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मनुष्यों में उच्चता-नीचता क्यों ?
[ ले -- पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य | ( गत १२ वीं किरण से भागे ।
किम गतिमें कौन गोत्रका उदय रहता है
ऊपरके कथनमें यह बात निश्चित कर दी गई है कि पहिले गुणस्थानमे लेकर पाँचवें गुणस्थान तक नीच और उच्च दोनों गोत्रोंका और छट्टे से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक केवल उच्चगोत्रका उदय रहना है तथा सिद्ध जीव गोत्रकर्म के सम्बन्ध से रहित हैं । अब यहाँ पर यह बतलाने की कोशिश की जायगी कि the afrमें कौनसे गोत्रकर्मका उदय रहता है ।
शास्त्रों में नारकी जीवोंके जीवनका चित्रण बहुत ही दीन और क्रूरतापूर्ण किया गया है। वे अपनी भूख मिटानेके लिये इधर उधर बड़ी आशा भरी दृष्टिसे दौड़ते हैं, यहां तक कि एक दूसरे को खानेके लिये भी तैयार हो जाते हैं। यद्यपि तीव्रप्रसाना कर्मके उदयसे उनके लिये भूख-प्यास मिटाने के साधन नहीं मिलते हैं फिर भी उनका यह प्रयास बराबर चालू रहना है। शास्त्रों में लिखा है कि नारकी जीवोंके सामने तीन लोककी खाद्य और पेय सामग्री रख दी जावे तो भी उससे उनकी भग्व और प्यास नहीं मिट सकती है, इनने पर भी उन्हें एक का भी खाद्य सामग्री का और एक बंद भी पानी की नहीं मिलती है । ऐसी अधमवृत्ति मातों नरकोंके नारकियोंकी बतलायी गयी है, इसलिये इस वृत्तिका कारणभूत नीच गोत्रकर्मका उदय उनके माना गया है । 1
तिर्यच्चों की वृत्ति भी दीनता और क्रूरतापूर्ण देखी जाती है। जंगली जानवरोंकी वृत्ति विशेषतया क्रूर
होती है और ग्राम्य पशुओंकी वृत्ति विशेषतया दीन होती है, इसलिये इन दोनों प्रकारकी वृत्तिमें कारणभूत नीच गोत्रकर्मका उदय तियंचों के भी माना गया है । भोग- भूमिके तिर्यच यद्यपि क्रूरवृत्ति वाले नहीं होते हैं, कारण कि वे किसी भी जीवको अपना पेट भरनेके
लिये सताते नहीं हैं, सबको बिना प्रयास ही भरपेट खानेको मिलता है, इसलिये वे अपना जीवन स्वतंत्र और मानन्दपूर्वक व्यतीत करते हैं, परन्तु उनके लिये भी खानेको कर्मभूमि- जैसी घास आदि दीनता-सूचक पतित सामग्री ही मिला करती है। जिम प्रकार कल्पवृक्षोंमे भोगभूमिके मनुष्योंको इच्छानुसार उत्तम उत्तम भोजन मिला करता है उस प्रकार वहांके पशुओंको नहीं मिलता, पशु बुद्धिकी मंदता व विलक्षण शरीररचनाके कारण इस प्रकारके प्रयास करने तक में असमर्थ रहने हैं, इसलिये उनकी वृत्ति दान वृत्ति हो कही जा सकती है और यही कारण है कि भोगभूमिके तिर्यचों के भी areगोत्रकर्मका उदय बनलाया गया है।
देवर्गातमें देवोंके उच्चगोत्रकर्मका उदय बतलाया है और यह ठीक भी है, कारण कि एक तो देवों को कई वर्षों के अन्तर से भूख लगा करती है और इतने पर भी मानसिक विकल्पमात्रमे ही उनकी भूख शान्त हो जाया करती है, इसलिये देवोंकी वृत्ति लोकमें सर्वोतम मानी जाती है, और यही कारण है कि सम्पूर्ण देवों को उच्चगोत्री बतलाया गया है। यद्यपि भवनवासी देवों में असुरकुमार व व्यन्तरोंमें भूत, पिशाच, राजस आदि जैसे क्रूरकर्मवाले देव भी पाये हैं. कल्पनाम