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इन्हें बोड़कर साधारण जनसे इस तव्यका पता ये सब ही प्राणायक -सिद्धिका मान पचना ऐसा ही है जैसा कि अन्वेसे मार्यका पता भी स्वयं प्रात्मामें कुपा है। मामा लयं भाव है, सर्व पूछना । वह अण्डे में बन्द शावकके समान अन्धकारसे भावना है, स्वय मार्ग है.
. व्याप्त है। वे स्वयं प्रकाशके इच्छुक हैं। उन्होंने इस मार्गका नाम सत्य है, कि यह मर्यको अन्तरात्माको अभी नहीं देख पाया है। उनका वचन अमृतसे मिला देता है । इसका नाम धर्म है चूंकि इस क्षेषमें प्रमाण नहीं हो सकता।
यह जीवनको संसार दुःखसे उमार कर सुखमें घर देता ये सब ही प्राप्त जन एक स्वरसे उच्चारण करते है। यह नीचेसे उठाकर सर्वोच्चपदमें बिठा देता है। है कि जीवनका इष्ट इस जीवनसे बहुत ऊँचा है, बहुत यह असम्भव चीज नहीं, प्रत्येक हितेषी इसका साक्षात् महान् है, बहुत सुन्दर है, बहुत प्रानन्दमय है । वह कर सकता है। पाश्रो और स्वयं देखलो है। इष्ट सुखस्वरूप है, सुख पूर्णतामें है, पूर्णता श्रास्मामें
ये सब ही प्रेरणा करते हैं "उठो, जागो, प्रमादको है, अतः आत्मा ही इष्ट है श्रात्मा ही प्रिय है, अात्मा त्यागो, सचेत बनो, सत्संगति करो, सत्यको पहिचानो, ही देखने, जानने और आसक्त होने योग्य है।
. धर्मका आचरण करो *" देर करनेका समय नहीं, ये सब ही आश्वासन दिलाते हैं कि जीवन और
जाते।" जीवनका इष्ट दो नहीं, दूर नहीं, मिन नहीं, एक ही है।
-ऋग्वेद.१९९.२०मुराकउप०३-1-1-1 दोनों एक ही स्थानमें रहते हैं । केवल अन्तर अवस्था का है-इनमेंसे एक भोक्ता है, दूसरा केवल शाता है।
-श्वेताश्वतर प०-६०
(H1) "I and my fother are one." एक कर्मशील है दूसरा कृत्कृत्य है। जब आत्मा इस
-Bible St. John. 10.30 अवस्थाकी महिमाको देख पाता है तो वह स्वयं महान्
* (अ) तत्वानुशासन ॥३॥ हो जाता है
m)"I am the way, the truth and the life" (१) स देवो यो अर्थ धर्म कामं सुददाति ज्ञानं च।
: -Bible-St. John. 14.6. स ददाति थप अस्ति र अर्थः कर्म च प्राज्याःn | पा० उपु०,२-३.५.
-बोधप्रामृत (संस्कृतछाया) २४ $ (4) "संसारदुःखतःसत्वान् यो परत्युत्तमे सुखे।" • "यो वे भूमा तत्सुखम् नापे सुखमस्ति, भूमैवसुखम्" . -करडनावका ॥८॥
-का० उप० ७.२३. (ब) सामिन वेद-प्रस्तावना ... म वा परे सर्वस्य कामाय सर्व प्रियं भवत्पात्मनस्तु + पायावी २-०१५ कामाय सर्व प्रियं भवति । भामा वा भरे सम्यः + अंगुत्तरनिकाय ३-१२ भोतव्यो मन्तम्यो निविण्यासितव्यः ॥" (अ) उतिहमाग्रत प्राप्य परान् नियोधत्" - उप०२.४...
-43. उप..." (4) हा सुपर्णा सयुबा सखाया समानं वर्ष परिषस्य- . (मा) धम्मपद m८॥