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________________ २४२० [ज्येष, पाराह, बीर-गांव पंच प सदीरवंधणणामं प्रोसमाप देत. बस्स WRस बप प्रमाबाहायिलीसिया पाई। - भाहारतेजकरमणसरीरबंधण सुशालमिदं 1000 दिढकंचाणि रतिनीखिय शाम सांगणं ॥८॥ पंच संघावणामं चौरावि बह जाब नेउन जास्स फम्मस्स-उदए अपणोणमसंपत्तासंधीमो। पाहारसेनकम्मच सरीसंवादणाम मिcिon परसिर धाणिहर्ष संघसंपत्तसेव ॥१॥ समचारणिग्गोई सानी मामणं दुर . कर्मकाण्डकी ३१वीं गाथाके बाद कर्मप्रकृति में सठाणं पन्भेयं इदि गिरि बिणागमे भाव ७n. चार गाथाएँ और हैं, जिनमेंसे पहलीमें उन नरक पोराजियवेगुविवाहारवगुणमिदिमणिदं। , भूमियों के नाम देकर जिनके संहनन-विषयका अंगोवंगं तिविहं परमागमकुमणासाह ॥ . कषन ३१वीं गाथामें किया गया है, शेषमें संहनन· __ कर्मकाण्डकी २८ वीं गाथाके बाद कर्म प्रकृति विषयक कुछ विशेष वर्णन किया है-अर्थात में पाठ गाथाएँ और हैं, जिममें विहायोगति गुणस्थानोंकी दृष्टि से संहननोंका सामान्यरूपसे नाम कर्मके दो भेदोंका और छह मंहननों के नाम विधान करते हुए यह बतलाया है कि मिथ्यात्वादि तथा उनके स्वरूपका पृथक पृथक रूपसे निर्देश सात गुणस्थानोंमें छहों, अपूर्वकरणादि चार किया गया है। इसलिये जिनके अनन्तर उक्त गुणस्थानोंमें प्रथम तीन संहनन और क्षपकश्रेणी काण्डकी २९, ३०, ३१ नं० की ३ गाथाओंको के पाँच गुणस्थानों में पहला एक वनवृषभनाराच रखनेमे उनका कथन पूर्णरूपसे संगत हो जाता है संहनन ही होता है। विकल चतुष्कर्म-एकन्द्रिय, और फिर उन गाथामोंके क्षेपक होनेकी भी कोई दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीनों मेंकल्पना नहीं की जा सकती,और न वे क्षेपक कही असंप्राप्तासृपाटिका नामका छठा संहनन बताया जा सकती हैं। वे पाठों गाथाएँ इस प्रकार हैं:- है, असंख्यात वर्षकी युवाले देवकुरु-उत्तरकुरु दुविहं विहागणामं पसत्य अपसस्थगमण इदि णिवमा। आदि भोग मिया जोवोंमें प्रथम वनवृषभनाराच बज्जरिसहयारा वजाणाराम-पारायं ॥७॥ नामके संहननका विधान किया है और चतुर्थ, नह अद्धनारायं कीलियसंपत्तपुण्यसेवटं । पंचम तथा छटे कालमें क्रमसं छह, अंतके तीन इदि संहडणं चम्विह मणाइणिहणारिसे भणियं ॥७॥ और पास्त्रीरके एक संहननका होना बतलाया है। जस्म कम्मरस रवये पन्जमयं बहीरिसहणाराय। इसी तरह सर्व विदेह क्षेत्रों, विद्याबरक्षेत्रों, म्लेच्छ तस्संहडणं भणिवं वारिसणारापणाममिदि ॥७॥ खण्डोंके मनुष्य-तिर्यचों और नागेन्द्र पर्वतमे जससुषे वनामयं अहीणारायमेव सामवणं । आगेके तिर्यचोंमें छहों संहननके होनेका विधान रिसदो तस्वागणं णामेण प बजणारायं ॥॥ किया है । इस सब कथनके बाद उस काण्डकी जसरपे वजमा हाम्रो बजरहिवणारायं । ३२ नं० की गाथा पाती है, जिसमें कर्मभूमिकी रिसमोसं मशिषवं पाराबसरीरसंहरणं ॥७॥ खियोंके मन्तकं तीन संहननोंका कथन किया वाजविसेसेण रहिवा महीमो अबवितणारायं । गया है और यह स्पष्ट लिखा है कि उनके जस्सुक्ये तं भणियं णामेण तं अबणरावं ॥३०॥ आदिके लीन संहनन नहीं होते । और
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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