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________________ २५ [पेड, भापार, वीर-निपOni शंका समाधानका समय नहीं, मौत मुंह फाड़े खड़ी है, हमारे समान भद्धाबान, प्रभावान, कार्यकुशल हो जाता इससे पहले कि रोग शरीरको निकम्मा करे, बुढ़ापा है, परम सुखी होजाता है। वह फिर जन्ममरणमें मही शक्तियोंको जीणं करे, तुम अपने प्रापको धर्मसापनामें पड़ता। लगादो जो आत्माको जाने बिना, मौतको जीते धर्म मार्ग ग्रहण करनेकी कठिनताः-- बिना इस भव से विदा हो जाता है वह सदा यमका अतिथि बना रहता है। परन्तु कितने है जो इस धर्म मार्गको जानते हैं ? इस परिवर्तनशील जगमें एक ही चीज़ प्रविचन कितने है जो इसे जाननेकी सामर्थ्य रखते हैं ! कितने है, वह धर्म है । उसीकी शरण जा। सन्लक्ष्य इस (4) मां हि पार्थ पपामित्व येपि सः पापयोगपः का शिर है, सद्ज्ञान इसका नेत्र है और सदाचार इस सियो पेश्यास्तया रामास्वपि पान्ति पर गतिम् ॥ के पग है, इन तीनोंकी एकतासे ही इसकी सत्ता सुदृढ़ -गीता .... बनी है । यह सदा लक्ष्यको दृष्टि में गाड़कर, सद्ज्ञानसे (मा) गीता 17-६६ हेय उपादेयका विवेक करता हुआ उस पार चला (१) मुहका १५० ३.१.३. . जाता है। यह नाश होने वाली चीज नहीं, यह नित्य (ई) तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किंवा । है, ध्रुव है, शाश्वत् है। इस पर चलकर ही पूर्वमें भूत्यानितं य इह मास्मसमं करोति ।" मनुष्योने सिद्धिका लाम किया है। इस पर चलकर -मलामर ॥१०॥ मनुष्य भविष्य में सिद्धिका लाभ करेंगे। (3) I am the light of the world, he that ये सबही अचलपद पर खड़े हये अपने श्रादर्श- followeth me shall not walk in darkness, but shall have the light of life." द्वारा शिक्षा देते हैं, "यदि इष्ट जीवनकी कामना है, -Bible-St. John 8-12 उसके उत्कृष्ट स्वरूपको जानना है, उसके मार्गको (5) "He that hearth my word, and belie. समझना है तो हमारी ओर देखो. जो हमारा जीवन . veth on him that sent me hath everlasting वही इष्ट जीवन है, जो हमारा पद है, वही उत्कृष्ट पद life and shall not come into condemnation but is passed from death unto life," है, जो हमारा मार्ग है, वही सिद्धीका मार्ग है, जो हम " ___Bible-St. John 5-24 पर विश्वास लाता है, हमारे बतलाये हुये तत्त्वोंको (ए) "And whosoever livethi and believeth ठीक समझता है, हमारे चले हुए मार्ग पर चलता है, in me shall never die," वह पुनः अन्धकारमें नहीं पड़ता, वह इधर उधर नहीं -Bible-St. John. 11-26 भटकता, वह व्यर्थ ही शक्तिका हास नहीं करता । वह (ऐ) "If ye had known me, ye should have known my Father also...he that hath उत्तरायपन -1, मज्झिमनिकाप ६१वां सुत्त seen me hath seen the Father.... Believe me ....१४ केन उप०२.१. that I am in the Father and the Father in me. Verily verily I say unto you, he that believeth रायपन २३, १८-४४, सूत्रकृता १.८.१,६. ___on me, the works that I do, shallihe do also" * निर्मन्यप्रवचन 1.0 मझिमनिकाप-याँ सुत -Bible-St. John. Chapter 14. --------- - --- - --
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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