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[आवय, बीर विषय सं० २४६ ३
ही प्रकार बाजारसे कुछ कपड़ा लाकर कुछकी टोपी, हैं, परन्तु उस बेचारेको तो इसका कुछ भी ध्यान नहीं
गाड़ी
की में बैठा जा रहा है, गाड़ीके चलने से बेहद गर्दा उड़ता जा रहा है, जिससे उसको भी बहुत दुख हो रहा है और उस रास्ते पर चलने वाले दूसरों को भी। गाड़ीके पहियोंकी रगढ़ और के पैरों की टापोंसे रास्ते में पड़े हुए अनेक छोटे छोटे जीव भी कुंचले जा रहे हैं। जिनके कुचलनेका इरादा गाड़ी वालेके मनमें बिल्कुल भी नहीं है, तब यह सब अकस्मात् ही तो होरहा है ।
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अनेकान्त
कुछ की जी कान बना लिया । इस प्रकारके सब भेद ज़रूरत या अवसरके अनुसार ग्राकस्मिक या इतका किया ही होते रहा करते हैं । पहलेसे तो उनका कोई भाग्य बना हुआ होता ही नहीं, जिसके अनुसार यह सब घटनायें होती हो । dattant क्रियाका असर जैसा कि अजीब पदार्थों पर होता है वैसा ही जीवों पर भी होता है । जेठ- श्राषाढ़ के कड़ाके की धूप में छोटे छोटे कीड़े मर जाते हैं, तालाब का पानी सूख जाता है, जिससे उसकी सब मछलियाँ और अन्य भी जीव मर जाते हैं।
बरसात की पूर्वी हवा चलनेसे फूलों और फलोंमें कीड़े पड़ जाते हैं, पानीके बरसनेसे अनेक प्रकारके कीड़े पैदा हो जाते है और लाखों करोड़ों मर भी जाते हैं; परन्तु जेठ श्राषाढ में कड़ी धूपका पड़ना, बरसात में पूर्वी हवाका चलना और पानीका बरसना, यह सब तो उन वस्तुनों के अपने स्वभावसे ही होता रहता है, किसी जीवके भाग्यसे नहीं होता। इस वास्ते उनसे जीवों पर जो असर पड़ता है वह तो अकस्मात् ही होता है ।
हवा, पानी, अग्नि आदि अजीब पदार्थोंमें तो ज्ञान नहीं, इच्छा नहीं, इरादा नहीं, इस कारण उनकी तो सब क्रियायें उनके स्वभावसे ही होती हैं, किन्तु जीवों की जो क्रियायें इच्छा और इरादेसे होती हैं उनसे भी दूसरी वस्तुओं पर ऐसे असर पड़ जाते हैं, ऐसे अलटनपलटन हो जाते हैं जिनकी न उनको इच्छा ही होती है और न इरादा ही । जैसे कि जंगलका एक हिरण शिकारीसे अपनी जान बचाने के वास्ते अंधाधुंध दौड़ा जा रहा है, परन्तु जहाँ जहाँ उसका पैर पड़ता जाता है वहाँ के पौधे घास पात और मिट्टी सब चूर चूर होते चले जा रहे हैं, छोटे छोटे जीव भी सब कुचले जारहे
सब कुछ भाग्यसे ही होता रहना असंभव है
यदि यह कहा जाय कि यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ किन्तु उन जीवों के भाग्य से ही हुआ तो साथ ही इसके यह भी मानना पड़ेगा कि इन जीवोंके भाग्य ही गाडीको खीच कर यहाँ लाये । परन्तु गाड़ी वाले पर और गाड़ीके बैलों पर सड़क के इन जीवोंके भाग्य की जबरदस्ती क्यों चली ? इसका कोई भी सही जवाब न बन पड़ने से अकस्मात् ही इनका कुचला जाना मानना पड़ता है | कसाईने गायको मारकर उसका मांस बेच, अपने बाल बच्चोंका पेट पाला, तो क्या गाय के खोटे भाग्यने ही क्रसाईके हाथों गायके गले पर छुरा चलाया। डाकू साहूकारके घर डाका डाल कर उसको और उसके सब घर वालोको मारकर सब माल लूट लिया, तो क्या साहूकारका भाग्य ही डाकूको च कर लाया और यह कृत्य कराया ? तब तो न तो क्रसाईने ही कुछ पाप किया और न डाकूले हो कोई अपराध किया; बल्कि उल्टा गायके भाग्यने ही कसाई को गायके मारने के वास्ते मजबूर किया और साहूकार का भाग्य ही बेचारे डाकूको खींचकर लाया । यदि