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________________ [भाषण, वीर निर्माण सं० प्रमतवर्ष गोविन्दराज शौर्येषु विक्रम "जगतुंग सूर्यग्रहण दिन समाप्त होजानेको कहनेमे वह इति श्रुतः .....अब स कीर्तिनारायणे वगति ॥ तिथि ई० सन् ८६६ के जन ता० १६ के दिन होती गरिनृपतिमुकुटमष्तिचरवत्सकला भुवमवजयविदितशीयः। है। वह साल नृपतुगंका राज्य मारकालका ५२ पंगांगमगधमानपत्रंगीशरचितोतिरावधवः॥ वाँ वर्ष कहा जानसे वह ई० स०८१५ में गद्दी पर स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द-महाराजाधिराज. बैठा होगा। वैसे ही उनके अन्य शासनोंसे उसने परमेस्वरमधरक चतुलवधिवलयबाजपतसकलधरातल-प्रा- ई० म०८७७ नक यानी करीब ६२-६३ साल तक तिराम्याने कमंडलिकलाकटककठिसूत्र-कुण्डलकेयर-हा- प्रजा-परिपालन किया, ऐसा मालम पड़ता है। राभरबासंत.."मोषराम परचक्रपंचानन...... अतः इसके नामका ई० स० ८७० का शासन "यो । मनोहरं अभिमानमंदिरं रहवंशोदभवं सोरब नं ८९t | इसके अन्तिम सालमें लिखा गनखांदनं तिविजियपरे घोषणं सहजरपुरपरमेश्वरं गया होगा। इतना ही नहीं उस वक्त वह सिंहाश्रीनृपतुंगनामांकित-जमीवस्जभेन्द्रना चन्द्रादित्यर- सनासीन होगा, ऐमा उससे निष्पन्न होता है। कावं बरेग महाविष्णुवराज्यंबोलू उत्तरोत्तर राज्याभि- इसे गद्दी पर बैठते वक्त कमपे कम यानी १८ दिसनुत्तिरे शबनपकाला-तीतसंवत्सरंगल एलनर'. या २० सालका तो अवश्य होना चाहिये, इस तोबसेपटनेय व्ययमेव सवत्सरं प्रवतिसे श्रीमदमोघवर्ष प्रकार मानने पर इसका शासन समय समाप्तहोते नृपतुंग-नामांकितमा 'विजयराज्यप्रवर्द्धमानसंवत्सरंगल वक्त इस ८१ या ८३ वर्षसे ऊपरका होना चाहिये। अप्वत्तेरडं उत्तरोत्तर राज्याभिवृद्धिसनुत्तिरे अतिशय - इससे भी ज्यादा ही होना चाहिये न कि कम धवक्षनरेन्द्रप्रसादविंदममोघ वर्षदेव-पदपंकजभ्रमरं ... इतना कह सकते हैं। अतः इसके समयके ५२ वें ज्येष्ठ मासदमासेयुं पावित्यवारमाशिसूर्यग्रहणवन्दु ...... वर्षके शासनमें 'सवोव्यात्' इस प्रकारका हरिनागार्जुन बेसमे सिरिगाउंटनएल्गु पुदिदुदु ॥ हर-स्तुति-सम्बन्धी शिरोलेख रहनेसे तब तक यह शालिवाहन शक के ७८७ वष व्यतीत उसने जैनधर्मको प्रहण नहीं किया ऐसा कहने में होकर ७८८ के व्यय संवत्सरके ज्येष्ठ ब० ३० कोई भाक्षेप नहीं दीखता । हमारे अनुमानके अनु सार तब उसका करीब ७०-७२ तक अवस्था होनी यह 'प्रभूतवर्ष' (जगत्तंग) ऐसा गोविन्दराज चाहिये । यह शा० श० ७९७ में (ई० सम नपतुजका पिता है। ८७५) गद्दी अपने पुत्रको छोड़कर राज्यकारसं निवृत हुआ, इस प्रकार श्रीमान. के. बी. पाठक यह 'बहे' ऐसा शब्द 'बई' (बर्देन्दु प्रौढि) +E.C.. Vol. VIII., Pt. II (स्वस्त्यमोषउसीका रूपान्तर होगा? वर्षवल्लभमहाराजाधिराजपरमेश्वरमधारका पृथवीराज्यं * एस्ब रह, यह 'एल्लु' शब्द आधुनिक गेये........ सवर्षमेलनूरतोंमतोंमतनेष संवत्सरंकनडीमें नहीं, परन्तु तामिल, मलैयान भाषामें सर्व- प्रवर्तिसे........|| इस लेख में देवता-स्तुति शिववेक सामान्य है। नहीं है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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