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________________ हम और हमारा यह सारा संसार [ लेखक-बा० सूरजभान वकील । उत्थानिका भाकस्मिक घटनायें कोई कोई पुरुष भाग्यको ही सब कुछ मानकर, हमारा यह सारा संसार अनन्तानन्त प्रकारके जीवों उसके द्वारा ही सब कुछ होना स्थिर करके उसके और अनन्तानन्त प्रकारके अजीव पदार्थोसे भरा पड़ा विरुद्ध कुछ भी न हो सकनेका सिद्धान्त स्थिर कर लेते है । सब ही जीव और अजीव अपने स्वभाव और हैं और हसना, हिम्मत, कीशियनीर मुरुषाय सर्व ही शक्ति के अनुसार क्रिया करते रहते हैं, जिसका असर को व्यर्थ समझ बैठते हैं। जिस देश या जातिमें ऐसी उनके पास पासकी चीजों पर पड़कर उनमें भी तरह लहर चल जाती है वह नष्ट हो जाते हैं और गुलाम तरहका अलटन-पलटन होता रहता है। सूरज निकलता बन जाते हैं । अतः इस लेखके द्वारा इस बात के सम- है और छिपता है, पृथ्वी पर उसकी धूपके पड़नेसे मानेकी कोशिश की गई है कि भाग्य क्या है वह किस पानीकी माप बनकर हवामें मिल जाती है, कोई वस्तु प्रकार बनता है, उसकी शक्ति कितनी है और उसका सूखती है कोई मड़ती है। हवा चलनेसे सूखे पचे, कार्य क्या है। संसारके जीवों और अजीव पदार्थोके घास फूम और धूल-मिट्टी उड़कर कहींसे कहीं जा पड़ती साथ प्रत्येक जीवका संयोग किस प्रकार होता है और है। पानी भी बहता हुआ अपने साथ बहुत ची नोंको उस संयोगका क्या असर उस जीव पर पड़ता है। वह बहा ले जाता है और गला सड़ा देता है । भाग भी सयोग किस प्रकार मिलाया जा सकता है, किस प्रकार किसी वस्तु को जलाती है, किसीको पिघलाती है, किसी रोका जा सकता है और किस प्रकार उससे लाभ उठान को पकाती है और किमाको नर्म या कड़ी बना देती है। या उसकी पनियोंसे बचनेकी कोशिश की जा सकता है संसारके इन अजीव पदार्थोमे न तो शान है और न किस प्रकार आगे के लिये अपना भाग्य उत्तम बनाया कोई इच्छा या इरादा, न सुख दुख महसूस करनेकी जा सकता है और किस प्रकार बने हुए खोटे भाग्यको शक्ति ही है। वब इनमें न तो कोई कर्मबंधन ही होता है सुधारा जा सकता है। आशा है पाठक इस लेखको और न इनका कोई भाग्य ही बनता है। इस कारण श्राद्योपान्त पढ़कर ही इस पर अपनी मति स्थिर करेंगे दूसरे पदार्थोकी क्रियाओंसे इनमें जो अलटन पलटन और यदि उन्हें यह कथन लाभदायक तथा सबके लिये हो जाता है, वह प्राकस्मिक या इचफाकिया ही कहा हितकारी और वरूरी प्रतीत हो तो हर तरहसे इसके जाता है। जैसाकि कुछ ईट बाज़ारसे लाकर उनमें से प्रचारका यह करेंगे इसको सब तक पहुँचानेकी पूरी कबसे तो रोटी बनानेका चूला बना लिया, उसे कोशिश करेंगे। पूजाकी बेटी और कुषसे टकी फिरनेका पाखाना । इस
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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