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________________ - हम और हमारा सारा संसार पानीसे नीमका पेड़ बढ़ रहा है और उस ही से नींबू पलटन होता यता। नारंगी और प्राम-इमली का | भावार्थ यह है कि उस जीवोंका शरीर तो मिट्टी-पानी आदि अजीव ही मिट्टीपानीके परमाण नीमके पेड़ के अन्दर जाकर पदार्थोंका ही बना होता है, उसके अन्दर जो जीवात्मा नीम के पत्ते, फूल और फल बन जाते हैं और वे नारंगी होती है, उस ही में शन और राग-द्वेष, मान-माया, के पेड़ में जाकर नारंगीके फल फल और पचे बन जाते लोभ-क्रोध श्रादि भड़क, इच्छा, विषय-वासना हिम्मत हैं। फिर इन सहस्रों प्रकारकी बनस्पतिको गाय, बकरी, हौंसला, इरादा और सुख-दुखका अनुभव श्रादिक भैस, खाती हैं तो उन जैमा अलग २ प्रकारका शरीर होता है । परन्तु यह सब बातें प्रत्येक जीवमें एक समान बनता रहता है और मनुष्य खाता है तो मनुष्यकी देह नहीं होती है । किसीका कैसा स्वभाव होता है और बन जाती है और फिर अन्तमें यह सब वनस्पति, पशु किसीका कैसा; जैसाकि कोई गाय मरखनी होती है और और मनुष्य मिट्टीमें मिलकर मिट्टी ही हो जाते हैं, कोई असील । मनुष्य भी जन्मसे ही कोई किसी स्वभाव इस प्रकार यह आश्चर्यजनक परिवर्तन अजीब पदार्थों का होता है और कोई किसी स्वभावका । इससे यही का होता रहता है । यह चक्कर सदासे चला पाता है सिद्ध होता है कि पहिले जन्ममें जैसा दाँचा किसी और सदा तक चलता रहेगा। जीव के स्वभावका बन जाता है, वही स्वभाष वह मरने हम यह पहले ही कह चुके हैं कि संसारमें दो पर अपने साथ लाता है। प्रकार के पदार्थ हैं एक जीव और दूसरे अजीव । जीवों जीव और अजीव दोनों ही पदार्थोंमें, किसी काम का शरीर भी अजीव पदार्थोका ही बना होता है, इस को करते रहने से, उस कामको करते रहनेकी आदत ही कारण जीव निकल जाने पर मृतक शरीर यहीं पड़ जाती है । कुम्हार चाकको डंडेसे घुमाकर छोड़ देता प्रड़ा रहता है । जब समारकी कोई वस्तु नवीन पैदा है, तब भी वह चाक कुछ देर तक घूमता ही रहता है। नहीं होती है और न नष्ट ही होती है केवल अवस्था ही लड़के डोरा लपेटकर लट्ट को घमाते हैं, परन्तु डारा बदलती रहती है, ऐसा सायंसने अटल रूप सिद्ध कर अलग हो जाने पर भी वह लट्ट बहुत देर तक घना ही दिया है तब जीवोंकी बाबत भी यह ही मानना पड़ता करता है, पानीको हिलाने या उगलीसे घुमा देने पर है कि वे भी सदासे हैं और सदा तक रहेंगे । बेशक वह स्वयमेव भी हिलता या घूमता रहता है । साल भर पर्यायका पलटना उनमें भी जरूर होता रहेगा । जीवकी तक जो सन् सवत हम लिखते रहते हैं, नया साल भी एक पर्याय छूटने पर कोई दूसरी पर्याय ज़रूर हो लगने पर भी कुछ दिन तक वह ही सन् संवत लिखा जाती है और पहले भी उसकी कोई पर्याय ज़रूर थी जावा है । भाँग तम्बाकू आदि नशे की चीज़ या मिर्च, जिसके बूट जाने पर उसकी यह वर्तमान पर्याय हुई मिठाई, खटाई आदि खाते रहनेसे उनकी आदत पड़ है। अजीव पदार्थोंकी तरह जीवोंकी भी यह अलटन जाती है । ताश, चौपड़, शतरंज श्रादि खेलोंको बराबर पलटन सदासे ही होता चला आ रहा है और सदा तफ खेलते रहनेसे उनकी ऐसी आदत पड़ जाती है कि होता रहेगा । जीवोंकी जितनी जातियाँ संसारमें है जरूरी काम छोड़ कर भी खेलनेको ही जी चाहने लगता निको उनके भेद है उनही में उनका यह अलटन है। जिन बच्चों के साथ आता लाइ होता है उनका
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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