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शबेकाय
कि मेरे खोटे भाग्य से ही पड़ोसीकी मौत हुई, जिससे रोनेका शोर उठा और मेरी नींद टूटी । मैं फिर सो गया और फिर एक भारी शोरके सबब जामना पड़ा; मालूम हुआ कि किसीके यहाँ चोरी होगई तब यह चोरी भी तो मेरे ही भाग्यने कराई जिससे शोर उठ कर मुझे जागना पड़ा । कई बार मैं देश-विदेश घूमने के लिये गया हूँ | मीटर या रेलमें सफर करते हुए जो भी मुसाफिर मुझे मिलते रहे हैं, उनको मेरा भाग्य ही कहीं कहीसे खींच लाकर सफ़र में मुझे मिलाता रहा है। कोई उतरता है, कोई चढ़ता है, कोई उठता कोई बैठता है, कोई खोता है कोई जागता है, कोई हँसता है, कोई रोता है, कोई लड़ता है कोई झगड़ता है, यह सब कर्तव्य भी मेरा भाग्य ही उनसे मेरे दिखाने के वास्ते कराता रहा है। रेलमें बैठे हुए पहाड़-जंगल नदी नाले, बाग बगीचे, खेत और मकान उनमें काम करते हुए स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, ढोर-डंगर, जंगलों में फिरते हुए तरह तरह के जगली जानवर और उड़ते हुए पक्षी और भी जो जो दृश्य देखने में आये, वे सब मेरे ही भाग्यने मेरे देखने के वास्ते पहलेसे जुटा रखे थे
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[ श्रावण, वीर निर्वाय सं० २४६६
तरह२ की कथा-कहानी जो पढ़ने में आई, वे सब घटनायें मेरे भाग्यने ही तो पुराने जमानेंमे कराई होंगी, जिससे वे पुस्तकों में लिखी जावें और मेरे पढ़ने में आवें । श्रब भी जो जो मामले दुनियाँमें होते हैं और समाचार पत्रों में छपकर मेरे पढ़ने में आते हैं या लोगबागोंसे सुनने में आते हैं वे सब मामले मेरा भाग्य ही तो दुनियाँ भरमें कराता रहता है, जिससे वे छपकर मेरे पढ़ने में आवे या लोगोंकी जबानी सुने जावें ।
फिर जिन जिन नगरोंमें में घूमता फिरा हूँ, वहाँके महल, मकान और दुकान, और भी जो जो मनमनभावनी वस्तु वहाँ देखने में आई, वे सब मेरे भाग्य ने ही तो वहाँ मेरे दिखाने के वास्ते पहले ही बना रखी थीं। ग़रज़ कहाँ तक कहूँ, उम्र भर जो कुछ मेरी आँखोंने देखा या कानों ने सुना, वह सब मेरे दिखाने या सुनानेके वास्ते मेरे भाग्यने ही किया और संसारके जीवों और अजीव पदार्थोंसे कराया । सच तो यह है कि बीते हुए जमाने की जो जो बातें पुस्तकों में पढ़ने में चाईराज पलटे, लड़ाइयाँ हुई, रामका बनवास, सीता का हरण, रावण से युद्ध, महाभारतकी लड़ाई, और भी
इस प्रकार यदि कोई पुरुष दुनियां भरका सारा काम अपने ही भाग्य से होता रहना ठहराने लगे, यहाँ तक कि लाखों करोड़ों वर्ष पहले भी दुनियाका जो वृतान्त पुस्तकों में पढ़ने में श्राता है, उसको भी अपने ही भाग्यंसं हुआ बताने लगे, तो क्या उसकी यह बात मानने लायक हो सकती है, या एक मात्र पागलकी बड़ ठहरती है ।
इस तरह तो हर एक शख्स संसारकी समस्त रचनाओं और घटनाओं के साथ अपने भाग्यका सम्बन्ध जोड़ सकता है और उन सबका अपने भाग्यसे ह्री होना बतला सकता है; तब किसी भी एकके भाग्यसे उन सबके होने का कोई नियम नहीं बन सकता और न जीव जीव पदार्थों का कोई स्वतंत्र अस्तित्व या व्यक्तिवही रह सकता है।
आकस्मिक संयोग कैसे मिल जाते हैं।
कहावत प्रसिद्ध है कि एक बैलगाड़ी चली जा रही थी । धूपकी गर्मीस बचने के वास्ते एक कुत्ता भी उस गाड़ीके नीचे २ चलने लगा । चलते २ वह यह भूल गया कि गाड़ी अपनी ताकतसे चल रही है और मैं अपनी ताकतसे, न गाड़ी मेरी ताक्कतसे चल रही है और न मैं गाड़ीकी ताक़तसे, किन्तु गाड़ीके