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________________ मिल गोम्मसार करनी त्रुरि-पति चक्नु पचालू गोही जबाबोषणामावावं। सिपुरविमेची बहसमारो हो। इले व भविस्तामो परवि सचावर पारपतिविरामरपईसु पावो मसो १० माधीवगिदिविदा विमणिराप तदेव पपलाया . सिबतिकहते चिमेगासमो मावं । विदा पयता एवं पवमेवं सवार 4 मारपतिरिषयरामरगईसु उप्पाग्यो मसो ॥१८ कर्मकाण्डकी २५ वी गाथाके अनन्तर कर्म- वेषमूखोरमपसिंगे गोमुखए पबोरपे । प्रकृतिमें निम्न दो गाथाएँ और हैं जिनसे उस सरिसीमापाचारयतिरिखबरामरगईलु विदि जीवं॥५॥ टिकी पूर्ति हो जाती है जिसका उल्लेख ऊपर फिमिरायचातणुमबहरिसराएण सरिसमो बोहो । नं०२ में किया गया है। क्योंकि इनमें से पहली पारयतिरिक्षमायुसदेवेसुष्पावणो कमसो ६०॥ गाथामें क्रमप्राप्त वेदनीयकर्मके साता-भसाता सम्म देससपबचरितमासारचरणपरिणामे । रूपमें दो भेदों और मोहनीयकर्मके दर्शन पादति वा कसाया उसोखसमसंखजोगमिदा ।।६१8 मोहनीय तथा चारित्र मोहनीय ऐसे दो भेदोंका हस-रवि-भरदि-सोपं भयं जुगुका य इस्थि-वेयं । उल्लेख करके दूसरी गाथामें यह प्रकट किया है संयंतहा सब पदे यो कसावा ॥२॥ कि दर्शन मोहनीय बंधकी अपेक्षा एक मिथ्यात्व पापदि सपं वोसे रायदो काददि परपि दोसेण रूप ही है और उदय तथा सत्ताकी अपेक्षा मिध्वा. पायसीमा जम्हा तमा सो परिणया इस्यी ॥३॥ त्व, सम्यग्मिध्याव तथा सम्यक्प्रकृतिके भेदसे पुरुगुणनोगे सेव करेवि बोधम्हि पुरुवं कम्म । तीन भेदरूप हैं। और इसलिये इनके बाद २६ वीं पुरुउत्तमो व जहा तमहा सो परिणयो पुरिसो ॥९॥ गाथाका वह कथन संगत बैठ जाता है जिसका वित्थी येव पुमं गपुंसमो जयलिंगविदिरिगे। इतनं० २ में उल्लेख है: इटावम्गिसमाचगवेवणगायो पलुसचितो ॥१५॥ दुविहंदुभवणी सादमसाएं च वेषणीयमिदि। णारयतिरिपबरामरमानमिति परमेयं वे भाऊं। पुष दुवियष्पं मोरं समचारित्तमोहमिति ॥१२॥ णामं बादाबीसं पिंडापिडप्पमेवेश ॥१॥ बंचादिगं मिल्छ ग्दवं सत्तं पर विवि । णारबतिरिवमाणुसदेवगइत्ति पहवे गई दुधा । सबमोहं मिच्छ मिस्सं सम्मत्तमिदि बाथ ॥२३॥ इगिवितिचउपचक्या बाई पंचप्पवाहि ॥१०॥ कर्मकाण्डकी २६ वीं गाथाके बाद कर्मप्रकृति पोराबियवेगुब्धिपमाहारव तेगकामणसरीरं । में निम्न गाथाएँ और हैं जिनसे उस त्रुटिकी इदि पंच सरीरा खल वाण वियष्पं वियाणादि ॥६॥ पूर्ति हो जाती है जिसका उल्लेख ऊपर नं. ३ में कर्मकाण्डकी २७ नम्बरको गाथाके बाद दिया गया है: कर्मप्रकृतिमें चार गाथाएँ और हैं, जिनमें बंधनदुनिं चरितमोहं सायवेवणिपबोक्सापमिदि। संघात-संस्थान और अंगोपांगके भेदोंका उल्लेख परमं सोवियप विदिवं यवमेवमुहिर है। और जिनसे वह त्रुटि दूर हो जाती है जिसका प्रयंपासा पल्पसा हे संबस। उल्लेख ऊपर नं०४ में किया गया है । वे चारों हो मा माया बोले सोस कसा वे गाथाएं इस प्रकार हैं:
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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