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________________ शा -निर्वाच ॥ और दुनियाका कुछ पता नहीं, भूत और भविष्यका . उच्छेद करना चाहते है, भय उत्पत्ति द्वारा भयको कुछ पता नहीं, उनके लिए वर्तमान क्षण ही काल है, निर्मूल करना चाहते हैं। वर्तमान जीवन ही जीवन है। . बहुतसे सात्विक बुद्धि है, सरल हृदय है, नम्रभाव ___ बहुतसे पशु-समान तो नहीं है, परन्तु दुद्धि , है, वे अपने सुख-दुखका विधाता अपनसे बाहिर,अपने पालसी और शक्तिहीन है । वे पशुसमान अचेत जीवन से भिन्न, अपनेसे दूर मानते हैं । षे उस सत्ताको समस्त को, पुरुषार्थहीन जीवनको सुखी मानते हैं। वे जान बम शक्ति, समस्त शन, समस्त सुख, समस्त पर्णताका कर पशु-समान अशानमागके अनुयायी बने । वे भण्डार जानते हैं । वे उसकी भक्ति उपासनासे, प्रार्थना निद्रा-तन्द्रामें पड़े हुए, सुरापाबमें झूमते हुए, नशैली र याचनासे दुखका प्रभाव, सुखका लाभ होना समझते वस्तुत्रोंके नशेमें ऊँघते हुए, दुःखको भुलानेमें लगे हैं। हा है। ये याशिक मार्गके अनुयायी हैं । ये अपनेको धर्मको जानने वाला, धर्म पर चलने वाला मानते हैं । परन्तु • बहुतसे विचारवान् है, रसिक और भावुक है, वे धर्म जानते हुए भी धर्म नहीं जानते, धर्म मानते परन्तु शक्तिहीन हैं, वे बिना पुरुषार्थ श्रानन्द भोगी हुए भी धर्म नहीं मानते. धर्म पर चलते हुए भी धर्म होना चाहते हैं, वे भोगमार्गके अनुयायी बने हैं । वे पर नहीं चलते। ये सब मिथ्यात्वसे पकड़े हुए हैं । विषयवासनामें सने हुए, संगीत-सुरासुन्दरीमें रमे हुए, मोह मायासे ठगे हुए हैं। . भाव-प्रास्वादनमें लगे हैं, दुःख-कारणोंको बहकानेमें ये वक्ष वनस्पति में, पशु-पक्षियोंमें, हवा पानीमें, लगे हैं। नदी पर्वतोंमें, बनखण्ड-देशभूमिमें, चान्दसूरजमें, ग्रहबहुतसे कुशाग्र बुद्धि हैं, बड़े पुरुषार्थी और उद्यमी नक्षत्रमें, अाकाश-कालमें, प्रकृति-विभूतिमें, परम शक्तिहैं, व्यवहार-कुशल और कर्मयोगी है; परन्तु बाह्यसुखी वान देवताका दर्शन करते हैं ।वे विशेष दिशाको हैं, अपनेसे बाहिर सुख दंडने वाले हैं, प्रपञ्चमें विश्वाम दिव्य दिशा, विशेष देशको दिव्य देश, विशेष कालको रखने वाले हैं, ये लोकको विजय करने में लगे है। दिव्यकाल, विशेष रूपको दिव्यरूप मानते हैं । ये विभिन्न वस्तुओंके जमा करनेमें लगे हैं। ये धन-धान्य विशेष भाषाको दिव्य भाषा, विशेष वाक्यको दिव्यकञ्चन-पाषाण, जर-ज़मीन, महलमाड़ी बटोरने में लगे वाक्य, विशेष वाक्य-सग्रहको दिव्य शास्त्र समझते हैं । है। वे स्वार्थसिद्धिमे विश्वास करने वाले हैं, वे सिद्धि- ये विशेष जानि वाले, विशेष कर्माचारी, विशेष रूपधारी मार्गकी शिष्टता-अशिष्टता में विश्वास करने वाले नहीं । को गुरु ग्रहण करते हैं। ये विशेष प्रकारका रूप धारण इममेखिए ये प्रापममें लड़ते-भिड़ते, कटते-मरते, लूटते- करना, विशेष भाषा बोलना, विशेष वाक्यका जप करना, ग्वसोटते गया तथा आगे बढ़ रहे हैं। वे व्यवहार मार्ग विशेष विधि अनुसार विशेष २ कर्म करना धर्म मानते के अनुयायी हैं, उद्योग-मार्गके अनुयायी हैं । ये हैं । इनमें भला देवता कहाँ ? दिव्यता कहाँ ? धर्म परिग्रह-दारा अपूर्णताका अन्त करना चाहते हैं, व्यवः कहाँ ? साय-द्वारा दुःखका अभाव करना चाहते हैं। ये 'शट ये सब अपनेसे बाहिर, अपनेसे भिन्न तत्त्वके भक्त प्रति शाठ्य' के अनुयायी है । वैर संशोधन द्वारा बैरका बने हैं, ये सब नाम, रूप,कर्मके उपासक बने हैं।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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