूरखंडि' ( वर्तमान बंबई अपने पुत्रके पराक्रम पर मोहित होकर अपने आधिपत्यके नासिक जिलाके 'मोरखंड') थी ऐसा जीवनकालमें ही उसे गद्दी पर बैठाकर श्राप राज्य- जान पड़ता है । कुछ भी हो, (वर्तमान धारवाड़ कारसे निवृत होना चाहा और यह बात उसे जिलाके अन्तर्गत ) 'बंकापुर' उनकी राजधानी सुनाने पर उसने उसे स्वीकार नहीं किया । आपके नहीं थी, यह बात दृढताके साथ कही जा सकती अधीन मैं युवराज्य ही होकर रहूँगा ऐसा कहा, हैइस प्रकार लिखा हुआ है । अतः राष्ट्रकूटवंशीय जिनसेनाचार्यकी परंपरा इस प्रकार पाई नरेशोंमे अपन बुढापेके कारण, या पराक्रमी पुत्र जाती है:की दिग्विजय आदि साहसकार्यसे खुश होकर या अपनी स्वच्छन्दतासे गद्दी छोड़नेका यह एक उदाहरण मिलता है। अतः नृपतुंग ई० सन् ८७७ वीरसेनाचार्य के अनन्तर अपनी उम्र ८० के अपर समझ कर राज्यकारसे निवृत हुभा होगा तो उसने अपने विनयसेन जिनसेन विवेकसे ही ऐसा किया होगा यह कहना चाहिये । ऐसा न कहकर अपना धर्म छोड़ कर जैनधर्मी गुणभद्र * कविराज मार्ग-उपोधात पृ० ।। इस परंपराके संबन्धमें इन्द्रनंदिके 'श्रुतावतार' में निम्न प्रकार कहा है -:* E.A.D.P. 49-50 (Mythic Society's Journal Vol. XIV, No. 2, P. 84) ●वि०२० मा.पु..., एलाचार्य दशरथ
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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