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क्या स्त्रियाँ संसारकी क्षुद्र रचनाओं में से हैं ?
[खिका-श्री ललिताकुमारी जैन विदुषी प्रभाकर जयपुर]
Tक बार मैंने किसी पुस्तकमें 'स्त्रियाँ ही अपने तौरसे बतला देना चाहती हूँ कि वे बहुत बड़ी गलती
S.आपको अयोग्य समझती है। इस शीर्पक अथवा पर है । उनको अपने ये कायर और गन्दे विचार इसमे कुछ मिलता-जुलता प्रबंध पढ़ा था । उसका बिलकुल निकाल देना चाहिएँ। सारांश यही था कि सदियोंकी दासतासे स्त्रियोंका स्त्री प्रादि शक्ति है । स्त्री शक्तिके बिना दुनियाका श्रात्मबल और स्वाभिमान इस कदर कुचल दिया कोई भी काम सफल नहीं हो सकता । स्त्री सीता है, गया है कि अब वे स्वयं अपने आपको तुच्छ, शुद्र स्त्री पार्वती है, स्त्री दुर्गा है, स्त्री लक्ष्मी है, स्त्री सरऔर अयोग्य समझने लगी हैं । वे अपने जीवनसे स्वती है । संसारका हरएक कार्य शक्तिसे सम्पन्न होता घृणा करती हैं और उत्थानके मार्गमें बढ़नेके लिए है और वह शक्ति स्त्री ही का स्वरूप है! अपने आपको असमर्थ समझती हैं । उनके दिलोंमें विश्वमें जो सुन्दर और सुखकर है वह स्त्री ही यह अन्धविश्वास कूट कूट कर भरा हुआ है कि स्त्री का प्रकारान्तर है। जहां पुरुष जाति अपने, वीरता, जाति तिरस्कार और अपमानके लिए पैदा हुई है। धीरता, गम्भीरता, काठिन्य, शौर्य श्रादि गुणोंसे सम्पन्न उसका अलग अपना कोई अस्तित्व नहीं है । वह सच है, वहां स्त्री-जाति अपने सौंदर्य, कोमलता, लावण्य, मुच पुरुपोंके पैरकी जती है और इसीलिए स्त्री होना सेवा विनम्रता आदि गुणोंसे सुशोभित है । दोनों अपने या तो ईश्वरका अभिशाप है या पर्वोपार्जित पापोंकी अपने विशिष्ट स्वरूपोंमें समान है। कोई किसीसे कम या किसी बड़ी राशिका परिणाम है।
ज्यादा नहीं हैं। संसारकी रचनामें और इसकी हर एक हमारे समाजमें अधिकांश स्त्रियां, अशिक्षित और स्थितिमें स्त्री और पुरुष का हाथ बिल्कुल बराबर है । बे पढ़ी है और उनके खयालात भी ऐसे ही बने हुए समुद्रकी विशालता नदियों के बल पर है फूल की सौरभक हैं। हमारे ऐसे ही विचारोंने श्राज हमको पददलित बना आधार कली है । सूर्यमें ज्योति छिपी है। चांदकी शोभा रक्खा है। जो महिलाएँ स्त्री-पर्यायको पाप कृत्योंका चन्द्रिकासे है । मेघकी शोमा बिजलीसे है । ऊंचे ऊंचे फल, या जघन्य और क्षुद्र समझती हैं उनको मैं स्पष्ट पहाड़ चोटीके बिना खण्डहर सरीखे हैं। श्रद्धा बिना