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________________ १७० अनेकान्त [ श्रावण, वीर निर्वाण सं० २४६६ चाँदको प्रकाशका कारण मानकर चाँदनीको अंधकार का स्वरूप मानता है और सूर्यको प्रभाका अवतार मानकर उसकी किरणोंको ज्योतिविहीन समझता है । ज्ञान भार स्वरूप 1 जमीन और आसमान, कलम और कागज, पेड़ और शाखा, उद्यान और वाटिका, फूल और पत्ती कहां तक कहें सृष्टिका कोई स्थल ऐसा नहीं है जहां स्त्री और पुरुष शक्तियाँ समान रूपसे काम न करती हो । और सब जाने दीजिये श्रात्माका चरम और उत्कृष्ट लक्ष्य कर्मोंका नाश करना है वह भी मुक्ति के रूपमें स्त्री ही के विशिष्ट स्वरूपमें स्थित है । ऐमी अवस्था में भी अगर महिलाएँ अपनी जाति को पाप कृत्योंका फल या दैवका श्रभिशाप समझती हैं तो यह उनकी भूल है । अगर स्त्री पर्याय में पैदा होना पाप कृत्योंका फल और श्रभिशाप है तो पुरुष पर्यायमें पैदा होना कभी पुण्य कर्मोंका फल और आशीर्वाद नहीं हो सकता: क्योंकि दोनों शक्तियाँ एक होकर काम करती हैं और दोनों शक्तियाँ एक-दूसरी शक्ति में दूध और पानीकी तरह मिली हुई हैं । एकका बुरा होना दूसरी का बुरा होना है और एकका अच्छा होना दूसरीका अच्छा होना है । महात्माजी लिखते हैं--"नगर स्त्रियाँ ईश्वरकी क्षुद्र हलके हर्जेकी रचनाओं में से हैं तो श्राप जो उनके गर्मसे पैदा हुए हैं अवश्य ही क्षुद्र हैं।” मेरा खयाल है पुरुष जातिकी श्रेष्ठता, उत्तमता श्रौर आदर्शता पर मेरी बहिनों को पूर्ण विश्वास है और उनको स्त्री पर्यायकी हीनता और अनुत्तमतासे पुरुष जातिका भी श्रनुनम होना कभी वांछित नहीं हो सकेगा । मैं उनमें प्रार्थना पूर्वक अनुरोध करूँगी कि पुरुप पर्यायके प्रति उनका जैसा विश्वास है वे उसें और भी मजबूत और पका बनालें परन्तु साथ ही अपनी जातिका सम्मान और इजत करना कभी न भूलें । वरना उनकी यह धारणा बालू पर भीत खड़ी करनेके बराबर उस मनुष्यकी धारणाके समान है जो यह तो हुई स्त्री पर्याय और पुरुष पर्यायी समानताकी बात | अगर मैं स्पष्ट और साफ कहूँ तो किसी किसी जगह स्त्री पर्यायकी उत्कृष्टता और आदर्श के श्रागे पुरुष पर्याय भी कुछ नहीं और उस समय पुरुष पर्याय स्त्री पर्यायके साथ कभी बराबरीका दावा पेश नहीं कर सकती । वह आदर्श है 'मातृत्वका आदर्श' जो पुरुष पर्याय में ढूंढने पर भी नहीं मिल सकता और स्त्री पर्याय मिलने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। बड़े बड़े श्राचार्य, ऋषि, मुनि, महात्माश्र ने मातृत्व के आदर्शको महान् बतलाया है। यह मातृत्वा ही श्रादर्श है जिसने तीर्थकरों जैसे महान् श्रात्माओं को जन्म दिया, बड़े बड़े अवतारोंको पृथ्वीतल पर पैदा किया, बड़े बड़े ऋषि-मुनियोंके लिये अपना सुख त्याग किया । प० कृष्णकान्त मालवीय लिखते हैं- "स्त्री का सर्वश्रेष्ठ रूप माता है और सच मानो इससे मधुर, इससे सुखकर शब्द, इससे सुन्दररूप सृष्टि और संसारमें कोई दूसरा नहीं । संसारका समस्त त्याग, संसारका समस्त प्रेम, संसारकी सर्व श्रेष्ट सेवा, संसारकी सर्व श्रेष्ट उदारता एक माता शब्दमें छिपी पड़ी है ।" एक अशात महापुरुष लिखते हैं "हे माता ! तुम स्वर्गकी देवी हो, तुम मृत्यु लोकमें मनुष्योंका कल्याण करनेके हेतु माताके रूपमें अवतीर्ण हुई हो। सब लोग तुम्हारे अनन्त उपकारों के ऋणी हैं । तुम्हारे ऋणको कौन चुका सकता है ?
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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