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________________ नृपतुंग विचार - बेराट चन्द्रवंशके यदुकुल वाले हैं, ऐमा इन नरेशोंमें प्रत्येक नरेशके नामधेयों में क्या उनके निम्न लेखोंसे मालूम पड़ता है :- गौण नामों में एक सरहका परंपरा और क्रमबद्ध (१) ई० सन् ९३३ के शासनमें संबन्ध है यह तो भूलना नहीं चाहिये। जैसे - कि पंग सोमावर्ष................... इनके गोविन्द' नामबालेको 'जगतुंग' और 'प्रभूतवंशो चमूच भुवि सिन्धुनिमो पदूनाम् । वर्ष' इस प्रकारका गौण नाम है, 'कृष्ण' (कन्नर) (प्रा.ले. मा.नं. ) नाम वालेको 'शुभतुंग' और 'भकालवर्ष (२) ई० सन ९३७ के चित्रदुर्ग नं० ७६ के इस प्रकारका विशेष नाम है; 'ध्रुव' ( घोर ) नाम शासन में--- वालोंको 'निरूपम' और धारावर्ष ऐसा व्यपदेश ..........."यादवरातनम्वर ॥ है, 'कर्क' (कक) नामके व्यक्षियों को 'नृपतुंग' और यादवकुलदोडापखरूं। 'प्रमोघवर्ष' ऐसी उपाधि है। मेदिनि सुखविनाशदरपरि बसि ॥ इस कारणसे यह एक साकूत (सार्थक) अनुश्रीवसन्दन्तिगन् ........(E.C. Vol XI) मान होता है कि इस वंशावलीके, 'ध्रुव', नामक उस यदुवंशकं सात्यकी वगके लोग ही हैं, नरेशोंमें 'तुंग' यह परपदयुक्त गौण नाम नहीं यह बात उनके कुछ शासनोंमें पाई जाती है। देखा जानेसे अब तक मिले हुए उनके शासनादि ई. सं० ९४० के कोंमें वह न मिला इतना ही कह सकते हैं, परन्तु ग्दत्तदैत्यकुलकदलशान्तिहेतु उनको 'तुग' यह परपदान्वित नाम भी होगा, स्तत्रावतारमकरोत् पुरुषः पुराणः ॥ इस प्रकार कह सकते हैं । वैसे ही हमारे तद्वंशजा जगति सात्यकिवर्गभाज इस लेखके नायक नृपतुंगके 'नृपतुंग' 'प्रमोघस्तुंगा इति शितिभुजः प्रथिता बभूवुः॥ वर्ष' इस प्रकारके गौण नामोंका परिशीलन करने पर मालूम पड़ता है कि उसका नामधेय 'शव' इतना इसी श्लोकका उत्तरार्ध इनके ई० सं० ९५९ के - - ... शासनमें एक और रीति से इस प्रकार है ___* इस राष्ट्रकूटवंशके गुजरात शाखाके दूसरे 'ध्रुव' तद्वंशजाः जगति तुंगयशः प्रभावा को 'भतितुंग' ऐसा नाम भी था ('शुभतुगजोतितुंग... स्तुगा इति चितिमुजः प्रथिता बभवः प्रा.ले. मा० नं०४)। उस नामके और नरेशोंको (प्रा० ले० मा० नं० १३३) मी वहीं नाम रहा होगा। इससे इन नरेशोंके नामोंमें (अर्थात इनके भिवणबेलगुलके न० ६० के शासन ( E.C. गौण नामों में ) 'तुंग' इस पर-पदकं रहनेका क्या Vol. II) में 'राजन् साहसतुंग सन्ति बहवः श्वेतातकारण है सो मालूम पड़ता है । इसी तरहसे इनमें पत्रा नृपाः ।' ऐसा लेख है । इस 'साहसतुंग' नामका से ज्यादा कम सबको 'वर्ष' इस परपदका व्यपदेश नरेश राष्ट्रकूट वंशीय 'दन्तिदुर्ग' होना चाहिये, ऐसा है इस पर ध्यान देना चाहिये। उन शासनोंके उपोद्घातमें () कहा है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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