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________________ वर्ष ३, किरण .] हम और हमारा यह सारा संसार इस ही प्रकार बहुन बुरे कर्म-अधनमें फंसा हुआ जीव भी भला जो स्वभाव हमने अपना बना लिया है, जैसा कुछ कुछ न कुछ होश जरूर रखता है और अपनेको सुधार भी अपने किये कर्मोंका धन हमने अपने साथ बाँध सकता है। लिया है, उस स्वभावके ही अनुसार न नाचते रहें, किंतु बाह्य कारण मनुष्य के स्वभाव पर बड़ा असर उसको ही अपने काब में रखें और अपने ही अनुसार डालते हैं,इम ही से उसके सोये हुए संस्कार जागते हैं। चलावे । अश्लील तस्वीरें देखकर, अश्लील मजमून पढ़कर, अशलील बियोंकी संगतीमें बैठकर कामवासना जागत ___ भाग्यके ही भरोसे अपनेको छोड़ हो जाती है । गुस्सा दिलाने वाली बातें सुनकर क्रोष देने का खोटा परिणाम उठता है । शेरकी आवाज सुनकर ही भय हो जाता है। बहादुरीकी बातें सुनकर स्वयं अपने मनमे भी जोश आने जो लोग यह कहने लगते हैं कि हमारे भाग्यने लगता है। सुन्दर सुन्दर बस्तुओंको देखकर जो जैसा हमारा स्वभाव बना दिया है उसको हम बदल ललचाने लग जाता है। इस कारण हमको अपने नहीं सकते । हमको तो अपने भाग्यके ही अनुसार चलना भावोंको ठीक रखनेके वास्ते इस बातकी बहुत ज्यादा होगा, इस ही प्रकार संसारके जिन जीवो और अजीव ज़रूरत है कि हम ऐसे ही जीवों और अजीव पदार्थोंसे पदार्थोंसे हमारा वास्ता पड़ता है, जो कुछ हानि लाम संयोग मिला जिसमें हमारे भाव उत्तम रहें, बिगड़ने न होना है, जो कुछ भाग्यमें बदा है; वह तो होकर ही पावें और यदि किसी कारणसे हम अपनेको बुरी संगतिसे रहेगा, उसमें तो बाल बराबर भी फरक नहीं आ सकता नहीं बचा सकते हैं तो उस समय अपने मन पर ऐसा है, ऐसे लोग भाग्यके भरोसे हाथ पर हाथ धरकर तो कड़ा पहरा रखें कि हमारा मन उधर लगने ही नहीं बैठते हैं । उनके स्वभावका ढाँचा, उनके शरीरकी नपावे। प्रकृति, उनकी इन्द्रियों के विषय, मान-माया, लोभ मनुष्यको हर वक्त ही दो ज़बरदस्त ताकनोंका क्रोधादिक भड़क,राग और द्वेष, उनको चुपचाप तो नहीं सामना करना पड़ता है। एकतो संसार भरके अनन्ता. बैठने देता है इस कारण कामतो वे कुछ न कुछ करते नन्त जीव और अजीव जो अपने २ स्वभावके अनुसार ही रहते है, किन्तु ऐसे नशियालेकी तरह जो नथा पीकर कार्य करते रहते हैं, एक ही ससारमें हमारा और इन अपनेको सम्हालनेको कोशिश नहीं करता है, बल्कि नशे सबका कार्य होते रहनेसे हमसे उनकी मुठभेड़का होते की तरंगके मुवाफिक ही नाच नचानेके लिये प्रश्नेको रहना जरूरी ही है। उनमेंसे किसी समय किसीका ढीला छोड़ देता है । ऐसे भाग्यको ही सब कुछ मानने संयोग हमको लाभदायक होता है और किसीका वाले भी अपने मनकी तरंगोंके अनुसार नाच नाचते हानिकारक । इस वास्ते एकतो हमको हर वक्त ही इस रहते हैं और कहते रहते है कि क्या करें हमारा स्वभाव कोशिशमें लगे रहोकी जरूरत कि ससारके जीव ही ऐसा बना है। इस प्रकार यह लोग अपनी खोटी २ और अजीवोंके हानिकर संयोगोंसे अपनेको बचाते रहें कामनाओं, खोटी २ विषय वासनाओंमें ही फसे रहते और लाभदायक संयोगोंको मिलाते रहें। दूसरे, बुरा या है।बोध-मान-माया लोभ श्रादि जो भी जोश उठे या
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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