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________________ वर्ष १, किरण १०] हम और हमारा यह सारा संसार नीचे नीचे चलने से मेरा उसका संयोग जरूर हो गया है। यह सब बातें भूलकर घमंडके मारे उसके दिमाग़ में ही समा गया कि यह गाड़ी भी मेरे ही सहारे क्ल रही है। इस ही प्रकार संसार में अनन्तानन्त जीव र श्रजीव सब अपनी २ शक्ति और स्वभाव के अनुसार ही कार्य करते हैं परन्तु एक ही संसार में उनके सब कार्य होते रहने से एक दूसरे से उनको मुठभेड़ होते रहना या संयोग मिलना लाज़िमी और ज़रूरी ही है । परन्तु इस तरह यह समझ बैठना कि उन सबके वे कार्य मेरे भाग्य से ही हो रहे हैं, बड़ी भारी भूल है । बाजार में तरह तरह के ऐसे खिलौने मिलते हैं जो चाची देने से तरह तरहके खेल करने लगते हैं । कोई दौड़ता है, कोई उछलता है, कोई कूदता है, कोई घूमता है, कोई नाचता है, कोई कलाबाजी करता है । अगर इन सबको चाबी देकर एकदम एक कमरे में छोड़ दिया जावे तो वे सब अपना अपना काम करते हुये एक दूसरेसे टकरा जायेंगे। जिससे कोई उथल जायेगा, कोई कार्य करनेसे रुक जायेगा, कोई उलटा पुलटा काम करने लग जायेगा, किसीकी कूक निकल जायेगी लेकिन यह सब खिलौने तो अपनी २ शक्ति श्रौर स्वभाव के अनुसार ही काम कर रहे थे । एक दूसरे से तो इनका कोई भी संबंध नहीं था । केवल एक ही कमरे में काम करते रहनेसे, श्रापसमें उनकी मुठभेड़ होगई और उनका खेल बखेल होकर ऐसी उथलपुथल हो गई जो उनके स्वभाव के बिल्कुल ही विरुद्ध थी इस ही प्रकार संसारके सब ही जीव अजीव अपनी २ शक्ति और स्वभाव के अनुसार इस दुनिया में काम करते हैं, जिनकी आपस में मुठभेड़ होजाना और उस मुठभेड़की वजहसे ही उनमें उथल-पुथल और खेलबखेल होते रहना भी लाजिमी और जरूरी हो है । २६६ ऐसी ही सब घटनायें श्राकस्मिक या इत्तफ़ाकिया कहलाती है। जो किसीके भाग्यकी कराई नहीं होती हैं । पानीसे भरे तालाब में ढेला मारनेसे एक गोल चक्करसा होजाता है और वह चक्कर अपने श्रास पासके पानीको टक्कर देकर दूसरा बड़ा चकर बना देता है । इसी तरह और भी बड़े बड़े चक्कर बनते बनते किनारे तक पहुँच जाते हैं। यदि इस ही बीचमें कोई दूसरा ढेला भी फेंक दिया जाय तो उसके भी चक्कर बनने लगेंगे और पहले चकरसे टकराकर उन पहले चक्करोंकी भी तोड़ने फौड़ने लगेंगे और खुद भी टूटने फूटने लगेंगे। इस ही प्रकार यदि सैंकड़ों ढेले एक दम उस तालाब में फैके जावें तो वे अलग अलग सैंकड़ों चक्कर बनाकर एक दूसरे से टकरावेंगे और सब चक्कर टूट फूट कर पानी में तहलकासा मचने लग जावेगा । यही हाल संसार के श्रनन्तानन्त जीवों और जीवोंकी क्रियाओंका है, जिनके सब काम इस एकही संसारमें होते रहने के कारण आपस में टकराते हैं और गड़बड़ पैदा होती है। यह सब मुठभेड़ या संयोग श्राकस्मिक या इत्तफ़ाकिया ही होता है, किसीके भाग्यका बाँधा हुआ नहीं होता है । तब ही तो सब ही जीव हानिकारक संयोग से बचने और लाभदायक संयोगोंको मिलानेकी कोशिश करते रहते हैं, यह ही सब जीवोंका जीवन है, इस ही में उनका सारा जीवन व्यतीत होता रहता है, इसीको हिम्मत या पुरुषार्थ कहते हैं, यही एक मात्र जीव और अजीव में भेद है । जीव पदार्थोंमें न हिम्मत है न इरादा, जो कुछ होता है वह उनके स्वभावसे ही होता रहता है । परन्तु जीवों में हिम्मत भी है और इरादा भी है। इस ही कारण वे भाग्य होनहार वा प्रकृतिके भरोसे नहीं बैठते हैं। जंगलके जीव भी खाना पानीकै लिये ढूंढ भाल करते हैं, इधर उधर फिरते हैं,
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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