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________________ वर्ष ३, किरण ..] मासिक प्रसारकी रचनाओं में से हैं। हे माता ! भगवानसे हमारी यही याचना है कि वे और दूध देने वाली गाय-भैंसोंके समान समझा और हमें ऐसी शक्ति दें कि जिससे हम तुम्हारी सेवामें इसीके अनुसार उनको एकने दूसरेसे छीनने की कोशिश अपने इस जीवनको अर्पण कर सकें और भक्तिके की। इस कोशिश में बड़ी बड़ी लड़ाइयां हुई, मारका आँसुओंके जलसे तुम्हारे चरणोंका चिरकाल तक हुई, खूनके तालाब बहे और संसार सुखका स्थल न प्रक्षालन करते रहें।" रह कर दुःख दारिद्रय, क्लेश, अशान्ति, व्याकुलता 'जननी जीवनसे और हज़ारों ही विपदाओंका केन्द्र बन गया ! खेद है एक संस्कृत कवि लिखते हैं : कि यह अवस्था अब तक भी वैसी ही चली श्रारही है । "जननी परमाराध्या जननी परमागतिः । पुरुषोंने स्त्रियोंको जन्म दिया या स्त्रियोंने पुरुषोंको जननी देवता साक्षात् जननी परमोगुरुः ।। जन्म दिया ? यदि इस प्रश्न पर ज़रा भी विचार किया या की परयात्री च जननी जीवनस्य नः । जाय तो यही निर्णीत होना चाहिये कि स्त्रियोंने पुरुषों नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः ॥ को जन्म दिया और भारीसे भारी विपदाएं झेलकर 'जननी जीवनमे' उनका पालन किया। ऐसी हालतमें भी यह मानना कि मातृत्वके श्रादर्शकी प्रशंसामें ग्रंथ भरे पड़े हैं। स्त्रियाँ पुरुषों के लिये पैदाकी गई हैं कितना बेढंगा और सदियां चली जायें और उसका वर्णन समाप्त नहीं हो। हास्यासद खयाल है। इसलिये जैसे हम यह बड़ी क्या कोई ऐमा ज्ञानी, भाी, महात्मा, नारायण, श्रामानीसे मान लेते है कि स्त्रियाँ पुरुषोंके लिये पैदा चक्रवर्ती, बलभद्र, राजसूक अमीर, गरीब, बड़ेमे बड़ा की गई हैं वैसे यह भी क्यों नहीं मानलें कि पुरुष स्त्रियों और छोटेसे छोटा व्यक्ति है जो माताके उपकारके भार के लिये पैदा किये गये हैं । यद्यपि अनुभव और बुद्धिसे से न दवा जा रहा हो और क्या यह उसके किये हुए ठहरेगा तो यहा कि दोनोंको दोनोंते पैदा किया और दोनों उपकारका बदला वापस देनेका सैंकड़ो जन्मोंमें भी दोनोंके लिये पेदा हुये हैं। जैसे पुरुषोंको अपने उद्देश्य साहस कर सकता है ? ऐसी अवस्थामें अगर कोई व्यक्ति की मिद्धिके लिये स्त्रियोंकी आवश्यकता है वैसे स्त्रियों चाहे स्त्री हो चाहे पुरुष, शिक्षित हो या अशिक्षित को अपने उद्देश्यको सिद्धि के लिये पुरुषों की आवश्यकता उस स्त्रीपर्यायको नीच और जघन्य समझता है जिस में है। दोनों अपने जीवनकी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें दोनों मातृत्व जैसा सर्वोत्कृष्ट आदर्श विद्यमान है तो यह अपने जीवनको सार्थक और सफल बना सकें, दोनों उसकी क्षुद्रता है और कृतघ्नता है और स्वयं स्त्रियों अपने जीवन में महान् आदर्श उपस्थित कर सकें, का तो यह समझना बहुत ही अपमान, लज्जा और इसीलिये एक दूसरेका जन्म हुआ। ऐसी हालतमें यह कायरताका विषय है। समझना भयंकर भूल है कि स्त्रियाँ पुरुषोंकी गुलाम है, लोगोंकी इस धारणाने कि स्त्री जाति पुरुष जातिके दासी हैं, सेविका है और उनके ऐशो-आराम और लिये पैदा की गई है और वह उसके भोगनेकी एक सामारिक क्षुद्र सुखोपभोगके लिये पैदा हुई हैं। श्रीज़ है मनुष्य जातिका बहुत बड़ा अनिष्ट किया है। सागरण, इस तरह पुरुषोंने स्त्रियोंको.अपनी एक जायदाद
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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