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[बेड, भाषाद, बीर-विla tam
जीवपएस कामपसा हु तपरिहीया। मंडपार पुरिसो घणं णिवारेह राबिना विल्यं । होति पदविवरभूवं संबंधो होइ णायन्यो ॥२२ तह अंतराव पणगं विषारय होइ बदी १५॥ अस्थि प्रणाईमूमो बंधो जीवस्स विविज्ञकम्मेण । कर्मकाण्डकी २२वी गाथाके बाद कर्म प्रकृतिमें तस्सोपएक जापा भाषो पुण राय-दोस-ममो ॥२॥ निम्न १२ गाथाएँ और पाई जाती हैं जिनसे उस भावेण तेण पुणरवि भव्ये बहुपुमाखा लग्गति ।
त्रुटिकी पूर्ति हो जाती है जिसका उल्लेख अपर पर दुप्पि प गतस य णिवडारेणुष्य जगति ॥२४॥
नं०१में किया गया है
पहिमुहणियमयबोहणमाभिणि बोहियमणिदइंदियनं । एक समबपिबई कम्म जीवेण सत्तमेयंति।
बहुवादि उग्गाहादिक कय छत्तीसा-तिसब भेदं ॥१०॥* परिणमा माउकम बंधं भूयाउ सेसेस ॥२५॥
भत्थादो पत्थंतरसुवखंभं भकति सुदणाणं । सो बंधो पउभेयो सायन्यो होनि सुत्तणिहिहो।
भाभिणियोहियपुष्वं णियमेणिह साजं पमुहं . पपरिहि विअणुभाग परसबंधोहु उविहो कहियो ॥२६॥
मबहीयदिति मोही सीमागणेत्ति वरिणयं समये । ___ कर्मकाण्डकी २१वीं गाथाके बाद कर्मप्रकृतिमें भवगुणपाचयविहियं मोहि णाणत्तिणं विति nam निम्न पाठ गाथाएँ और पाई जाती हैं, जिनमें चितियमचितियं वा अद्धं चितिय मणेयमेयगयं । उक्त गाथोल्लेखित पाठ कर्मोंके स्वभाव विषयक मणपजवंति उपाइनं जाणह तं खु परखोए ॥३०॥ दृष्टान्तोंको स्पष्ट करके बतलाया है, और इसलिये
संपुण्यं तु सम्मग्गं केवलमसवत्त सम्वभावगयं । ये सब वहाँ सुसंगत जान पड़ती हैं
जोयानोयवितिमिरं केवलणाणं मुणेदव्यं ॥४णावावरयंकम्म पंचविहं होइ सुत्तणिदि। मदसदमोहिमणपज्जवकेवलवाणभावरणमेवं । जापरिमोपरिखितं कप्पश्यं छाययं होड ॥२८॥ पंचवयापं णाणावरणीय जाय जिणमण्विं ॥४२॥ दसणवावरणं पुण हि परिहारों हु शिवदुवारम्हि। जं सामरणं गहणं भावाणं णेव कटु मायारं । गावविहं पउ पुख्त्यवागिहि सुत्तम्हि ॥२६॥ अविसेसदूण भट्टे दसणमिदि भण्णदे समये ॥४॥* महुवितखग्गसरिसं दुविहं पुण होइ वेषणीयं तु । चक्खूण जं पयासह दीसह तं चक्स दस विति । सायासावविमिणं सुह-दुक्खं देह जीवस्स ॥३०॥ सेसिदियप्पयासो णायन्वो सो मक्खुत्ति ॥४४in मोहेह मोहणीयं जह मयिरा महब कोदवा पुरिसं। परमाणुभादियाई मंतिमखंधति मुत्तिदवाई। तं अस्वीस विमिण्णं णायन्वं निणु वदेसेण ॥३॥ तं प्रोहि सणं पुण जं पस्सइ ताइ पाचक्खं ॥१५ माउंचउप्पपारंणारय-तिरिन्छ मय सुरगईयं । बहुविहबहुप्पयारा उज्जोबा परिमियम्मि खेत्तम्मि। हरिवित्तपुरिससरिसे जीवे भवधारणं समस्यं ॥३॥ जोयालोयवितिमिरो जो केवलदसणुज्जोयो Mane चितं पसंदविचित्तं बाणा णाम णिवत्तणं णामं ।
इस चिन्ह पाली गाथाएँ गोम्मटसार जीवतेवा पशिव गणियं गइ नाइ-सरीर-माईय॥३३॥ काण्डमें क्रमशः नम्बर ३०५, १४, ३५, १०, गोदं कुनाम सरिसं पीपचकुलेसु पाषणे पच्छं।
१, २, , , २३, २४, २५, पडरंजणाप करणे ऊभाषारो महा शेवगणो ॥३॥ २८१, २०१, २०२, २०४ पर उपयोती है। .