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अनेकान्त
(वर्ष ३, किरण १
* त्वयि ध्रुवं खंडितमानभंगो भवत्यभदोपि समंतभद्रः । दया-दम-स्याग-समाधि-निष्ठ वास्तवमें इंद्रभूति गौतमका परिवतेन इस
नय प्रमाग-प्रकताजसाथ। बातका सजीव उदाहरण है।
अधृष्यमन्येरखिलैः प्रवादी। यह तिथि महावीर प्रभुके तीयवासियोंके लिए एक अपूर्व समय है, जो इस बातका स्मरण कराती
जिन त्वदीयं मतमद्वितीयं । है कि लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महा.
हे जिनेन्द्र ! दया, इंद्रिय-दमन, त्याग तथा वीरने हमको मुक्तिका मार्ग बताया था। इससे समाधि-ममन्वित, नय तथा प्रमाणसे पदार्थोंका अन्य तिथियोंकी अपेक्षा वह हमारे लिए विशेष समीचीन रूपसे प्रकाशन करने वाला और संपूर्ण आदर तथा पूजाके योग्य है। गणोत्कर्षकी दृष्टिसे प्रवादियोंके द्वारा अखंडनीय आपका मत अप्रतिम अन्य काल भी अपनी अपनी अपेक्षासे महत्वपर्ण -लामानो ( unparalleled ) है। है, किन्तु हमारे लिए प्रभुके प्रति आंतरिक कृतज्ञता।
भगवानकी वाणीमें 'सत्यं शिवं सुन्दर' का प्रकाशके लिए अधिक उपयक्त उपर्यत वेला है। लोकोत्तर समन्वय पाया जाता है । जिस प्रकार संपूर्ण कोका ध्वंस करने के
यह दिन हमें अपने स्वरूपके चिंतन करनेका कारण सिद्ध परमात्मामें अधिक पज्यता है, किन्तु अवसर प्रदान करता है और यह स्मरण कराता अरहंत देवके कारण हमारी हित-साधना विशेषता है कि यदि हमने बाह्य महावीरके गुणोंका विचार पूर्वक हुई है, इससे णमोकार मंत्रमें णमो सिद्धाणं, कर अपने भीतर निहित महावीरका चिंतन किया के पूर्वमें 'समो परहंताणं' का पाठ पढ़ा जाता है:
और उसे प्रकाशमें लानेका सच्चा प्रयत्न किया, तो इसी प्रकार हमारे कल्याणको लक्ष्यमें रखकर प्रभके निकट भविष्यमें हम भी महावीरकी महत्ताक प्रति कृतज्ञता प्रकाशनका सबसे बढ़िया अवमर
अधीश्वर बन सकते हैं। महावीरके गणोंकी मच्चा उक्त वेला है । क्योंकि उसी दिन तीर्थकर प्रकृति
आराधना आराधकको महावीर बनाए बिना न रूप मनोज बक्षके समधर फल चलनेको पा रहेगी। इसके लिए रत्नत्रय की प्राप्तिका प्रशस्त हुए थे तथा तीर्थकरत्वका पूर्णरूपसे विकास हुआ
प्रयत्न करना होगा, क्योंकि बिना मम्यग्दर्शन
ज्ञान और चारित्रके यह आत्मा अपने आत्मत्वकी __इस प्रसंगमें यह शंका होना माहजिक है कि प्राप्ति नहीं कर मकता है। वह ऐमी कृति या विशेषता कौन थी. जिसके . प्रभुकी धर्मदेशनाके दिवसमें यह भी उचित कारण उस दिनको महत्व प्रदानकिया जाय ? इम।
है कि हम इस प्रकारका उद्योग तथा उदारताका विषयमें यक्त्यानुशासनका यह पद्य बड़ा मार्मिक
प्रदर्शन करें, जिससे महावीरका महत्वपूर्ण शिक्षण एवं मनोहर है, जिसमें वीरशासनकी विशेषता इन
संसारके कोने कोनेमें पहुंचे, और मांग जगत शब्दोंमें बताई गई है
वीतरागको जीवन भरी शिक्षाओं आलोकित हो
उठे-महावीर-वादसेभूमंडल गूंज उठे। ___ * प्रभो ! आपके ममीप आनेवले व्यक्तिके मानके वीरभक्तो ! उठो, महावीर प्रभुके प्रदर्शित सांग खंडित हो जाते हैं और अभद्र-दुष्ट व्यक्ति भी पथ पर चलो और संमारमें उनको महत्ताका समंतभ-माग ममीचीन-बन जाता है।
प्रकाश फैलायो।